नई दिल्ली : भारत के अग्रणी मल्टी-बिजनेस समूहों में शुमार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उदाहरण स्थापित करने वाली कंपनी आईटीसी लिमिटेड ने विभिन्न राज्य सरकारों के साथ साझेदारी के जरिये अपने अत्यंत प्रशंसाप्राप्त अभियानों इंटीग्रेटेड वाटरशेड डेवलपमेंट और एनवायरमेंटल रिसोर्सेज रिप्लेनिशमेंट को और मजबूत किया है। ये साझेदारियां विशेषरूप से जल संरक्षण एवं जैव विविधता संरक्षण पर केंद्रित हैं।
पिछले दशकों में आईटीसी ने न केवल संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करते हुए, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों को समृद्ध करते हुए लगातार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया है। आईटीसी दुनिया की ऐसी इकलौती कंपनी है जो पिछले 14 साल से कार्बन पॉजिटिव है, 17 साल से वाटर पॉजिटिव है और 12 साल से सॉलिड वेस्ट रीसाइकिलिंग पॉजिटिव है। आईटीसी में इस्तेमाल होने वाली 41 प्रतिशत से ज्यादा ऊर्जा की जरूरत को नवीकरणीय स्रोतों से पूरा किया जाता है। आईटीसी के वनीकरण अभियान से 7,76,000 एकड़ से ज्यादा भूमि हरित हुई है। इसकी वाटरशेड निर्माण की पहल के दायरे में 10 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन लाभान्वित हुई है। वहीं इसके ठोस कचरा प्रबंधन अभियान “वेल बीइंग आउट ऑफ वेस्ट' (वॉव) से देशभर में 1 करोड़ से ज्यादा नागरिक जुड़े हैं। आईटीसी देश में ग्रीन बिल्डिंग मूवमेंट के क्षेत्र में भी अग्रणी है। देशभर में आईटीसी की 25 प्लेटिनम रेटेड ग्रीन बिल्डिंग हैं। समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुए की गई इसकी कुछ अन्य उल्लेखनीय पहल में महिला सशक्तीकरण, प्राथमिक शिक्षा, कौशल एवं वोकेशनल ट्रेनिंग, पशुधन विकास, स्वास्थ्य एवं सफाई तथा अन्य शामिल हैं। आईटीसी के विभिन्न कारोबार में अब तक 60 लाख से ज्यादा लोगों के लिए टिकाऊ आजीविका का प्रबंध हुआ है।
आईटीसी में क्वालिटी एश्योरेंस, आईटीसी लाइफ साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी सेंटर, सेंट्रल प्रोजेक्ट्स ऑर्गनाइजेशन और एनवायरमेंट, हेल्थ एंड सेफ्टी की संपूर्ण निगरानी की जिम्मेदारी संभालने वाली कॉरपोरेट मैनेजमेंट कमेटी के मेंबर श्री चितरंजन धर ने अपनी पर्यावरण संरक्षण की पहल को मजबूती देने के कंपनी के लक्ष्य पर कहा, "भविष्य में कोविड-19 के बाद बनी परिस्थितियों में सस्टेनेबिलिटी एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में हमारी पहल और विस्तार लेगी। लॉकडाउन के दौरान हमने देखा कि प्रकृति ने स्वयं को किस तरह समृद्ध किया और आगे लोग विभिन्न कंपनियों से उम्मीद करेंगे कि वे पर्यावरण को समृद्ध करने व संरक्षित करने की दिशा में अहम कदम उठाएं। आईटीसी में हमारा मानना है कि एक टिकाऊ भविष्य के लिए पर्यावरण को पुनः समृद्ध बनाने और जलवायु परिवर्तन की समस्या को दूर करने की दिशा में कदम उठाना जरूरी है। भविष्य की दृष्टि से बेहतर कंपनी वही है जो समाज के लिए बेहतर परिणाम देते हुए पर्यावरण को समृद्ध करने और सतत आजीविका निर्माण के साथ प्रतिस्पर्धी विकास को बढ़ावा दे। इंटीग्रेटेड वाटरशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम, बड़े पैमाने पर वनीकरण अभियान, नवीकरणीय ऊर्जा एवं ग्रीन बिल्डिंग की दिशा में हमारी उपलब्धियां जिम्मेदार प्रतिस्पर्धा की दिशा में हमारी सफलता के कुछ पड़ाव हैं। यह जिम्मेदार प्रतिस्पर्धा की भावना एक ऐसी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था है जिसमें सतत एवं समावेशी विकास सुनिश्चित करते हुए भविष्य के लिए तैयार रहने की आईटीसी की रणनीति भी झलकती है।"
आईटीसी का यह भी मानना है कि जैव विविधता संरक्षण और जल संरक्षण पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण घटक हैं, क्योंकि वन एवं अन्य बायोमास प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करते हैं, जो भूमिगत जलस्तर को सुधारने और जल प्रवाह को बेहतर बनाने में भूमिका निभाते हैं। वर्तमान समय में इस पर ध्यान देना इसलिए भी ज्यादा प्रासंगिक है, क्योंकि दुनिया इस समय बेहद महत्वपूर्ण इकोलॉजिकल संतुलन के लिए जैव विविधता संरक्षण पर नए सिरे से ध्यान दे रही है।
आईटीसी की जल संरक्षण पहल : आईटीसी के वाटरशेड अभियान ने देश में 10 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन को कवर किया है। इस प्रोग्राम के तहत कंपनी ने आपूर्ति बढ़ाने और मांग को प्रबंधित करने की दिशा में एक व्यापक प्रक्रिया को अपनाया है। आपूर्ति की दिशा में एरिया ट्रीटमेंट, वाटर हार्वेस्टिंग, ग्राउंडवाटर रिचार्ज और जैव विविधता संरक्षण के कदम शामिल हैं और मांग प्रबंधन का लक्ष्य किसी क्षेत्र में होने वाली मुख्य फसल में जल के बेहतर प्रयोग को बढ़ावा देना है। तमिलनाडु स्थित आईटीसी की कोवई पेपरबोर्ड्स फैक्ट्री भारत की इकलौती फैक्ट्री है, जिसे जल संरक्षण के क्षेत्र में अलायंस फॉर वाटर स्टेवार्डशिप प्लेटिनम लेवल सर्टिफिकेशन मिला है। यह इस क्षेत्र में दुनिया का सर्वोच्च सम्मान है।
आईटीसी के इंटीग्रेटेड वाटर मैनेजमेंट अप्रोच से उत्पादन बढ़ने व सिंचाई क्षेत्र बढ़ने से किसानों का ही लाभ नहीं हुआ है, बल्कि जल के बेहतर प्रयोग से जल संरक्षित होना भी इसकी सफलता है
आईटीसी के जल संरक्षण अभियान में समाज की भागीदारी भी सुनिश्चित की गई है। इसमें भूमि कटाव को रोकने, नमी बढ़ाने, वर्षा जल संचयन और भूजल रिचार्ज के लिए सस्ती टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। आईटीसी के जल संरक्षण अभियान के लाभ बहुमुखी और बहुउद्देश्यीय हैं।
पानी की कमी लगातार चिंता का विषय बन रही है और ऐसे में आईटीसी सतत रूप से इंटीग्रेटेड वाटर मैनेजमेंट अप्रोच अपना रही है, जिसमें कंपनी की यूनिट्स में जल संरक्षण एवं वर्षाजल संचयन की दिशा में निवेश किया जाता है। ज्यादा बड़े हिस्से को कवर करने और इसका दायरा बढ़ाने के लिए आईटीसी ने राज्य सरकारों के विभागों, मनरेगा जैसे कार्यक्रमों और 5.6 लाख एकड़ क्षेत्र में वाटरशेड डेवलपमेंट के लिए नाबार्ड से गठजोड़ भी किया है।
इसी तरह से मांग प्रबंधन के तहत आईटीसी ने महाराष्ट्र के 4 जिलों में चार सिंचाई योजनाओं के तहत आने वाले 2.42 लाख एकड़ क्षेत्र में वाटर प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए राज्य के जल संसाधन विभाग से अहम गठजोड़ किया है। इस गठजोड़ का लक्ष्य सरकार के 'मोर क्रॉप पर ड्रॉप' (हर बूंद से ज्यादा उपज) अभियान को समर्थन देना और बांधों से फसल के लिए जल की मांग को कम करना है।
बड़े पैमाने पर उठाए जा रहे ये कदम एक अर्थपूर्ण उदाहरण बनेंगे और इस क्षेत्र में किसानों के लाभ के लिए ऐसे कई लाभदायक अभियानों की प्रेरणा मिलेगी।
आईटीसी के जैव विविधिता प्रबंधन अभियान : जैव विविधता को सुधारने के लिए आईटीसी महाराष्ट्र और तेलंगाना में वन विभागों के साथ गठजोड़ कर रही है, जिससे जमीन की नमी को संरक्षित करते हुए वन क्षेत्र को बढ़ाना एवं फ्रिज एरिया विकसित करना है। कंपनी राजस्थान में चरागाहों के पुनर्विकास के लिए राज्य के बंजर भूमि एवं चरागाह विकास बोर्ड के साथ भी गठजोड़ कर रही है। इन गठजोड़ों से 11 जिलों में 79,000 एकड़ वन भूमि और 2.47 लाख एकड़ चरागाह भूमि पर प्रभाव पड़ेगा।
एक जिम्मेदारी कंपनी के तौर पर आईटीसी महामारी के दौरान और इसके बाद विभिन्न पहल के जरिये अपने पर्यावरण संरक्षण अभियान को और मजबूती देने और विस्तार देने के लिए प्रतिबद्ध है। कंपनी का मानना है कि कारोबार समाज का एक अंदरूनी अंग है जो पर्यावरण को समृद्ध करने के साथ-साथ सामाजिक मूल्य निर्माण में आमूलचूल बदलाव ला सकता है। इसी धारणा के साथ आईटीसी ऐसे बिजनेस मॉडल तैयार करने की दिशा में प्रयासरत है, जिनमें सामाजिक व पर्यावरण से जुड़ी पूंजी और आर्थिक संपदा दोनों का निर्माण एक एकीकृत रणनीति की तरह काम करे।