भोपाल । आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन के तत्वावधान में बाल दिवस की पूर्व संध्या पर " बाल विहग" बाल काव्य गोष्ठी का सफलतापूर्वक शानदार आयोजन किया गया।
उषा चतुर्वेदी , पूर्व अध्यक्ष, मध्य प्रदेश राज्य बाल आयोग ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर उद्बोधन दिया- " बच्चों को जो अधिकार दिए गए हैं उनका अतिक्रमण नहीं होना चाहिए ।
उन्हें स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति का अधिकार ,शिक्षा का अधिकार है और उन्हें अपने मनोभावों को व्यक्त करने का अधिकार है साथ ही अपनी अभिरुचियों को भी जीने का अधिकार है।"
वहीं विशिष्ट अतिथि श्यामा गुप्ता दर्शना ने अपने उद्बोधन में बच्चों में अच्छे संस्कार बचपन से ही डालने की ओर प्रेरित किया। बाल श्रम और बाल शोषण, बाल उत्पीड़न हेतु कठोर नियम बनाए जाने में ही बाल दिवस की सार्थकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अनुपमा अनुश्री ने बच्चों के दृष्टिकोण से समसामयिक स्थितियों पर दृष्टिपात करते हुए अपना वक्तव्य दिया - ब्लू स्क्रीन , लाइक और कमेंट्स का चक्रव्यूह , शो ऑफ का मोह, व्यसनों को छोड़कर शारीरिक गतिविधियांँ और अच्छे बाल साहित्य पठन-पाठन से सही जीवन शैली और एंडोर्फिन और स्वास्थ्य प्राप्त करें बालक । स्वहित और देश हित में स्वयं विवेकपूर्ण निर्णय लेकर सक्षम बन, अच्छे दृष्टांत प्रस्तुत करें।
इसी के साथ बाल दिवस तो तभी मनेगा जब माता-पिता जागेंगे और नजर रखेंगे बच्चों की संगत पर उनके क्रियाकलापों पर। बच्चों के चरित्र निर्माण में, माता-पिता, अभिभावकों, परिजनों , अध्यापकों,समाज, साहित्यकारों सभी का योगदान होता है।
बच्चों से संवाद बहुत आवश्यक है।आपाधापी- भागम भाग में लगे हुए माता-पिता को चाहिए कि प्रतिदिन एक निश्चित समय पर उनके साथ डिनर पर या खेलते हुए या पढ़ते पढ़ाते क्वालिटी टाइम बिताएंँ। यानी" कुछ उनकी सुनें, कुछ अपनी कहें" । संवाद हीनता और संवेदनहीनता दोनों ही बच्चों के विकास के लिए बहुत घातक है। यकीनन आजकल पेरेंटिंग काफी कठिन कार्य है। मित्रवत लेकिन मर्यादित ,स्नेह पूर्ण व्यवहार करते हुए आपसी समझ विकसित करें, समस्याओं , शंकाओं ,जिज्ञासाओं का समाधान करें।अच्छा साहित्य भी बच्चों से संवाद करके उन्हें सही दृष्टि और सही जीवन शैली देने में सहयोग करता है।
मॉं वीणावादिनी की वंदना के उपरांत सभी रचनाकारों ने उत्कृष्ट बाल काव्य प्रस्तुतियांँ दी।
बिंदु त्रिपाठी जी "-
प्यारे - प्यारे चाचा नेहरू एक बार इस धरती पर ,फिर से यदि तुम आ जाते।"
साधना मिश्रा, लखनऊ-" स्कूल फिर से चले, लेकर हाथों में बस्ता, फिर से हम स्कूल चले।"
शेफालिका श्रीवास्तव -"बचपन जग में रौनक लाए । हर घर को उपवन कर जाए।"
डॉ रेखा भटनागर- " मैं भारत की सफल बालिका आगे बढ़ती जाऊंगी।"
मधुलिका सक्सेना ने अपनी अभिव्यक्ति करते हुए कहा " आओ बच्चों तुम्हें सुनाए इस जीवन की प्यारी बातें।"
कमल चंद्रा -" प्यारी सी लोरी मम्मी सुनाती थी।"
यशोधरा भटनागर , विदिशा ने " मुझ में पानी, तुझ में पानी। पानी की तुम सुनो कहानी"
निरुपमा खरे ने" हलवाई ने थी दुकान लगाई, रंग बिरंगी मिठाई उसमें सजाई।"
डॉक्टर औरीना अदा ने" हमको तुम न बच्चे समझो हम ही देश के नौनिहाल है।"
मंच का संचालन कर रही अंजनी शर्मा अमृता , हरियाणा ने सकारात्मक प्रेरणा से भरपूर " थोड़ा सा तूफान तो जिंदा रख मुट्ठी में अपनी जान तो जिंदा रख " पंक्तियों से पटल को आलोकित किया।
आभार प्रदर्शन मधुलिका सक्सेना के द्वारा किया गया।