नई दिल्ली । मंडियों में नई तिलहन फसलों की आवक बढ़ने के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह बिनौला, मूंगफली, सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई। मंडियों में आवक काफी कमजोर होने से सरसों तथा सोयाबीन की नई फसल आने के बावजूद सोयाबीन तेल-तिलहन सहित बाकी तेल-तिलहनों के भाव पहलि की तरह बने रहे। बाजार सूत्रों ने कहा कि देश में पामोलीन, सीपीओ और सोयाबीन डीगम का आयात निरंतर बढ़ रहा है और आयातकों को 100-150 रुपए प्रति क्विंटल नीचे भाव पर इनकी बिक्री करनी पड़ रही है।
इन तेलों की व्यावसायिक मांग तो है, पर आयात अधिक मात्रा में होने से इनके स्थानीय भाव कमजोर हैं। उन्होंने कहा कि सोयाबीन तेल-तिलहन के भाव का रुख स्पष्ट नहीं है और भाव में स्थिरता नहीं है। नई फसल की आवक होने से अलग-अलग स्थानों पर इनके भाव भिन्न हैं। सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) का आयात शुरू होने से स्थानीय डीओसी को खपाने को लेकर चिंता बढ़ी है और इसी वजह से सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों पर दबाव है। इस दबाव के बावजूद त्योहारी मांग होने से सोयाबीन तेल-तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे।
बाजार के जानकारों का कहना है कि लगभग
दो महीने पहले जिस डीओसी का भाव 9,700-9,800 रुपए
क्विंटल के स्तर पर था, नई फसल
आने के बाद वह कीमत अब घटकर 4,700-4,800 रुपए
क्विंटल रह गई है। मूंगफली की नयी फसल आने की संभावना से पहले हाजिर बाजार में इसके भाव टूट गए हैं और किसानों को कम कीमत पर अपना माल बेचना पड़ रहा है। इसी प्रकार बिनौला की भी नये फसल की आवक शुरू होने के बीच इसके तेल के भाव कमजोर हो गए हैं।
मंडियों में सरसों की आवक शनिवार को घटकर एक लाख बोरी रह गई है। हालांकि, सरसों की दैनिक औसत मांग लगभग 3.5-4 लाख बोरी की है। सरसों विशेषज्ञों का कहना है कि सरसों का स्टॉक मुश्किल से 18-20 लाख टन बचा होने का अनुमान है। इसका कोई विकल्प भी नहीं है। इन तथ्यों के मद्देनजर ही सरकार को इसके बारे में कोई फैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बार सरकार को अधिक से अधिक मात्रा में सहकारी संस्थाओं के माध्यम से सरसों की खरीद करने का इंतजाम कर लेना चाहिये। गेहूं की तरह सरसों दाने का लगभग 10 लाख टन का स्थायी स्टॉक बनाकर रखना चाहिए क्योंकि सरसों दाना लगभग 10-12 साल खराब भी नहीं होता।