नई दिल्ली : फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (एफआईएमआई), दक्षिणी क्षेत्र ने कर्नाटक के खनन मंत्रालय से अपील की है कि वह राज्य में निर्यात पर प्रतिबंध के कारण बने असंतुलन को खत्म करने के लिए उचित तथ्यों के साथ तत्काल माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करे और कर्नाटक से लौह-अयस्क निर्यात की अनुमति मांगते हुए स्थिति के तुरंत समाधान की मांग करे
कर्नाटक में लौह-अयस्क के कारोबार पर प्रतिबंध के कारण सेक्टर का विकास प्रभावित हुआ है और इससे उद्योग के साथ ही सरकार के राजस्व पर बहुत से दुष्प्रभाव पड़े हैं। कर्नाटक में लौह-अयस्क की बिक्री पर यह प्रतिबंध 2011-12 की स्थिति को देखते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाया गया था। उस समय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत खनन गतिविधियां पूरी तरह रोक दी गई थीं। अनुमान के मुताबिक, लौह-अयस्क निर्यात पर प्रतिबंध के कारण 10 साल में कर्नाटक को करीब 29,058.8 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
बाकी पूरा देश भारत सरकार की आयात-निर्यात नीति के अनुरूप लौह-अयस्क का निर्यात करता है, जिससे विदेशी मुद्रा समेत राज्य के राजकोष में पर्याप्त राजस्व सुनिश्चित होता है, साथ ही रेलवे, बंदरगाह की सुविधाओं आदि के प्रयोग से देश का विकास भी होता है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में भारत के बाकी हिस्से से कुल 10.34 मिलियन मिट्रिक टन फाइन्स और 1.16 मिलियन मिट्रिक टन लप्स का निर्यात हुआ था।
वहीं, इसी अवधि में कर्नाटक पीछे रह गया था, जबकि नीलामी वाली सी कैटेगरी लीज और एक्सपायर्ड लीज से अतिरिक्त उत्पादन के कारण राज्य में 5.19 मिलियन मिट्रिक टन फाइन्स का सरप्लस है। बाहर से किसी आपूर्ति के बिना कर्नाटक में लीज से प्राप्त लौह-अयस्क से संपूर्ण घरेलू मांग पूरी होने के बाद भी सरप्लस लौह-अयस्क बचा रह जाएगा, इसलिए तत्काल एक वैकल्पिक बाजार की जरूरत है।
कर्नाटक में करीब 70 प्रतिशत आपूर्ति एक बड़ी स्टील कंपनी को होती है। ये प्रतिबंध बाजार को भी प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि खरीदार के पास कारोबार की आजादी है अर्थात उसे किसी ई-नीलामी या अन्य राज्य से या विदेश से आयात करने का भी अधिकार है। इस कारण से एक ऐसा बाजार तैयार हो गया है, जहां विक्रेता को केवल घरेलू बाजार में ही बिक्री की अनुमति है, जबकि खरीदार कहीं से भी खरीद सकता है।
वर्तमान समय में लौह-अयस्क का मूल्यांकन आईबीएम कीमत के आधार पर होता है। इस पर ई-नीलामी के कारण बनने वाले एकाधिकार से प्रभाव पड़ता है। ज्यादा पैमाने पर आयात (कई बार स्थानीय अयस्क से ज्यादा कीमत पर) के दबाव में नीलामीकर्ताओं की बिक्री पर प्रभाव पड़ता हैकई बार तो लौह-अयस्क कई महीने या कई साल बिना बिके पड़े रह जाते हैं। इसी के साथ, कर्नाटक के लिए आईबीएम इंडेक्स कीमत भी बहुत कम है। जनवरी, 2018 से मई, 2019 के बीच लौह-अयस्क की कीमतें कर्नाटक में 18.7 प्रतिशत तक कम हो गई हैं, जबकि ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ में आईबीएम कीमतें क्रमशः केवल 2.7 प्रतिशत और 7.7 प्रतिशत ही कम हुई हैं।
ई-नीलामी में लौह-अयस्क की घटी हुई कीमतों से कर्नाटक सरकार को मिलने वाले शुल्क पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह शुल्क बिक्री की मात्रा एवं कुल मूल्य के आधार पर निश्चित होता है। राज्य का राजस्व बिक्री मूल्य के 30 प्रतिशत के बराबर है। इसलिए सही कीमत मिलने से राज्य का राजस्व भी बढ़ेगा। इसी तरह से उसी दर पर निर्यात से भी राज्य को राजस्व मिलेगा। वहीं, जब खरीदार कर्नाटक में अयस्क का आयात करते हैं, तब राज्य को मात्र 2.5 प्रतिशत आयात शुल्क मिलता है।
2018-19 में राज्य में करीब 6.67 मिलियन मिट्रिक टन लौह-अयस्क का आयात हुआ था, जो कि स्थानीय स्तर पर उत्पादित लौह-अयस्क का विकल्प था। जाहिर है कि इस आयात के कारण खदानों में बिना । और कर्नाटक को राजस्व का नुकसान हुआ। इन आयात के कारण 8 मिलियन मिट्रिक टन के पुराने स्टॉक की बिक्री भी प्रभावित हुई है।