डायबिटीज टाइप -1 के इलाज में कारगर होगी नैनोथेरेपी

Updated on 08-02-2022 06:56 PM

वाशिंगटन अमेरिका के वैज्ञानिकों का दावा है कि डायबिटीज टाइप -1 के इलाज में नैनोथेरेपी  कारगर होगी। अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी  के रिसर्चर्स द्वारा किए गए अध्ययन में इम्यूनोमॉड्यूलेशन  को और अधिक प्रभावी बनाने में मदद करने के लिए एक तकनीक की खोज की है।  इसमें प्रतिरोधी प्रतिरक्षा  को कम करने के लिए सामान्य तौर पर इस्तेमाल होने वाले रैपामाइसिन को री-इंजीनियर करने के लिए नैनोकरिअर्स  का प्रयोग किया गया है।

आपको बता दें कि टाइप 1 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन बनाना ही बंद कर देता है।ये एक |ऑटोइम्यून डिजीज है। मतलब शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन बनाने वाले अग्नाशय की कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें खत्म कर देती हैं।ऐसे रोगियों को रोजाना इंसुलिन इंजेक्शन सीरींज या किसी अन्य उपकरण से लेना पड़ता है।इसका कोई उचित सटीक वैकल्पिक इलाज नहीं होने से ताउम्र कष्ट सहना पड़ता है।कुछ दशक पूर्व आइलेट ट्रांसप्लांटेशन एक संभावित निदान के रूप में सामने आया था।लेकिन इम्यून सिस्टम द्वारा इसे रिजेक्ट किए जाने के कारण इसकी ज्यादा स्वीकृति नहीं मिली।

मौजूदा इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं प्रत्यारोपित कोशिकाओं और ऊतकों को पर्याप्त सुरक्षा तो प्रदान नहीं ही करती हैं बल्कि उसके कई दुष्प्रभाव भी होते हैं। नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के मैककॉर्मिक स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड माइक्रोबायोलाजी-इम्यूनोलोजी के एसोसिएट प्रोफेसर इवान स्कॉट के नेतृत्व में हुई इस स्टडी मे रिसर्चर्स ने रैपामाइसिन युक्त नैनोकरिअर के इस्तेमाल से एक नए किस्म का इम्यूनोसप्रेसर बनाया है, जो प्रत्यारोपण से जुड़ी विशिष्ट कोशिकाओं को इम्यून रिस्पांस को कम किए बगैर निशाना बनाता है।

रैपामाइसिन का इस्तेमाल अन्य प्रकार के इलाज और प्रत्यारोपण में भी किया जाता है, क्योंकि यह पूरे शरीर में कई प्रकार की कोशिकाओं का व्यापक प्रभाव डालता है।इसमें सबसे बड़ी चुनौती इसकी सही डोज तय करने की होती है, क्योंकि इसके विषाक्त प्रभाव भी होते हैं और कम डोज होने पर आइलेट प्रत्यारोपण (के मामले में पूरी तरह असरकारी नहीं हो पाता है

प्रत्यारोपण के बाद इम्यून सेल, जिसे टी सेल भी कहते हैं, नई बाहरी कोशिकाओं को रिजेक्ट कर देता है, इसलिए इसे रोकने के लिए इम्यूनोसप्रेसेंट  का इस्तेमाल किया जाता है।लेकिन इससे अन्य संक्रमणों से लड़ने की शरीर की क्षमता कमजोर पड़ जाती है।इसी के समाधान की दिशा में रिसर्चर्स ने ऐसे नैनोकरिअर और दवाओं का मिश्रण तैयार किया, जिसका ज्यादा विशिष्ट प्रभाव हो। ऐसे में सीधे तौर पर टी सेल को मॉड्यूलेट करने से बचकर एंटीजन प्रजेंटिंग सेल्स (एपीसी) को लक्षित करने के लिए नैनो पार्टिकल युक्त रैपामाइसिन बनाया।इससे इम्यून की एक्टिविटी को ज्यादा सटीक और नियंत्रित किया जा सकता है।


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