यूक्रेन जाने को क्यों मजबूर हुए मोदी:अमेरिका से रक्षा समझौता या चीन का डर बनी वजह

Updated on 24-08-2024 05:23 PM

9 जुलाई को जब मोदी रूस के दौरे पर पहुंचे तो ये बात यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कही थी। इसके ठीक 44 दिन बाद मोदी यूक्रेन दौरे पर गए। उन्होंने जेलेंस्की को गले लगाया, कंधे पर हाथ रखा। मोदी ने जेलेंस्की को बताया कि उन्होंने पुतिन की आंखों में आंखे डाल ये बात कही है कि ये समय जंग का नहीं है।

जब मोदी ये बात कह रहे थे, भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अमेरिका में दो डिफेंस डील पर दस्तखत कर रहे थे। ऐसे में मोदी के यूक्रेन दौरे से जुड़े कई दावे सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने हैं। जैसे कि क्या मोदी अमेरिका के दबाव की वजह से यूक्रेन गए... यूक्रेन दौरे से क्या भारत और रूस के रिश्ते बिगड़ेंगे... स्टोरी में ऐसे ही दावे की हकीकत एक्सपर्ट से जानिए...

सबसे पहले ये जानिए कि मोदी को यूक्रेन जाने की जरूरत क्यों पड़ी?

रूस मामलों के एक्सपर्ट राजन कुमार ने बताया कि पीएम मोदी के यूक्रेन जाने के पीछे 3 वजह रही…

एक्ट ऑफ बैलेंसिंग- जंग के बीच पीएम मोदी के रूस जाने के बाद उनकी आलोचना हो रही थी। पश्चिमी देशों ने रूस दौरे पर नाराजगी जताते हुए भारत पर आरोप लगाए थे कि वह एकतरफा स्टैंड ले रहा है।

भारत में विकास से जुड़े मामलों से लेकर सुरक्षा समझौतों तक में पश्चिमी देशों का बड़ा प्रभाव है। यही वजह है कि पीएम मोदी इस यात्रा के तहत दोनों धड़ों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में यूक्रेन जा रहे हैं।

ब्रिज रोल प्लेः रूस-यूक्रेन युद्ध को न तो अमेरिका रोकना चाहता है और न ही रूस की इसे खत्म करने में कोई दिलचस्पी है। मोदी जब रूस गए थे तो उन्होंने वहां शांति की बातें की थीं। यूक्रेन जाकर भी मोदी यही बात कहेंगे।

भारत सिर्फ खुद को रिप्रेजेंट नहीं करता बल्कि ग्लोबल साउथ के देशों का भी नेतृत्व करता है। ऐसे में मोदी यूक्रेन जाकर ग्लोबल साउथ देशों का पक्ष रखेंगे। भारत 2 गुटों में बंटी दुनिया के बीच ब्रिज यानी एक पुल का काम कर सकता है।

द्विपक्षीय वार्ता: भारत और यूक्रेन के बीच बीते 25 सालों में व्यापारिक संबंधों में इजाफा देखने को मिला है। इसके अलावा भारत किस तरह युद्ध के बाद यूक्रेन की मदद कर सकता है, इस पर भी बात हो सकती है। जैसे कि दवाएं, अस्पताल सुविधाएं, या फिर बुनियादी ढांचे को बेहतर करने में भारत किस तरह यूक्रेन की मदद कर सकता है, जिससे रूस नाराज न हो।

दावा 1: मोदी अमेरिका के दबाव में यूक्रेन गए
हकीकत
: राजन कुमार का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद भारत का रूस के साथ ट्रेड बहुत बढ़ा है। इस वजह से भी भारत पर रूस के करीबी होने का आरोप लग रहा था। अमेरिका और कुछ पश्चिमी देशों का भारत पर दबाव था कि एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत के संबंध लोकतांत्रिक देशों के साथ बेहतर होने चाहिए।

भारत का अमेरिका के साथ व्यापार सबसे ज्यादा होता है और ये बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका के साथ रहना भारत की मजबूरी भी है क्योंकि वह, चीन के साथ किसी विवाद में रूस से कहीं ज्यादा मदद कर सकता है।

यूक्रेन जो कि हमारी विदेश नीति की प्राथमिकता में कभी नहीं था, अचानक ही हमारे लिए अहम हो गया है, तो कहीं न कहीं इसकी वजह अमेरिका भी है। हालांकि पीएम मोदी ने सिर्फ अमेरिका के दबाव में आकर यूक्रेन दौरा किया है ऐसा भी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी जब रूस जा रहे थे तो उससे पहले भी अमेरिका का दबाव था कि वे ऐसा न करें, लेकिन तब उनकी बात नहीं मानी गई थी।

दरअसल भारत इस यात्रा के जरिए ये साबित करना चाहता था कि उसकी नीति निष्पक्ष है। भारत यह जताना चाहता था कि अगर वह पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं आता है तो रूस के दबाव में भी नहीं आएगा। इस दौरे के जरिए भारत ने पश्चिमी देशों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है। इसके साथ ही भारत अपनी निष्पक्षता साबित करना चाहता है।

दावा 2: भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद किया तो जंग रोकने पर रूस मजबूर हो जाएगा
हकीकत: 
राजन कुमार ने कहा कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद भी कर दिया तो इससे उस पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। भारत अगर रूस से तेल खरीद रहा है तो ऐसा कर वह रूस पर एहसान नहीं कर रहा है बल्कि इसमें भारत की मजबूरी और फायदा दोनों हैं।

अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है तो मार्केट में तेल के दाम बढ़ जाएंगे, कई जरूरी चीजें महंगी हो जाएंगी। जिससे इकोनॉमी पर संकट आ जाएगा। भारत की भी कुछ सीमाएं हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था, विदेश में निवेश, डिप्लोमेटिक रिसोर्स उतना बड़ा नहीं है कि वह इतनी बड़ी जंग रुकवा दे। मोदी जंग रोकने की अपील कर सकते हैं, दो पक्षों को एक पक्ष लाने के लिए एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन हम अभी उतने सक्षम नहीं हुए हैं कि यूक्रेन में हो रही जंग को रुकवा सकें।

दावा 3: पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे से भारत-रूस के रिश्ते बिगड़ेंगे हकीकत: राजन कुमार ने कहा कि मोदी के यूक्रेन दौरे को लेकर भारत-रूस के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। रूस का बयान शायद ही आए। हालांकि रूसी सरकार इससे निराश जरूर होगी। रूस ऐसी स्थिति में फंसा है कि वह तुरंत इस पर प्रतिक्रिया नहीं देगा, लेकिन रूस बदले में भारत के दुश्मन चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को और बेहतर बनाने की कोशिश करता दिख सकता है।

वहीं, अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत रहे कंवल सिब्बल का मानना है कि इस दौरे से भारत-रूस के रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देश रूस और भारत के बीच दरार पैदा करना चाहते हैं। भारत ने इस दौरे के जरिए यह संदेश दिया है कि वह बिल्कुल निष्पक्ष है।

सिब्बल ने कहा कि यह समझना ‘गलत’ होगा कि मोदी की यूक्रेन यात्रा का मतलब शांति कायम करना है। दरअसल भारत किसी भी तरह से मीडिएटर बनने के मूड में नहीं है। मोदी के दौरे से साफ है कि ‘भारत अपना खेल खेल रहा है।’ भारत अब अपना राष्ट्रीय हित, दुनिया में अपनी स्थिति और ग्लोबल साउथ में अपनी भूमिका देखते हुए अपने हिसाब से फैसले ले रहा है।

दावा 4: पीएम मोदी के दौरे से यूक्रेन को फायदा होगा हकीकत: राजन कुमार ने कहा कि ये दावा सही है। पीएम मोदी की इस यात्रा से यूक्रेन को होने वाला फायदा भारत से ज्यादा है। भारत ग्लोबल साउथ के सबसे प्रमुख और बड़े देशों में से है। चीन का कोई भी प्रतिनिधि जंग की शुरुआत के बाद से यूक्रेन नहीं गया है।

ऐसे में अगर ग्लोबल साउथ के किसी बड़े देश का नेता यूक्रेन की यात्रा कर रहा है, तो ये उसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। ऐसे में यूक्रेन भारत को अपने समर्थन में दिखाने की कोशिश भी कर सकता है। साथ ही वो भारत के इस कदम के जरिए रूस को नाराज करने की कोशिश भी करेगा।

दावा 5: मोदी के यूक्रेन दौरे से भारत की ग्लोबल देशों के लीडर के तौर पर पहचान मजबूत होगी
हकीकत: 
राजन कुमार ने कहा कि मोदी की इस यात्रा के जरिए भारत ने ये दिखाने की कोशिश की है कि वह एक ग्लोबल पावर है। भारत अगर अमेरिका के करीब है तो वह रूस के भी उतना ही करीब है। भारत किसी के भी दबाव में नहीं आएगा।

अब चीन या पश्चिमी देशों की तरह भारत को भी एक पक्ष की तरह देखा जाएगा। किसी विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत की टेबल पर अमेरिका, चीन, यूरोपीय देशों की तरह भारत भी शामिल हो सकता है।



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