बिलासपुर । जमीन विवाद के दौरान हुए हत्या के मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि झगड़ा जमीन की सुरक्षा के लिए था। हत्या करना किसी का उद्देश्य नहीं था। इसलिए यह हत्या न होकर मानव वध की श्रेणी में आएगा। कोर्ट ने आरोपियों की सजा को पर्याप्त मानते हुए छोडऩे का आदेश दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस आरसीएस सामंत और जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल की डिवीजन बेंच में हुई।
मेहतर, महादेव, ईश्वर, मंगडू, कमलवती, सीताराम ने अधिवक्ता प्रवीण तुलस्यान के माध्यम से हाईकोर्ट में आपराधिक रिट अपील प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा को चुनौती दी। कोर्ट में बताया 31 मई 2010 को जगदलपुर के ग्राम बिलौरी में स्थित जमीन को लेकर याचिकाकर्ता और दूसरे पक्ष में विवाद हुआ। यह विवाद बढ़ा जो मारपीट का रूप ले लिया। इसमें व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही कुछ लोग घायल हो गए। मामले में पुलिस ने धारा 302, 307 व 34 के तहत अपराध दर्ज कर याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
वहीं मामले की सुनवाई करते हुए सत्र न्यायालय ने सभी को सजा सुना दी। मामले में याचिकाकर्ताओं के तरफ से तर्क दिया गया कि जिनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है उनमें से दो कोर्ट कर्मचारी हैं, वहीं एक घरेलू महिला और शेष खेती-बाड़ी का काम करने वाले हैं। निचली अदालत में इसका साक्ष्य दिया गया, लेकिन इसे अमान्य कर दिया गया। उनके बचाव साक्ष्य को नहीं माना गया। हाईकोर्ट ने इस अपील पर बचाव साक्ष्य को माना। कोर्ट ने उन्हें अपराध में संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया।
वहीं बाकी के लिए कहा कि खेत में हुई यह घटना हत्या के उद्देश्य से नहीं हुई। इसलिए यह हत्या की श्रेणी में न आकर मानव वध की श्रेणी में आता है। जमीन विवाद में जमीन की सुरक्षा के लिए दोनों पक्षों में झगड़ा हुआ, उनका उद्देश्य हत्या करना नहीं था। साथ ही कहा कि बचाव साक्ष्य की वैल्यू भी अभियोजन साक्ष्य के बराबर होती है। इसलिए कोर्ट को चाहिए कि दोनों पर बराबर विचार कर ही फैसला देना चाहिए। कोर्ट ने हत्या की धारा 302 को धारा 304 (1) माना और इसके लिए बिताई गई सजा को पर्याप्त माना।