बीजिंग । चीन में आयोजित विंटर ओलंपिक के दौरान दुनिया दो खेमे में बंटी दिखाई दी है। कहने को तो यह शीतकालीन खेलों का आयोजन है लेकिन इसके बहाने रूस, चीन और पाकिस्तान जैसे देश शीत युद्ध के पहले के हालात पैदा कर रहे हैं। विंटर ओलंपिक के दौरान पाकिस्तान और रूस ने चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हुए वियतनाम को चीन का अभिन्न अंग बताया है। दोनों ने नाटो का विरोध किया है। इसके एवज में चीन ने यूक्रेन संकट पर रूस की तरफदारी की है।
खेल के मैदान में चल रहे इन राजनीतिक दाव पेंचों ने दुनिया को विश्व युद्ध की कगार पर धकेल दिया है।
भारत सहित कई देशों ने विंटर ओलंपिक में अपने शीर्ष अधिकारियों को ना भेजकर चीन के प्रति विरोध जताया है। चीन पहले दिन से ही इन खेलों का राजनीतिकरण करने में लगा है। चीन ने खेलों के पूर्व मार्च पास्ट के दौरान गलवान घाटी में भारत के साथ झड़प में घायल हुए एक सैनिक को मशाल थमाई थी। चीन की इस हरकत के बाद भारत सरकार ने घोषणा की कि भारत का कोई भी शीर्ष अधिकारी विंटर ओलंपिक में शामिल नहीं होगा। कुछ इसी तरह की घोषणा अमेरिका सहित अन्य देशों ने भी की है।
इससे पहले जब सोवियत संघ टूटा नहीं था और अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन कर खड़ा था उस समय भी कई ओलंपिक स्पर्धाओं में बहिष्कार की राजनीति देखने को मिली थी। इस बार चीन अमेरिका को चुनौती दे रहा है। उसके साथ रूस भी खड़ा हुआ है और पाकिस्तान की मजबूरी है चीन का समर्थन करना। ऐसे हालात में दुनिया दो खेमों में विभाजित दिखाई दे रही है। वियतनाम, यूक्रेन और अब विंटर ओलंपिक दुनिया को विश्व युद्ध के मोर्चे पर लाकर खड़ा कर रहे हैं। हाल के दशकों में इतना तनाव पहले कभी देखने को नहीं मिला। दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की सरगर्मी और चीन का बढ़ता वर्चस्व दुनिया को विश्व युद्ध के खतरे में धकेल रहा है।