नई दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुए 7 दशक से ज्यादा वक्त बीत गए। तब से दुनिया बहुत बदल गई, लेकिन नहीं बदला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ढांचा। भारत लगातार सुरक्षा परिषद में सुधार की पुरजोर वकालत कर रहा। यूएनएससी में अपनी स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा। अब उसकी दावेदारी को और मजबूती मिली है। अमेरिका, फ्रांस के बाद ब्रिटेन ने भी भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने का समर्थन किया है। रूस पहले से ही भारत की दावेदारी के सपोर्ट में रहा है। इस तरह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की नई दिल्ली की दावेदारी काफी मजबूत हुई है। अब रास्ते में सिर्फ 'चीन की दीवार' ही बाधा है। यूएनएससी के 5 स्थायी सदस्यों में सिर्फ चीन ही है, जो भारत की दावेदारी के समर्थन में नहीं है।
पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। उसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 79वें सत्र में ऐलान किया कि उनका देश भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में हैं। अब ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर में भी इस बात का समर्थन किया है।
संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान, ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर ने कहा कि सुरक्षा परिषद को अधिक प्रतिनिधित्व वाला निकाय बनना चाहिए। उन्होंने कहा, 'सुरक्षा परिषद को बदलना होगा ताकि वह एक अधिक प्रतिनिधित्व वाला निकाय बन सके, जो कार्रवाई करने को तैयार हो - राजनीति से लकवाग्रस्त न हो। हम परिषद में स्थायी अफ्रीकी प्रतिनिधित्व, ब्राजील, भारत, जापान और जर्मनी को स्थायी सदस्य के रूप में और निर्वाचित सदस्यों के लिए और ज्यादा सीटें देखना चाहते हैं।'
भारत लंबे समय से UNSC में सुधार की मांग कर रहा है। भारत का तर्क है कि 1945 में स्थापित 15-सदस्यीय परिषद 'पुराना है और 21वीं सदी के वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम है।' भारत 2021 से 2022 तक UNSC का अस्थायी सदस्य था। आज के वैश्विक परिदृश्य को बेहतर ढंग से दर्शाने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या का विस्तार करने की मांग बढ़ रही है।
मौजूदा यूएनजीए सेशन में जी-4 देशों- भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी ने सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग को जबरदस्त तरीके से उठाया है। ये चारों देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं। उनकी मांग है कि संयुक्त राष्ट्र में वर्तमान भू-राजनैतिक वास्तविकताओं की झलक दिखनी चाहिए ताकि यह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी फिट रहे।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने भी UNGA में अपने भाषण के दौरान UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया। उन्होंने कहा, 'हमारे पास एक सुरक्षा परिषद है जो अवरुद्ध है... आइए UN को और अधिक कुशल बनाएं। हमें इसे और अधिक प्रतिनिधित्व वाला बनाना होगा।' मैक्रों ने आगे कहा, 'इसीलिए फ्रांस सुरक्षा परिषद के विस्तार के पक्ष में है। जर्मनी, जापान, भारत और ब्राजील को स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए, साथ ही दो देश जिन्हें अफ्रीका अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनेगा।'
मैक्रों की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'भविष्य के शिखर सम्मेलन' में दिए गए भाषण के कुछ दिनों बाद आई है। पीएम मोदी ने रविवार को अपने संबोधन में जोर देकर कहा था कि वैश्विक शांति और विकास के लिए संस्थानों में सुधार जरूरी हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रासंगिकता की कुंजी सुधार है।
शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए, UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी 15-राष्ट्रों वाली UNSC को चेतावनी दी, जिसे उन्होंने 'पुराना' बताया और जिसका अधिकार कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर इसकी संरचना और काम करने के तरीकों में सुधार नहीं किया गया तो यह अंततः अपनी सारी विश्वसनीयता खो देगा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य होते हैं: पांच स्थायी और 10 अस्थायी। स्थायी सदस्यों (अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन) को वीटो पावर मिला हुआ है जो उन्हें बेहद ताकतर बनाता है। 10 अस्थायी सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। परिषद के मुख्य कामों में संघर्षों की जांच करना, शांति स्थापना अभियान चलाना और जरूरत पड़ने पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। यह वैश्विक संकटों और संघर्षों से निपटने में अहम भूमिका निभाता है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में एक जरूरी संस्था बनाता है।हालांकि, सुरक्षा परिषद बदलते वक्त के साथ कदमताल करने में नाकाम दिखा है। स्थायी सदस्यों में न तो अफ्रीका का कोई सदस्य है और न ही दुनिया में सबसे आबादी वाले भारत तक को जगह नहीं मिली है। अमेरिका के जाने-माने उद्योगपति एलन मस्क भी इस पर हैरानी जता चुके हैं कि भारत को अबतक सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता नहीं मिली है।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और खासकर स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की राह में चीन सबसे बड़ा रोड़ा है। वह इकलौता एशियाई देश है जो यूएनएससी का स्थायी सदस्य है। वह भारत को स्थायी सदस्य बनाने की कोशिशों को नाकाम कर सकता है। इतना ही नहीं, वह पड़ोसी जापान की स्थायी सदस्यता के लिए दावेदारी का भी धुर विरोधी है।