नई दिल्ली । यूपी विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले योगी सरकार का तीसरा मंत्रिमंडल विस्तार हुआ। सत्ता में दोबारा वापसी के प्रयासों में जुटी भाजपा सरकार और संगठन ने नए मंत्रिमंडल में शामिल सात मंत्रियों व चार एमएलसी के मनोनयन के जरिये न केवल जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है बल्कि युवाओं, महिलाओं के साथ ही अपनी ही पार्टी के चेहरों को तरजीह दी है। लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कैबिनेट का विस्तार क्यों किया गया सीएम योगी ने बताया कि हमारे मंत्रिमंडल में वैकेंसी थीं। हमने दुर्भाग्य से अपने तीन मंत्रियों (चेतन चौहान, कमल रानी वरुण, विजय कश्यप) को कोरोना वायरस महामारी में खो दिया। तीन मंत्रियों के खोने के अलावा, हमारे पास पहले से चार वैकेंसी थीं और इन्हें भी भरना था। इससे पहले, हमने अगस्त 2019 में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, लेकिन कोविड -19 महामारी फैलने के कारण आगे विस्तार नहीं कर सके। अब जब स्थिति अपेक्षाकृत आसान हो गई है, हमने चुनाव से पहले अगले पांच-छह महीनों के लिए भी विस्तार करने का फैसला किया।
सीएम योगी ने आगे बताया कि मेरा मानना है कि मैंने देश और दुनिया के सामने जो यूपी मॉडल पेश किया है, उसके लिए कैबिनेट में सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। मुझे खुशी है कि हमारे मंत्रिमंडल में सभी जातियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व किया गया है, और यह समाज के विभिन्न वर्गों के मंत्रियों से अनुभव प्राप्त करता है। सीएम योगी आदित्यनाथ इस बात को लेकर भी पूरी तरह से स्पष्ट हैं कि भारतीय किसान संघ (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन का पश्चिमी यूपी में कोई चुनावी प्रभाव नहीं पड़ेगा, जो कि अतीत में भाजपा का गढ़ रहा है। योगी ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारे प्रतिद्वंद्वी किसानों के आंदोलन को वित्तपोषित कर रहे हैं, जिसका प्रभाव केवल उन राज्यों में है जहां बिचौलिए या अराथिया काम करते हैं। यूपी में किसान फसल की खरीद और मुआवजे के लिए सीधे सरकार के संपर्क में है। चूंकि विपक्ष के पास कोई अन्य मुद्दा नहीं है, इसलिए वे इस तथाकथित किसान आंदोलन को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं।