नई दिल्ली: अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी है। ग्लोबल इकॉनमी में उसकी हिस्सेदारी दो दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंचने की राह पर है। आईएमएफ के मुताबिक ग्लोबल इकॉनमी में अमेरिका की हिस्सेदारी 26 फीसदी पहुंचने का अनुमान है। यह दो दशक में सबसे ज्यादा है। एक दशक पहले देश की हिस्सेदारी यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन के कंबाइंड कंट्रीब्यूशन से ऊपर पहुंची थी। आज वर्ल्ड इकॉनमी में अमेरिका का योगदान यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन के कंबाइंड कंट्रीब्यूशन से पांच फीसदी अधिक हो चुका है। इस बीच ग्लोबल इकॉनमी में चीन की हिस्सेदारी 2021 से लगातार घट रही है। 2024 में इसके 17 फीसदी रहने का अनुमान है। अमेरिका और चीन के बीच अंतर लगातार बढ़ रहा है और अमेरिका कभी भी इतनी मजबूत स्थिति में नहीं था।
करीब दो दशक तक दुनिया की फैक्ट्री रहा चीन आज आर्थिक मोर्चे पर कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहा है। देश की रियल एस्टेट सेक्टर गहरे संकट में है। चीन की इकॉनमी में इस सेक्टर का करीब एक तिहाई योगदान है। रियल एस्टेट के डूबने से बैंकिंग सेक्टर भी गहरे संकट में हैं। विदेशी कंपनियां और निवेशक चीन से मुंह मोड रहे हैं। कोरोना काल के बाद कई विदेशी कंपनियां चाइना प्लस वन की पॉलिसी पर आगे बढ़ रही हैं। देश में बेरोजगारी चरम पर है और अमेरिका के साथ तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। कई मुद्दों पर चीन और अमेरिका में ठनी हुई है। चीन सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नियमों के सख्त बनाया है। यही वजह है कि विदेशी कंपनियां वहां अपना बोरिया बिस्तर समेट रही हैं।
भारत का हिस्सा
साल 2006 में ग्लोबल इकॉनमी में यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन की हिस्सेदारी 30 फीसदी थी जो अब करीब 21 फीसदी रह गई है। चीन की हिस्सेदारी 2006 में पांच फीसदी थी जो 2020 में 19 फीसदी के करीब पहुंच गई थी। लेकिन 2021 से इसमें लगातार गिरावट आई है और इस साल उसके 17 फीसदी रहने का अनुमान है। इस दौरान जापान की हिस्सेदारी भी घटकर चार फीसदी रहने का अनुमान है। साल 2006 में ग्लोबल इकॉनमी में जापान की हिस्सेदारी करीब आठ फीसदी थी। अगर भारत की बात करें तो भारत की हिस्सेदारी ग्लोबल इकॉनमी में लगातार बढ़ रही है। इस साल उसके जापान के बराबर चार फीसदी पर पहुंचने का अनुमान है। भारत अभी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी है और जल्दी ही उसके जापान को पछाड़ने की उम्मीद है।