राजनांदगांव । कलेक्टर संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में मिशन जल रक्षा अंतर्गत जिला पंचायत के सभाकक्ष में कृषि विभाग, उद्यानिकी विभाग, औद्योगित संस्थाओं के प्रतिनिधि, किसान उत्पादक संगठन, उन्नतशील एवं समृद्ध किसान, महिला समूह, संकुल संगठनों की बैठक सह कार्यशाला का आयोजन किया गया। कलेक्टर श्री अग्रवाल ने कहा कि गंभीर चिंता का विषय है कि जिले में भू-जल स्त्रोत का स्तर लगातार नीचे चला जा रहा है। यदि अभी हमने जल का संरक्षण नहीं किया और सजग नहीं हुए तो आने वाले समय में जल संकट की स्थिति बन सकती है। पहले पिछले 10 वर्ष में 100 से 150 फीट में बोर कराने से पानी आ जाता था, लेकिन भू-जल स्तर अब इतना कम हो गया है कि 400-600 फीट नीचे चला गया है। ग्लोबल वार्मिग के दुष्प्रभाव के कारण भीषण गर्मी बढ़ी है। वहीं पानी का अत्यधिक दोहन होने के कारण भी जल संकट की स्थिति बन रही है। जिले में मिशन जल रक्षा के तहत जल संरक्षण के साथ ही पौधरोपण भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा यह कर्तव्य है कि पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिए अपना योगदान देते हुए समाज के प्रति दायित्व निभाएं। किसानों को रबी सीजन में धान के बदले कम पानी की आवश्यकता वाले फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने सभी कृषि अधिकारियों से कहा कि किसानों को रबी सीजन अंतर्गत उद्यानिकी फसलें दलहन, तिलहन एवं कम पानी की आवश्यकता वाले फसल लगाने के लिए प्रेरित करें। इसके लिए सोच बदलने की जरूरत है तथा छोटे किसानों को क्लस्टर में सामूहिक खेती करने के लिए तथा उद्यानिकी फसलों एवं दलहन व तिलहन के फसलों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करें।
कलेक्टर श्री अग्रवाल ने बताया कि पिछले वर्ष रबी मौसम में अधिक मात्रा में धान की खेती के लिए 42 हजार पंप के माध्यम से सिंचाई करने से भू-जल स्तर 18 मीटर नीचे चला गया है। आने वाले समय में जल संकट की स्थिति की संभावना है। कलेक्टर ने इसे ध्यान में रखते हुए किसानों को धान के स्थान पर कम पानी उपयोग वाली फसलों की खेती करने की सलाह दी है। उन्होंने किसानों को ऐसी फसल लेने के लिए प्रेरित करने कहा जिसमें कम पानी का उपयोग हो और उत्पादन लागत कम लगे और अधिक उत्पादन हो सके। उन्होंने बताया कि धान की अपेक्षा दलहन, तिलहन, मक्का जैसी फसलों में एक तिहाई या एक चौथाई पानी का उपयोग होता है। धान की फसल में 1500 लीटर से अधिक पानी की जरूरत होती है। जबकि मक्का, कोदो, रागी एवं अन्य फसलों में एक तिहाई से कम पानी की आवश्यकता होती है। जल संकट एक गंभीर विषय है और इस पर विचार करते हुए हमें योजनाबद्ध तरीके से समाज एवं लोगों की बेहतरी के लिए कार्य करना है। उन्होंने कहा कि अभी उपयुक्त समय है किसानों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्रदान करें। धान की फसल में उत्पादन लागत अधिक लगता है और आय कम होती है। इसी जगह मक्का या उद्यानिकी जैसी फसल लगाने से उत्पादन लागत कम लगता है और आय अधिक होती है।
कलेक्टर श्री अग्रवाल ने ग्राम पटेवा के किसानों द्वारा खरीफ मौसम में 150 एकड़ में मक्के की फसल लेने वाले किसानों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि बारिश के समय में मक्के की खेती करना बहुत अच्छी सोच है। उन्होंने कहा कि मक्के की खेती में निंदाई, रासायनिक खाद एवं उर्वरकों की जरूरत नहीं होती है। यह कम पानी के उपयोग से अच्छी पैदावार होती है। कलेक्टर ने ग्राम केसला में किसानों द्वारा बड़े रकबे में सरसो की खेती करने पर सराहना की। कलेक्टर श्री अग्रवाल ने किसानों को समूह में खेती करने के लिए प्रेरित करने कहा। जिससे फसल की देखरेख आसानी से कर सके। जिले के उन्नत किसानों द्वारा धान फसल नहीं लेते हैं इसकी जगह अन्य फसलों का उत्पादन करते हैं। जिससे उत्पादन लागत कम लगती है और उत्पादन क्षमता बढ़ती है। उन्होंने किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाली मक्का एवं अन्य दलहन-तिलहन फसलों के बीज उपलब्ध कराने कहा। जिससे किसानों को अच्छी पैदावार मिल सके और उन्हें किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिए। कलेक्टर श्री अग्रवाल ने उपस्थित सभी लोगों को पानी बचाने और उसके विवेकपूर्ण उपयोग की शपथ दिलाई।
जिला पंचायत सीईओ सुरूचि सिंह ने कहा कि भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए लगातार जल संवर्धन के क्षेत्र में कार्य किए जा रहे हैं। जिले में लगातार भू-जल स्तर नीचे जाने से यह चिंता का विषय है। इससे पेयजल की समस्या आ सकती है। इसे रोकने का प्रयास करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि रबी मौसम में धान की जगह कम पानी उपयोग वाली अन्य फसल लेने के लिए किसानों को मिशन मोड में जागरूक करना है। उन्होंने धान की अपेक्षा मक्का फसल एवं अन्य फसलों में अधिक उत्पादन और आय के संबंध में जानकारी देने कहा। उन्होंने सभी ग्राम संगठनों, संकुल संगठनों एवं महिला समूहों को ग्राम के किसानों को जागरूक करने कहा। बैठक में उन्नतशील एवं समृद्ध किसानों ने कहा कि समृद्ध किसान बनने के लिए धान की खेती को छोड़कर अन्य फसल का उत्पादन करना होगा। उन्होंने कहा कि धान फसल में अधिक देखरेख और लागत लगती है, जबकि मक्का एवं अन्य उद्यानिकी, दलहन-तिलहन फसलों में लागत कम लगती है और मुनाफा अधिक होता है। बैठक में उप संचालक कृषि नागेश्वर लाल पाण्डेय, सहायक संचालक उद्यानिकी राजेश शर्मा, अनुविभागीय कृषि अधिकारी, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, औद्योगित संस्थाओं के प्रतिनिधि, किसान उत्पादक संगठन, उन्नतशील एवं समृद्ध किसान, महिला समूह, संकुल संगठनों तथा अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।