समुद्र में बढ़ेगी भारत की ताकत तो टेंशन में चीन-पाकिस्तान, इस महीने के अंत तक रूस से मिलेंगे गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट

Updated on 11-11-2024 01:28 PM
नई दिल्ली: समुद्र में भारत की ताकत बढ़ने जा रही है। भारतीय नौसेना को जल्द ही आईएनएस तुशील के रूप में अपना नया साथी मिलने जा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण लंबी देरी के बाद भारत को इस महीने के अंत तक रूस में निर्मित दो गाइडेड मिसाइल युद्धपोतों में से पहला प्राप्त होने वाला है। इन दो गाइडेड मिसाइल के मिलने से भारतीय नौसेना की ताकत और बढ़ जाएगी। इससे निश्चित रूप से चीन और पाकिस्तान की टेंशन बढ़ जाएगी।

रक्षा मंत्री राजनाथ करेंगे नेवी में शामिल


रक्षा सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि लगभग 4,000 टन वजनी वाला मल्टी रोल वाला फ्रिगेट पिछले कुछ महीनों से कलिनिनग्राद के यंतर शिपयार्ड में तैनात 200 से अधिक अधिकारियों और नाविकों के भारतीय दल को सौंप दिया जाएगा। इसके बाद युद्धपोत को आईएनएस तुशील के रूप में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से नेवी में कमीशन किया जाएगा। राजनाथ सिंह भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग सैन्य-तकनीकी सहयोग (आईआरआईजीसी-एमएंडएमटीसी) की बैठक के लिए दिसंबर की शुरुआत में रूस का दौरा करने वाले हैं।

हालांकि, एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियों के 2 शेष स्क्वाड्रनों की डिलीवरी 2026 तक देरी होने की संभावना है। इसके साथ ही परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बी का पट्टा 2028 तक मिलने की संभावना है।

क्या है फ्रिगेट की खासियत


एक सूत्र ने बताया कि दूसरा फ्रिगेट, आईएनएस तमल को अगले साल की शुरुआत में सौंप दिया जाएगा। दोनों स्टील्थ फ्रिगेट में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों सहित हथियार और विभिन्न मिशनों को अंजाम देने के लिए सेंसर लगे होंगे। इसकी लंबाई 124.8 मीटर है। आईएनएस तुषिल की टॉप स्पीड 30 समुद्री मील है। इनकी अधिकतम स्पीड 59 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। यह जंगी जहाज इलेक्ट्रोनिक वारफेयर सिस्टम से लैस है। साथ ही इसकी क्रूजिंग रेंज 4850 मील है। भारत ने अक्टूबर 2018 में चार ग्रिगोरोविच श्रेणी के फ्रिगेट की खरीद के लिए एक अम्ब्रेला समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें से पहले दो को रूस से लगभग 8,000 करोड़ रुपये में आयात किया जाना था।

अन्य दो का निर्माण गोवा शिपयार्ड (जीएसएल) में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ लगभग 13,000 करोड़ रुपये की कुल लागत से किया जा रहा है। इसमें से पहला इस साल जुलाई में त्रिपुत के रूप में 'लॉन्च' किया गया है। ये चार युद्धपोत छह ऐसे रूसी फ्रिगेट में शामिल हो जाएंगे, जिनमें तीन तलवार श्रेणी के और तीन टेग श्रेणी के युद्धपोत हैं, जो 2003-04 से नौसेना में पहले से ही शामिल हैं।

2028 तक और ताकतवर होगी नेवी


पानी के अंदर की बात करें तो भारत ने पहले रूस से लीज पर लेकर दो परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बियों INS चक्र-1 और INS चक्र-2 (जिन्हें SSN कहा जाता है) का संचालन किया है। इनमें पारंपरिक हथियार (जिन्हें SSN कहा जाता है) शामिल हैं। मार्च 2019 में, भारत ने रूस के साथ 10 साल के लिए एक अधिक एडवांस SSN को लीज पर लेने के लिए 3 अरब डॉलर (21,000 करोड़ रुपये) से ज़्यादा का सौदा किया था। हालांकि, इसकी डिलीवरी भी 2027 से आगे टल गई है। सूत्र ने कहा कि रूस से SSN को पहले डिलीवर करने के लिए कहा गया है, लेकिन 2028 से पहले इसकी डिलीवरी संभव नहीं है।

एस-400 की डिलीवरी में हो रही देरी


एक अन्य सूत्र ने कहा कि रूस के साथ किए गए 5.43 बिलियन डॉलर (40,000 करोड़ रुपये) के कॉन्ट्रैक्ट के तहत, एस-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों के चौथे और पांचवें स्क्वाड्रन की डिलीवरी 2026 तक ही होगी। एक अन्य सूत्र ने कहा कि भारत ने रूस से जल्द डिलीवरी के लिए कहा है लेकिन यह मुश्किल लग रहा है। इसकी वजह है कि रूस का पूरा डिफेंस टेक्नोलॉजी प्रोडक्श यूक्रेन युद्ध में जुटा हुआ है।

चीन, पाकिस्तान सीमा पर तैनाती


हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले ही रिपोर्ट किया था कि भारतीय वायुसेना ने पहले तीन एस-400 स्क्वाड्रनों को तैनात किया है, जो 380 किलोमीटर की दूरी पर दुश्मन के बॉम्बर, जेट विमानों, जासूसी विमानों, मिसाइलों और ड्रोनों का पता लगा सकते हैं। साथ ही उन्हें नष्ट कर सकते हैं। ये स्क्वाड्रन चीन और पाकिस्तान दोनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्तर-पश्चिम और पूर्वी भारत में तैनात किए गए हैं।

स्वदेशी प्रोजेक्ट के शुरू होने में लंबा समय


संयोगवश, प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने 9 अक्टूबर को 40,000 करोड़ रुपये की लागत से दो एसएसएन बनाने की स्वदेशी परियोजना को मंजूरी दे दी। हालांकि, इन्हें चालू होने में कम से कम एक दशक लगेगा। भारत ने परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइलों (जिन्हें एसएसबीएन कहा जाता है) के साथ अपनी दूसरी परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बी को अगस्त में आईएनएस अरिघात के रूप में नौसेना में शामिल किया था। अगले साल की शुरुआत में आईएनएस अरिधमन के रूप में तीसरी पनडुब्बी को नौसेना में शामिल करने की योजना है, जो सामरिक प्रतिरोध के लिए एक बड़ा बढ़ावा होगा।

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