इस तरह हुई देवी प्रतिमा की पुनर्स्थापना
विद्याधर नगर थाने में 3 साल रहने के बाद मूर्ति को जावद थाने लाया गया। जावद थाने में 2 साल रहने के बाद मूर्ति को सिंगोली थाने लाया गया जहां यह 3 साल तक रही। आखिरकार विधि-विधान से मूर्ति की पुनर्स्थापना की गई। जिन थानों में यह मूर्ति रही वहां आज भी प्रतीक चिन्ह बनाकर बस-देवी की पूजा की जाती है।
नीलम पत्थर से बनी है मूर्ति
मूर्ति चमत्कारी होने के साथ-साथ नीलम पत्थर से बनी होने के कारण अमूल्य भी है। यही कारण था कि अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोह ने इसे चुराया था। वे आगे कहते हैं कि कई अड़चनों के बाद 2012 में मूर्ति को पुनः अपने स्थान पर विराजित कराया गया।
12 गांव के लोग देते हैं पहरा
अंबा पंचायत के पूर्व सरपंच देवराजसिंह शक्तावत बताते हैं कि बस-देवी के चमत्कार से ही मूर्ति चुराने वाले पकड़े गए। आज मूर्ति की सुरक्षा के लिए 12 गांव के लोग बारी-बारी से पहरा देते हैं।
11वीं शताब्दी में हुआ था मूर्ति का निर्माण
इतिहासकारों के अनुसार यह मूर्ति परमार राजवंश काल की है और इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। मूर्ति शिल्प मेवाड़, हाड़ौती, और मालवा कला के मिश्रण को दर्शाता है। वन देवी के नाम से प्रसिद्ध यह मूर्ति कालांतर में बस-देवी के नाम से जानी जाने लगी। हालांकि यह मूर्ति किस राजा ने बनवाई थी, इसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि यह मूर्ति शिल्प कला का एक अद्भुत उदाहरण है। नीलम पत्थर से बनी होने के कारण यह मूर्ति अमूल्य है।
पर्यटन के लिए अनेक संभावनाओं वाला स्थान
बस-देवी मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही मनोरम है। मंदिर के पास बहती हुई नदी की कल-कल करती ध्वनि मन को मोह लेती है। यहां साल भर श्रद्धालु आते रहते हैं, खासकर बारिश के दौरान और नवरात्रि के समय यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। दानदाताओं के सहयोग से मंदिर कमेटी ने भक्तों के लिए यहां अनेक निर्माण कार्य भी कराए हैं।
रिपोर्ट-राकेश मालवीय