न्यूयार्क। दक्षिण अमेरिका की दूसरी सबसे लंबी नदी पराना पर जिसमें पानी का स्तर 1940 के बाद से सबसे कम है। इससे पर्यावरणविद और एक्सपर्ट्स बेहद चिंतित हैं। इसका असर कमर्शल शिपिंग, बिजली उत्पादन, मछली पकड़े, पर्यटन से लेकर पीने के पानी की आपूर्ति और सिंचाई पर पड़ने लगा है। यही नहीं इसके असर से मिट्टी की संरचना और नदी के पानी में खनिजों में भी बदलाव होने लगा है। यह समस्या जटिल इसलिए है क्योंकि एक्सपर्ट्स अभी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि यह असर जलवायु परिवर्तन का है या कोई प्राकृतिक प्रकिया चल रही है।
पराना दुनिया के सबसे बड़े ताजे पानी के भूमिगत स्रोतों में से एक गॉरानी ऐक्विफर से जुड़ी है। इसकी लंबाई 4 हजार किलोमीटर से ज्यादा है और यह ब्राजील, पैरागे और अर्जंटीना से गुजरती है। यह पैरागे और उरूगे नदियों से जाकर मिल जाती है और रियो डि ला प्लाटा बनाते हुए अटलांटिक महासागर में जा मिलती है। रास्ते में यह कई बार बंटती भी है और अर्जंटीना में पराना डेल्टा वेटलैंड बनाती है। इसके जरिए कई खेती के मैदानों तक पानी पहुंचता है। नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ द लिटोरल में प्रफेसर कार्लोस रामोनेल ने बताया है कि पराना अर्जंटीना का सबसे बड़ा, सबसे ज्यादा जैव विविधता वाला और सबसे ज्यादा उत्पादकता वाला वेटलैंड है। रामोनेल ने बताया है कि नदी की मुख्यधारा तो बह रही है लेकिन उसके नेटवर्क चैनल्स में सिर्फ 10-20 प्रतिशत पानी है और बाकी सूख गया है। उनका कहना है कि ब्राजील के बांधों, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के बारे में बातें होती हैं लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से यह नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जाहिर है यह हालात कम बारिश की वजह से पैदा हुए हैं लेकिन वह किस वजह से हुआ?
पैरागेयन रिवरबोट मालिकों के असोसिएशन के डायरेक्टर जुआन कार्लोस मूनोज का कहना है कि पराना से नावों का निकलना अप्रैल से नहीं हो पा रहा है। सामान को पैरागे नदी तक जमीन के रास्ते लाना पड़ रहा है जिससे कीमतें चार गुना बढ़ गई हैं। 4000 बार्ज, 350 टग बोट और 100 कंटेनर कैरियर नदी का स्तर बढ़ने का रास्ता देख रहे हैं जबकि बारिश का मौसम अभी तीन महीने दूर है। मई में ब्राजील ने अपने बांध खोलकर बार्जेस को नीचे भेजने की कोशिश की लेकिन स्तर गिरता ही जा रहा है। इसके कारण बोलीविया के सॉयबीन के निर्यात और डीजल के निर्यात पर भी असर पड़ा है। पराना का औसतन फ्लो रेट 17 हजार क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड है जो गिरकर 6,200 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड पर गिर गया है। इससे कम 5,800 तक 1944 में इसका स्तर पहुंचा था। इसकी वजह से बिजली उत्पादन भी आधा हो गया है। पानी के कम स्तर की वजह से मछलियों का प्रजनन भी नहीं हो रहा है। मुख्य नदी से सहायक स्ट्रीम्स कट गई हैं और रेत के टीले बीच में आ गए हैं जिससे ये मछलियां अंडे देने की जगहों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। इसके अलावा पानी में नमक की मात्रा भी बढ़ गई है।
हालात ऐसे हो गए हैं कि सूखी हुई जमीन पर मवेशी चरने पहुंच गए हैं। वहीं मरकरी और लेड जैसे केमिकल्स तट पर जमा होने लगे हैं। जब पानी लौटेगा भी तो ऐसी मछलियां मरने लगेंगी जो मिट्टी से पोषण लेती हैं। इससे बचने के लिए मछलियां पकड़ने पर वीकेंड बैन भी लग गया है। बता दें कि दक्षिण अमेरिका में दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक बहती है। यहां दुनिया का सबसे घना वर्षावन भी है लेकिन इस क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन की तेज मार पड़ी है।