नई दिल्ली: एक नई स्टडी में पता चला है कि जिन लोगों को पहले कभी गंभीर इन्फेक्शन हुआ हो, उन्हें दिमाग की बीमारी या कहें डिमेंशिया होने का खतरा ज्यादा होता है। यह स्टडी नेचर एजिंग नाम के जर्नल में छपी है। स्टडी में बताया गया है कि बैक्टीरिया और वायरस से होने वाले इन्फेक्शन दिमाग के आकार को घटा सकते हैं। रिसर्चर्स ने पाया है कि जिन लोगों को कोविड-19 हुआ था, उनके दिमाग के ग्रे मैटर की मोटाई और कुल आकार में इन्फेक्शन के छह महीने बाद कमी आई थी।इन्फेक्शन से दिमाग पर भी असर
दूसरे स्टडीज से पता चला है कि जिन लोगों को बार-बार मुंह पर छाले निकलने की समस्या होती है, उनमें दिमाग के सफेद हिस्से के कमजोर होने की आशंका ज्यादा होती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि उनके पास इस बात के कई सबूत हैं कि इन्फेक्शन सिर्फ शरीर को ही नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि दिमाग की सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं।
फोर्टिस अस्पताल में न्यूरोलॉजी के प्रमुख डॉ प्रवीण गुप्ता ने बताया कि इन्फेक्शन के कारण शरीर में सूजन पैदा करने वाले पदार्थ रिलीज होते हैं। ये पदार्थ दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उनकी मौत का कारण बन सकते हैं। इस प्रक्रिया को न्यूरोडीजेनेरेशन कहा जाता है, जिसमें दिमाग सिकुड़ने लगता है और उसकी कोशिकाएं मरने लगती हैं। इससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ गुप्ता ने आगे बताया कि दिमाग का वह हिस्सा जो याददाश्त और सीखने के लिए जिम्मेदार होता है, वह इन्फेक्शन के कारण होने वाले नुकसान के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता है। इससे याददाश्त कमजोर हो सकती है, सोचने की क्षमता प्रभावित हो सकती है और कम उ्रम्र में ही डिमेंशिया हो सकता है।
समय के साथ कमजोर होने लगती है याददाश्त
इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर में न्यूरोलॉजी के निदेशक डॉ एके सहानी ने बताया कि लगातार सूजन के कारण दिमाग में अमाइलॉइड-बीटा और टाऊ जैसे हानिकारक प्रोटीन जमा हो सकते हैं। ये प्रोटीन अल्जाइमर रोग और दूसरी दिमागी बीमारियों से जुड़े होते हैं। इसके अलावा, इन्फेक्शन के कारण दिमाग की कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है और उन्हें ऊर्जा नहीं मिल पाती है। इससे दिमाग की कोशिकाएं मरने लगती हैं और समय के साथ याददाश्त कमजोर होने लगती है।
यह स्टडी इन्फेक्शन और दिमाग की सेहत के बीच गहरे संबंध को उजागर करती है। यह बताती है कि गंभीर इन्फेक्शन से बचाव कितना जरूरी है, खासकर बुजुर्ग लोगों के लिए जिनमें दिमाग की कमजोरी का खतरा ज्यादा होता है। दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए टीकाकरण, मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता और समय पर इलाज बहुत जरूरी है।
वैज्ञानिकों ने जांच में क्या पाया?
वैज्ञानिकों ने बाल्टीमोर लॉन्गिट्यूडिनल स्टडी ऑफ एजिंग के डेटा का विश्लेषण किया। इस स्टडी में दिमाग के आकार में बदलाव और 15 अलग-अलग इन्फेक्शन के इतिहास के बीच संबंध की जांच की गई। उन्होंने उन लोगों की तुलना की जिन्हें ये इन्फेक्शन हुए थे और जिन्हें नहीं हुए थे। नतीजों से पता चला कि छह इन्फेक्शन दिमाग के आकार में तेजी से कमी से जुड़े थे। ये इन्फेक्शन थे "इन्फ्लूएंजा, ह्यूमन हर्पीस वायरस संक्रमण (HHVs), निचले (LRTIs) और ऊपरी (URTIs) श्वसन तंत्र के संक्रमण, त्वचा और चमड़े के नीचे के संक्रमण, और विविध वायरल संक्रमण"।
एम्स में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ मंजरी त्रिपाठी ने कहा कि कई न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां आनुवंशिक होती हैं। इसका मतलब है कि ये बीमारियां पीढ़ी दर पीढ़ी चलती हैं। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि जिनके माता-पिता या दादा-दादी को ये बीमारियां रही हों, उन्हें भी ये हों। उन्होंने कहा कि कई कारणों से ये आनुवंशिक बीमारियां ट्रिगर हो सकती हैं। इनमें से एक कारण पिछला कोई इन्फेक्शन हो सकता है, चाहे वह हाल ही में हुआ हो या बहुत पहले।