नई दिल्ली: महिला ग्रैंड मास्टर और इंटरनेशनल मास्टर तानिया सचदेव पिछले दिनों हंगरी के बुडापेस्ट में आयोजित चेस ओलिंपियाड में गोल्ड जीतने वाली भारतीय महिला टीम की सबसे अनुभवी सदस्य थीं। करीब छह साल की उम्र से चेस खेल रहीं 38 वर्षीय तानिया को इस चेस ओलिंपियाड में पांच गेम मिले, जिसमें से उन्होंने दो जीते और तीन बाजी ड्रॉ खेल कर टीम में अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया। पिछले 32 सालों से भारत में चेस की हमसफर रहीं तानिया ने चेस ओलिंपियाड में भारत की ऐतिहासिक स्वर्णिम सफलता से लेकर इस खेल के कई पहलुओं पर बातचीत की। पेश है मुख्य अंश...कितने साल का इंतजार रहा। कब से आप चेस ओलंपियाड में भाग ले रही हैं?
इंतजार तो काफी लंबा रहा। करीब 16 साल का। वैसे तो मैं छह साल की उम्र से ही चेस खेल रही हूं लेकिन अपना पहला ओलिंपियाड साल 2008 में खेला। इन 16 सालों के दौरान कई बार हम मंजिल के करीब पहुंचकर बहुत दूर रह गए, लेकिन बुडापेस्ट में हमने वो हासिल कर ही लिया जिसके लिए मैं इस सफर पर चली थी।
सफर लंबा हो जाए तो कई बार थकावट सी भी महसूस होने लगती है। क्या इन 16 सालों के दौरान कभी सफर से पीछे हटने का मन किया?
जी, जब आप लगातार विफल होते हैं तो दिल छोटा हो जाता है, मनोबल भी टूटता है। थकान महसूस होती है। कुछ ऐसे पल भी आए जब ऐसा खयाल आया। मैंने आठ ओलिंपिक्स खेले और आखिरकार यह गोल्ड आया है। हम कभी चौथे पर रहे, कभी पांचवें स्थान पर रहे। चेन्नई में सभी ने देखा कि कैसे लास्ट राउंड में गोल्ड हमारे हाथ से फिसल गया और हम तीसरे स्थान पर रहे। चेन्नई के बाद बहुत मुश्किल हो गया था, उस हार के साथ समझौता कर पाना। तब इस खेल के साथ जुड़े रहना मेरे लिए आसान नहीं था। मुझे लगने लगा था कि चेन्नई में मैंने अपना आखिरी ओलिंपियाड खेल लिया, लेकिन शुक्रगुजार हूं कि मुझे एक और मौका मिला और आखिरकार मेरे लंबे करियर को एक मंजिल मिल गई।
अब क्या ख्याल आ रहा है। क्या इस मंजिल पर ही खेल को विराम देने का विचार है या फिर खेल जारी रहेगा?
मैं झूठ नहीं बोलूंगी। सच कहूं तो ऐसे विचार आते हैं। मैंने अपने जीवन के 31 साल चेस को दिए हैं और इसलिए मैं जानती हूं कि मैं हमेशा चेस के साथ तो जुड़ी ही रहूंगी। चाहे वो ब्रॉडकास्ट कमेंट्री करियर के जरिये ही हो, जोकि मेरे करियर का बहुत बड़ा पार्ट बन गया है। रही बात मेरे खेलने की तो यह मेरा पहला प्यार है। अब आगे क्या होगा इस पर फिलहाल जज्बाती होकर कोई फैसला नहीं लेने वाली हूं। सच तो यह है कि ऐसे खिताब आपके अंदर ऊर्जा भरते हैं और आपकी भूख को और बढ़ाते हैं, लेकिन अगर मैं अलगा ओलिंपियाड ना भी खेल पाऊं तो भी मुझे ज्यादा बुरा नहीं लगेगा। इतना जरूर है कि जो मुझे शिद्दत से चाहिए था उसे मैंने हासिल कर लिया है
आप कमेंट्री करियर के बारे में कुछ बोल रही थीं। थोड़ा विस्तार से बताइये।
चेस की कमेंट्री से जुड़ना मेरे लिए इस खेल से अपने रिश्ते को और भी गाढ़ा करने का जरिया बना। कमेंट्री मेरे लिए कोई काम नहीं है, जैसे मुझे चेस खेलना पसंद है वैसे ही मुझे कमेंट्री भी बहुत पसंद है। मेरा सबसे बड़ा सपना था कि चेस का भी टीवी पर प्रसारण हो, लाखों लोग इस देखें, इस खेल के साथ लोग खुद को कनेक्ट कर सकें। मैं कमेंट्री करती हूं तो मुझे नजर आ रहा है कि लोगों का प्यार इस खेल को मिलने लगा है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में इसकी लाइव व्यूअरशिप बहुत बढ़ेगी। मुझे खुशी है कि इस बदलाव को लाने में एक खिलाड़ी के साथ-साथ कमेंटेटर के तौर पर भी मैं एक भूमिका निभा रही हूं।
चेस में कमेंट्री में क्या चुनौतियां हैं? क्या सभी चेस प्लेयर्स के लिए यह करियर का विकल्प बन सकता है?
चेस की कमेंट्री सचमुच बहुत कठिन है। बहुत सारे खेल में चुप रहना ही बेस्ट कमेंट्री होती है, क्योंकि वहां तस्वीरें ही बहुत कुछ बोल जाती हैं। लेकिन चेस में तस्वीरें बात नहीं करतीं। चेस में सारा ऐक्शन प्लेयर्स के दिमाग में चल रहा होता है और आपकी काम प्लेयर के दिमाग में चल रहे ऐक्शन को लोगों तक पहुंचाना है। उन्हें बताना है कि प्लेयर ने जो चाल चली है उसकी खूबसूरती क्या है। जब तस्वीरें कुछ नहीं बोल रही हों तो भी उसे इंटरेस्टिंग बनाना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन मुझे चुनौतियां पसंद हैं। चेस की कमेंट्री ने भी एक लंबा रास्ता तय कर लिया है। दस साल पहले जो कमेंट्री होती थी और आज जो कमेंट्री होती है उसमें बड़ा फर्क आ चुका है और इस खेल के साथ नए प्रशंसकों के जुड़ने के पीछे यह एक बड़ी वजह है।
चेस को करियर के तौर पर अपनाना क्या जोखिम भरा फैसला हो सकता है? यदि चेस के खेल में कोई ज्यादा सफल नहीं होता है तो फिर करियर में उसके लिए आगे क्या संभावनाएं होती हैं।देखिये, खेल में तो यह होता ही है, यदि आपको सफलता चाहिए तो आपको उस खेल में शीर्ष पर होना होगा। यह किसी भी खेल के साथ है यदि आप उस खेल में अच्छा नहीं कर पा रहे हैं तो फिर करियर ग्राफ ज्यादा ऊपर नहीं जाएगा। जैसे अन्य खेलों में प्लेयर्स के पास कोचिंग का पसंदीदा विकल्प होता है वैसे ही चेस में भी कोचिंग एक करियर विकल्प रहता है। इसके अलावा अब स्ट्रिमिंग और कमेंट्री भी बेहतरीन विकल्प बनकर उभरे हैं। वैसे मेरा मानना है कि चेस में अब पहले जैसी बात नहीं रही है। इस खेल का पूरा इको सिस्टम बेहतर हुआ है। मेरे लिहाज से भारत में चेस का यह गोल्डन टाइम है और नई पीढ़ी इस खेल को और भी आगे लेकर जाने वाली है।