तेहरान: ईरान ने कथित तौर पर यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझे रूस को कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें (सीआरबीएम) भेजी हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ईरान से रूस मिसाइलें जाने का दावा किया है। ईरान से फतेह-110, फतेह-360 और जोल्फघर सिस्टम मॉस्को डिलीवर किया गया है। फतेह 500 किलोग्राम पेलोड ले जाने में सक्षम है और जोल्फघर 700 किमी तक भारी हथियार ले जा सकता है। इन मिसाइलों के मिलने से रूस को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में सीधी मदद मिलने की उम्मीद है लेकिन सवाल है कि ईरान को इससे क्या हासिल होगा, जिसने अमेरिका को नाराजगी मोल लेकर ये सौदा किया है।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने कहा है कि रूस को इसी महीने, सितंबर की शुरुआत में ईरानी मिसाइलों की पहली खेप मिली है। मैक्सार टेक्नोलॉजीज की सैटेलाइट इमेजरी में रूसी जहाज पोर्ट ओल्या 3 दिखाया गया है, जिसमें कथित तौर पर ईरान के अमीराबाद बंदरगाह से रूस के अस्त्रखान तक मिसाइलों को ले जाया गया। रिपोर्ट से पता चलता है कि रूस ने अभी तक इन ईरानी निर्मित मिसाइलों को युद्ध में तैनात नहीं किया है लेकिन मॉस्को ने इसके इस्तेमाल के लिए अपनी सेनाओं को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है।
रूस को मिसाइलें भेजने से ईरान को क्या फायदा?
ईरान को रूस को बैलिस्टिक मिसाइल भेजने से तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के फायदे हैं। अटलांटिक काउंसिल के अनुसार, ईरान काफी समय से Su-35 लड़ाकू जेट और S-400 एयर डिफेंस समेत उन्नत रूसी सैन्य तकनीक हासिल करना चाहता है। रूस अभी तक तकनीक ट्रांसफर में झिझकता रहा है। मिसाइल डिलीवरी के बाद का माहौल ईरान तक सैन्य तकनीक पहुंचाने में मददगार हो सकता है।
जेम्स मार्टिन सेंटर फॉर नॉनप्रोलिफरेशन स्टडीज के हन्ना नोटे और जिम लैमसन की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान रूस की कई हथियार प्रणालियों पर नजर जमाए हुए है। 2022 के बाद से ईरानी सैन्य हार्डवेयर पर रूस की निर्भरता काफी बढ़ गई है। ईरान ने रूस को बड़ी संख्या में शहीद-136 ड्रोन की आपूर्ति भी की है। इन ड्रोनों का रूस ने यूक्रेन के ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर हमले करने में इस्तेमाल किया है। अब ईरान ने उसको बैलिस्टिक मिसाइलें देकर यूक्रेन के खिलाफ मजबूती दे दी है। ऐसे में ईरान को अब रूस से जरूरी सैन्य तकनीक मिल सकती है, जो उसको इजरायल जैसे अपने विरोधियों के खिलाफ मजबूती देगी।
ईरान को रूस के साथ बढ़ते सैन्य सहयोग से लाभ साफ दिखता है लेकिन यह जोखिम से खाली नहीं है। ईरान को अमेरिका और पश्चिम के नए प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है तो रूस को भी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। इस सबके बावजूद ईरान अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाते हुए क्षेत्र में बड़ी ताकत बनने पर ध्यान दे रहा है।