शोधार्थियों ने रक्त कैंसर ढूंढ निकाला इजाल

Updated on 07-02-2022 07:03 PM

वॉशिंगटन पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने रक्त कैंसर यानी ल्यूकेमिया के लिए इलाज ढूंढ निकाला है।इसके लिए डॉक्टरों ने दो मरीजों का चुनाव किया और उनके इम्यून सिस्टम को कैंसर से लड़ने के लिए सक्रिय करने की प्रक्रिया पर काम किया।लंबे समय तक यानी करीब एक दशक तक चले इस इलाज के बाद रोगियों में कैंसर की कोशिकाएं मौजूद नहीं थीं, उनमें ल्यूकैमिया के कोई लक्षण मौजूद नहीं थे।

अध्ययन के मुताबिक, ल्यूकेमिया के इलाज के लिए मरीजों को जो कार  टी  कोशिकाएं दी गई थी, वह इतने लंबे वक्त के बाद भी उनमें मौजूद थी।जिससे यह नतीजा निकाला गया है कि यह कोशिकाएं ल्यूकेमिया कोशिकाओं का खत्म करने में सक्षम है।इसे लेकर दक्षिण सैन फ्रांसिस्को में जेनेनटेक की कैंसर शोध विभाग की उपाध्यक्ष इरा मेलमैन का कहना है कि हालांकि अभी तक यह इलाज दो ही लोगों पर किया गया है, लेकिन इसका असर काफी हैरान करने वाला रहा है।इससे पता चलता है कि कोशिका आधारित कैंसर का इलाज भविष्य में कारगर साबित हो सकता है।

कार  टी  से इलाज को कुछ तरह के कैंसर के लिए अनुमति दी जा चुकी है, और सभी तरह के रक्त कैंसर किसी ना किसी प्रकार की कार  टी  कोशिका से उपचारित होगी.कार  टी  थेरेपी में, डॉक्टर मरीज की टी-कोशिका को निकालते हैं, जिसे आमतौर पर इम्यून सिस्टम के सिपाही के तौर पर जाना जाता है, फिर इन कोशिकाओं को प्रयोगशाला में री-इंजीनियर यानी कुछ संशोधन किया जाता है, जिससे यह कैंसर कोशिका की सतह पर मौजूद प्रोटीन को अपना शिकार बना सके।जब इन कार  टी कोशिका को वापस शरीर में डाला जाता है तो यह कोशिका पर मौजूद प्रोटीन सहित उसे खत्म कर देती है।

जिस मरीज पर इसका प्रयोग किया गया उसमे पाया गया कि यह कोशिकाएं करीब एक दशक तक जीवित रहीं, अब वैज्ञानिक यह खोजने में लगे है कि कैंसर को मारने वाली यह कोशिका इतने वक्त तक कैसे जीवित रहीं, इससे दूसरे मरीजों के इलाज में मदद मिल सकती है।कार-टी थेरेपी में आने वाली एक बाधा तो यह है कि आमतौर पर यह उपचार तब शुरू किया जाता है जब बाकी सारे तरीके नाकाम हो जाते हैं।वहीं अगर इसका उपयोग अगर शुरू से किया जाए तो देखा गया है कि पुराने लिम्फोसायटिक ल्यूकेमिया के मामले में 25 से 35 फीसद मरीजो में कैंसर के कम होने के लक्षण देखने को मिले वहीं दूसरे इलाज के साथ कार  टी को शुरु करने से यह 70 फीसद तक असरदार रहा।सभी मरीजों पर यह एक सा असर करे ऐसा ज़रूरी नहीं है, लेकिन जब यह असर दिखाता है तो वह हैरान करने वाला होता है।

हालांकि ठोस ट्यूमर पर असर दिखाने वाली कार  टी  कोशिका को अभी शोधार्थी खोज नहीं पाए हैं, जो ज्यादातर कैंसर का कारण बनता है।वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पर और खोज की ज़रूरत है।इसके अलावा एक बाधा और है।दरअसल, इसके उपचार की लागत ज्यादा है। मालूम हो किकैंसर  ऐसी बीमारी है, जिसे लेकर दुनिया भर में कई दशकों से खोज चल रही है, लेकिन हम इसे लेकर अभी तक संघर्ष ही कर रहे हैं।


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