थाईलैंड में समलैंगिक शादी को मिली कानूनी मान्यता:संसद में बिल पास

Updated on 19-06-2024 01:18 PM

थाईलैंड में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता मिल गई है। थाई संसद में मंगलवार (18 जून) को इस बिल पर वोटिंग हुई। इस दौरान 130 सांसदों ने इसके पक्ष में तो 4 ने इसके खिलाफ वोट किया। कुछ सांसदों ने इससे दूरी बनाई। थाईलैंड ऐसा करने वाला दक्षिण पूर्व एशिया का पहला ऐसा देश बन गया है।

अब इस बिल को राजा महा वजिरालोंगकोर्न के पास मान्यता देने के लिए भेजा जाएगा। उनकी सहमति मिलने के बाद इसे राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा और 120 दिन बाद ये लागू हो जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल अक्टूबर की शुरुआत में थाईलैंड में पहली वैध समलैंगिक शादी होगी।

थाईलैंड में 20 सालों से समलैंगिक शादी को वैध करने की मांग उठ रही थी। अब ये कानून बन जाने के बाद 18 साल या इससे अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति समलैंगिक शादी कर सकता है। इससे पहले फरवरी में इस बिल को संसद के सामने पेश किया गया था। लेकिन तब सांसदों ने इसे खारिज कर दिया था।

समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने वाला एशिया का तीसरा देश बन जाएगा थाईलैंड
LGBTQ+ समुदाय राजधानी बैंकॉक में जून के अंत में एक बड़ी रैली निकालेगा, जिसमें थाईलैंड के प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन भी शामिल होंगे। थाईलैंड एशिया का तीसरा ऐसा देश बन जाएगा, जिसने समलैंगिक शादी को वैध किया है। इससे पहले ताइवान और नेपाल भी इसे वैध कर चुके हैं।

थाइलैंड की संसद में ये फैसला प्राइड मंथ के दौरान हुआ है। दरअसल, दुनिया भर में जून महीने को प्राइड मंथ के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है।

क्या होता है प्राइड मंथ?
साल 1969 में जून के महीने में अमेरिका के मैनहटन के 'स्टोनवॉल इन' में पुलिस ने LGBTQ समुदाय के लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की थी। कई LGBTQ बार में घुसकर मारपीट की गई। समुदाय के लोगों को गिरफ्तार कर उन्‍हें जेल में डाल दिया गया। उस समय तक LGBTQ को कोई कानूनी अधिकार नहीं मिले हुए थे।

इसके बाद LGBTQ समुदाय के लोगों ने पुलिस के अत्‍याचारों का विरोध किया। अगले साल बड़ा आंदोलन हुआ। 1970 में जून के आखिरी हफ्ते के दौरान न्यूयॉर्क सिटी में पहली 'प्राइड मार्च' का आयोजन किया गया। इसके बाद से जून के महीने को प्राइड मंथ के तौर पर मनाया जाने लगा। हालांकि तब इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी। पूर्व अमेरिकी राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन ने साल 2000 में पहली बार 'प्राइड मंथ' की घोषणा की।

LGBTQ झंडा बनने का किस्सा
बात है साल 1978 की है। गिल्बर्ट बेकर एक गे राइट्स एक्टिविस्ट और आर्टिस्ट थे। LGBTQ समुदाय के लोगों ने अपने हक की लड़ाई के लिए झंडे की डिमांड की थी। तभी इंद्रधनुष से प्रेरणा लेकर गिल्बर्ट ने ये झंडा डिजाइन किया।

इस झंडे के जरिए वे विविधता की अहमियत दिखाना चाहते थे। उन्होंने 8 रंगों वाला झंडा डिजाइन किया था। हर रंग किसी न किसी चीज को जाहिर करता है। जैसे गुलाबी रंग शारीरिक संबंध को, लाल रंग जीवन को, नारंगी रंग मेडिकल, पीला रंग सूर्य को, हरा रंग शांति को, फिरोजी रंग आर्ट को, नीला रंग सामंजस्य को और बैंगनी आत्मा को दर्शाता था।

1979 के LGBTQ परेड में इसमें से दो रंग गुलाबी और फिरोजी को हटा दिया गया। और अभी इस झंडे में 6 रंग ही हैं।

दुनिया में समलैंगिकों की मौजूदा स्थिति क्या है?

  • PEW रिसर्च सेंटर ने LGBTQ+ समुदाय पर रिसर्च करने के बाद बताया कि कनाडा में सबसे ज्यादा 85% और US में 72% लोग LGBTQ+ को स्वीकार करते हैं।
  • लंबी लड़ाई के बाद आज फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, अमेरिका समेत दुनिया के 31 देशों के संविधान में सेम सेक्स के बीच शादी लीगल है।
  • भारत में 2018 तक सेम सेक्स के बीच शादी अपराध थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।
  • मूड ऑफ द नेशन के सर्वे के मुताबिक भारत में 62% लोग सेम सेक्स के बीच शादी को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। इससे जाहिर होता है समाज अब भी LGBTQ+ को पूरी तरह स्वीकार नहीं करना चाहता है।
  • यमन, ईरान, ब्रुनेई, नाइजीरिया, कतर समेत दुनिया के 13 देशों में आज भी सेम सेक्स रिलेशन वाले जोड़ों को मौत की सजा दी जाती है।

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर 2023 को सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता। कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी। जस्टिस हिमा कोहली को छोड़कर फैसला चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा ने बारी-बारी से फैसला सुनाया।



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