नई दिल्ली । लखीमपुर खीरी हिंसा कांड के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की सक्रियता ने अचानक सबका ध्यान उनकी तरफ खींंचा है। उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से पहले लखीमपुर खीरी कांड के बाद यकीनन प्रियंका गांधी वाड्रा की छवि एक आक्रामक, जुझारू और निरंतर संघर्ष करते रहने वाली नेता के तौर पर उभरी है। वो यूपी की सत्तारुढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लगातार निशाने पर ले रही हैं और इतना ही नहीं उनकी कोशिश राज्य में अपनी छवि हिंदुत्व के एक ब्रांड के तौर पर बनाने की भी है।
सवाल यह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की यह आक्रमकता आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होगी या फिर इससे उल्टा बीजेपी को ही फायदा होगा। लखीमपुर खीरी में 8 लोगों की जान जाने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा 3 अक्टूबर की रात लखनऊ पहुंची थीं। यहां उत्तर प्रदेश की पुलिस ने उन्हें रोकना चाहा लेकिन वो पुलिस वालों को गच्चा देकर निकल गईं। हालांकि करीब 10 घंटे बाद लखीमपुर के पड़ोसी जिले सीतापुर में प्रियंका गांधी को हिरासत में ले लिया गया।
प्रियंका करीब 60 घंटे तक हिरासत में रहीं। लेकिन इस दौरान वो लगातार सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए जनता के बीच अपनी मौजूदगी का एहसास कराती रहीं। इसमें से एक पोस्ट कि काफी चर्चा भी हुई थी जिसमें वो पुलिस गेस्ट हाउस में फर्श पर झाड़ू लगाती नजर आई थीं। बताया जाता है कि जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बीच फोन पर बातचीत हुई उसके बाद प्रियंका गांधी को रिहा कर दिया गया। प्रियंका गांधी ने रिहा होने के बाद दलित बस्ती में झाड़ू लगाया और इसकी भी काफी चर्चा हुई। झाड़ू लगाने के बाद उन्होंने बीजेपी नेताओं पर तंज भी कसा कि वो दलित विरोधी हैं।
जिसके बाद योगी आदित्यनाथ को यह कहना पड़ा कि जनता उनको इसी लायक बनाना चाहती है। लखीमपुर खीरी में प्रियंका गांधी पीड़ित किसान के परिवारों से मिलीं। यहां उन्होंने हिंसा में मारे गए पत्रकार के परिजनों से भी मुलाकात की। प्रियंका गांधी ने मीडिया से कहा कि वो उन बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिजनों से भी मिलना चाहती हैं जिनकी जान गई है। अपनी आक्रमकता और सूझबूझ से मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने वाली प्रियंका गांधी ने वाराणसी का दौरा किया और काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर पूजा भी की। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। साल 2017 में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था।
लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं और कांग्रेस के हाथ में सपा का साथ नहीं है। ऐसे में साफ है कि इस बार कांग्रेस अपनी नाव पार लगाने के लिए काफी हद तक प्रियंका गांधी पर डिपेंड है। कुछ राजनीति विश्लेषकों का यह भी मानना है कि प्रियंका गांधी की आक्रमकता भाजपा को फायदा भी पहुंचा सकती है। विश्लेषकों की राय में बीजेपी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत योगी आदित्यनाथ से प्रियंका गांधी को रिहा करने के लिए कहा और उन्हें यह भी छूट दी गई कि वो लखीमपुर खीरी हिंसा कांड को लेकर खुलकर केंद्र सरकार पर हमले करें।
हालांकि, प्रियंका गांधी की तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य में बीजेपी काफी मजबूत स्थिति में नजर आती है जिसे पछाड़ना कांग्रेस, सपा या बसपा किसी के लिए भी आसान नहीं है। साल 2014 में बीजेपी को 43 फीसदी वोट मिले थे। साल 2017 में बीजेपी का वोट शेयर 40 फीसदी था। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में करीब 50 फीसदी वोट मिले थे। जबकि एसपी और बीएसपी ने यहां गठबंधन में चुनाव लड़ा तो तो भी एसपी को 18.1 और बीएसपी को 19.42 फीसदी वोट मिले थे।