बिलासपुर । संभाग का एकमात्र जू बिलासपुर के पिंडारी गांव में स्थित है। यहां लगभग 600 से भी अधिक जंगली जानवर हैं. जिनमें जानवर और परिंदे भी शामिल हैं. यहां जानवरों के मौत के आंकड़े भी ज्यादा सामने आते रहते हैं. पिछले कुछ सालों में यहां कई जंगली जानवरों की मौत हो चुकी है. दो काले तेंदुए, शेर, बाघ, शुतुरमुर्ग, हिप्पो, तेंदुआ यहां बेहतर इलाज के अभाव में दम तोड़ चुके हैं
नहीं थम रहा जानवरों की मौत का सिलसिलाएक साथ 22 चीतलों की मौत का मामलाइसके अलावा एक बार में 22 चीतलों की मौत का मामला भी सामने आ चुका है. 22 चीतलों की मौत का कारण आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है. बीच-बीच में बीमार जानवरों की मौत भी होती रहती है. कानन पेंडारी जू को जू की मान्यता प्राप्त है. यहां वन्य प्राणियों के नियमों के हिसाब से जंगली जानवरों को रखने और उनकी देखरेख के साथ ही प्रजनन की व्यवस्था की जाती है. पिछले 1 साल में यहां एक दर्जन से भी अधिक जंगली जानवरों की मौत हो चुकी है. हाल ही में हिप्पोपोटेमस की मौत और कई जानवरों की मौत के साथ ही बाघ की भी मौत हुई है.
9 माह में 9 जानवरों की मौतकानन जू में एक के बाद एक वन्यजीवों की मौत होती रहती है. बात अगर पिछले साल की करें तो पिछले साल 6 से 9 माह यानी कि मार्च से लेकर दिसंबर तक 9 वन्य प्राणियों की जान जा चुकी है. हालांकि कानन के अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. कानन प्रबंधन कभी बीमार तो कभी उम्र दराज होने को मौत की वजह बता देता है. लेकिन सच्चाई यह है कि कानन में घायल और बीमार वन्यजीवों का सही तरीके से इलाज नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण वन्य प्राणियों की मौत हो रही है. बीते कुछ माह के मौत के संख्या पर नजर डाले तो अधिकांश वन्य प्राणी घायल थे, जिन्हें चोट लगी थी. इन वन्यजीवों को बचाने में कानन के चिकित्सक नाकाम साबित हो रहे हैं.
कानन में 600 से अधिक वन्य प्राणी हैं. लेकिन इनकी संख्या दिन-ब-दिन घटती ही जा रही है. कुछ वन्य प्राणी दूसरे जू को दे दिए गए. तो कई वन्य प्राणियों की मौत हो चुकी है. इस बीच जानवरों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. कानन जू में तेंदुआ, चीतल, बाघ, गौर, शुतुरमुर्ग जैसे बेशकीमती प्राणियों की मौत हो चुकी है.
लगातार हो रही जानवरों की मौतपिछले 1 साल में जानवरों की मौत लगातार बढ़ती जा रही है. यहां ओपन केज में रखने के लिए जानवरों की संख्या 12 के हिसाब से तैयार की गई है. लेकिन ओपन केज में 30 से 50 जानवर रखे गए हैं. यहां हिरण की लगभग 13 प्रजातियां है. इनकी संख्या 300 के करीब हैं. इसी तरह भालूओं की संख्या 7 है, इन्हें एक ही ओपन केज में रखा गया है. जबकि एक केज में दो भालू ही रखे जा सकते हैं.
जानवरों को संभालने में छूट रहा प्रबंधन का पसीनायहां 6 तेंदुआ और 30 के करीब नीलगाय मौजूद है. 8 लॉयन, 3 व्हाइट टाइगर. इसके अलावा चिडिय़ों की गिनती ही नहीं है. यहां विदेशी जंगली जानवर भी हैं, जैसे शुतुरमुर्ग, हिरण, हिप्पोपोटामस के अलावा कई विदेशी जानवर हैं. इन्हें संभालने में प्रबंधन के पसीने छूट रहे हैं.
2020 में कब-कब हुई जानवरों की मौत ?
मार्च 1 बारहसिंग्घा 6 अप्रैल 1 हिरण 30 अप्रैल 1 तेंदुआ27 मई 1 चीतल13 जून 1 चीतल18 जून 1 बारहसिंग्घा22 जून 1 लकड़बग्घा23 जून 1 नर तेंदुआइसके अलावा कई पक्षियों की मौत हो चुकी है.
पूरे मामले में अधिकारी मौनकानन जू में हो रही लगातार मौतों को लेकर अधिकारियों ने मौन धारण कर लिया है. अधिकारियों से मामले की जानकारी लेने पर वह गोलमोल जवाब देते हैं. उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि जानवरों की मौत आखिर क्यों होती है? अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर मौतों के मामलों रेस्क्यू कर लाए गए जानवरों के हैं. रेस्क्यू के दौरान या फिर पहले से घायल जानवरों का इलाज किया जाता है. अधिक घायल होने की वजह से उनकी मौत हो जाती है. अधिकारी साफ तौर पर इस मामले में कुछ भी कहने से इनकार करते हैं. जब उनसे बात किया जाता है तो वे मामले में उच्च अधिकारियों से संपर्क करने की बात कहते हैं. कानन पेंडारी जू के रेंजर ने जानवरों की मौत के मामले में उच्चाधिकारियों से मामले की जानकारी लेने की बात कही. उन्होंने कहा कि उन्हें वर्जन देने का अधिकार नहीं है.