अमेरिकी चुनाव में क्या है हाथी-गधे की लड़ाई:ट्रम्प और कमला के बीच 7 राज्यों में कांटे की टक्कर, यहां जीते तो राष्ट्रपति बनना तय

Updated on 02-11-2024 04:37 PM

8 सितंबर 1960 की बात है। डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जॉन एफ कैनेडी कैंपेन के लिए अमेरिका के ओरेगन राज्य पहुंचे। यहां समर्थकों ने उन्हें घेर लिया।

अपने चाहने वालों की भीड़ में कैनेडी ने कुछ ऐसा देखा कि उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। दरअसल, कैनेडी के कुछ समर्थक अपने साथ 2 गधे लेकर आए थे। कैनेडी ने गधों को सहलाया और उन्हें लाने वालों की तारीफ की।

इसी चुनाव में कैनेडी के खिलाफ रिपब्लिकन पार्टी से रिचर्ड निक्सन उम्मीदवार थे। वे जब हवाई में कैंपेन के लिए पहुंचे तो वहां एयरपोर्ट पर ही उनका स्वागत पेपर से बने एक बड़े हाथी से किया गया। निक्सन ने हाथी बनाने वाले की खूब तारीफ की।

गधे और हाथी अमेरिकी चुनाव का अहम हिस्सा हैं, इनके अलावा पर्पल, रेड और ब्लू ये 3 रंग भी 24 सालों से US इलेक्शन की पहचान बने हुए हैं, 3 चैप्टर्स में अमेरिकी राजनीति के मजेदार किस्से…

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हाथी और गधा कब बने अमेरिकी चुनाव का हिस्सा

साल 1828 की बात है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से एंड्रयू जैक्सन उम्मीदवार थे। उनका मुकाबला व्हिग पार्टी के जॉन एडम्स से था। जैक्सन ने चुनाव जीतने के लिए कुछ ऐसे वादे किए जिसका एडम्स ने खूब मजाक उड़ाया।

एडम्स, जैक्सन का नाम बिगाड़ कर उन्हें जैकएस (गधा) कहने लगे। जैक्सन ने इसे चैलेंज के तौर पर लिया और अपने चुनावी पोस्टरों में गधे की तस्वीर छपवाने लगे। जैक्सन वह चुनाव जीत भी गए। इसके बाद डेमोक्रेट्स ने गधों को अपने चुनावी कैंपेन का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया।

फिर 1860 का दौर आया। ये अमेरिका में चुनावी साल था। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार अब्राहम लिंकन इलिनॉय राज्य में काफी मजबूती से लीड कर रहे थे। लिंकन को प्रभावशाली दिखाने के लिए अखबारों ने उनकी जगह हाथी की तस्वीर छापनी शुरू कर दीं। ये पहली बार था, जब रिपब्लिकन पार्टी को हाथी के तौर पर दर्शाया गया।

हालांकि, गधे के तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी और हाथी के तौर पर रिपब्लिकन पार्टी को पहचान देने में सबसे अहम भूमिका अमेरिका के चर्चित कार्टूनिस्ट थॉमस नेस्ट ने निभाई।

उन्होंने 1870 के दशक में डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए गधा और रिपब्लिकन पार्टी के लिए हाथी के कार्टून का जमकर इस्तेमाल किया। नतीजा ये हुआ कि दोनों ही पार्टियों ने गधे और हाथी को अपनी परमानेंट पहचान बना लिया, जो अब तक जारी है।

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लाल और नीले रंग में कैसे बंटी अमेरिकी राजनीति

भारत में भगवा रंग के जिक्र से एकदम भारतीय जनता पार्टी ध्यान में आती है, लाल रंग से वामपंथी और नीले से बहुजन समाज पार्टी। इसके पीछे उनकी विचारधारा का अहम महत्व है। हालांकि, अमेरिका में ऐसा नहीं है।

अमेरिका में पार्टियों के रंग के पीछे कोई विचारधारा नहीं है। दोनों पार्टियों के बीच रंगों का यह बंटवारा सिर्फ 24 साल पुराना है। CNN के मुताबिक कुछ दशक पहले तक टीवी और अखबारों के ब्लैक एंड व्हाइट होने की वजह से राजनीति में रंगों का कोई खास महत्व नहीं था।

बाद में कलर टीवी और मैग्जीन के आने से रंगों को इस्तेमाल शुरू हुआ। लेकिन, तब सभी मीडिया हाउस अपने-अपने हिसाब से इन्हें यूज करते थे। साल 1976 के चुनाव में ABC चैनल ने रिपब्लिकन पार्टी को पीला रंग तो 1980 के चुनाव में लाल रंग से दर्शाया था। वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी को लाल तो कभी नीले रंग से दिखाया जाने लगा।

साल 2000 के चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब अमेरिका के पूरे मीडिया ने रिपब्लिकन पार्टी को लाल और डेमोक्रेटिक पार्टी को नीले रंग से दिखाया था। दरअसल, इस चुनाव में दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर थी। रिपब्लिकन प्रत्याशी जॉर्ज बुश और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अल गोर के बीच हुए इस चुनाव का नतीजा 36 दिन बाद आ पाया था।

दोनों उम्मीदवारों में फ्लोरिडा के नतीजों के चलते जीत-हार का फैसला नहीं हो पा रहा था। मामला कोर्ट में चला गया। इस दौरान लोग आसानी से नतीजों को समझ पाएं इसके लिए सभी चैनलों और अखबारों में सहमति बनी कि वे रिपब्लिकन पार्टी को लाल और डेमोक्रेटिक पार्टी को नीले रंग की पहचान देंगे। तभी से ये दोनों रंग अमेरिका की पार्टियों की पहचान बन गए।

तब से जो राज्य ज्यादातर रिपब्लिकन पार्टी को जिताते हैं उन्हें रेड स्टेट और जो डेमोक्रेटिक पार्टी को जिताते हैं उन्हें ब्लू स्टेट कहते हैं। उदाहरण के तौर पर टेक्सास रेड स्टेट है और कैलिफोर्निया ब्लू।

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लाल और नीले के बीच पर्पल यानी स्विंग स्टेट कैसे पलट देते हैं खेल

लाल और नीले रंगों के बंटवारे में कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जिन्हें पर्पल स्टेट कहा जाता है। ये वे राज्य हैं, जहां दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर रहती है। पर्पल स्टेट के अलावा इन्हें स्विंग स्टेट भी कहा जाता है, क्योंकि ये किसी भी पार्टी की तरफ स्विंग कर सकते हैं, यानी पलट सकते हैं।

अमेरिका के 50 राज्यों और राजधानी वॉशिंगटन डीसी में कुल 538 इलेक्टोरेल वोट्स यानी सीटें हैं। अकेले स्विंग स्टेट में ही 93 सीटें हैं, जबकि चुनाव जीतने के लिए ट्रम्प या कमला को 270 सीटें जीतना जरूरी है। ऐसे में स्विंग स्टेट ही अमेरिका का राष्ट्रपति तय करते हैं।

पेंसिलवेनिया- सबसे ज्यादा वोटों वाला स्विंग स्टेट

स्विंग स्टेट में सबसे ज्यादा पेंसिलवेनिया में 19 इलेक्टोरल सीटें हैं। यही वजह है कि दोनों ही पार्टियों ने सबसे ज्यादा प्रचार इसी राज्य में किया है। BBC के मुताबिक पिछले कुछ हफ्ते में इस राज्य में 2.4 हजार करोड़ के विज्ञापन दिखाए गए हैं, जो कि बाकी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है।

पेंसिलवेनिया में 1992 से 2020 तक सिर्फ 1 बार रिपब्लिकन पार्टी को जीत मिली है। साल 2016 में ट्रम्प ने 0.7 % वोट से हिलेरी क्लिंटन को मात दी थी। साल 2020 के चुनाव में यहां बाइडेन ने ट्रम्प को महज 1.2% के अंतर से हराया था।

नॉर्थ कैरोलिना- जहां 40 साल में सिर्फ एक चुनाव जीत पाई कमला की पार्टी

नॉर्थ कैरोलिना में रिपब्ल्किन पार्टी का वर्चस्व रहा है। 1980 से लेकर 2020 तक सिर्फ एक बार 2008 में डेमोक्रेटिक पार्टी को जीत मिली है। तब बराक ओबामा ने रिपब्लिकन कैंडिडेट जॉन मैक्केन को महज 14,177 वोटों (0.32%) से हराया था।

2020 के चुनाव में यहां ट्रम्प ने बाइडेन को लगभग 74 हजार वोटों से (1.34%) हराया था। यह मौजूदा 7 स्विंग स्टेट्स में से एकमात्र राज्य है जहां ट्रम्प को पिछले चुनाव में जीत मिली थी। हालांकि पिछले कुछ चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच वोट मार्जिन कम होने से नॉर्थ कैरोलिना को इस बार स्विंग स्टेट की कैटेगरी में रखा गया है।



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