नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के मलिहाबादी दशहरी आम को जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग दिलवाने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के कुछ और आमों को खास बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत काम करने वाले सेंट्रल इंस्टीटयूट फार हार्टिकल्चर लखनऊ ने यूपी मंडी परिषद के सहयोग से प्रदेश की विशेष धरोहर गौरजीत, बनारसी लंगड़ा और चौसा को भी यह मान्यता दिलाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। सेंट्रल इंस्टीटयूट फार हार्टिकल्चर लखनऊ के निदेशक डा. शैलेंद्र राजन का कहना है कि उत्तर प्रदेश के इन आमों का कोई मुकाबला नहीं है। लेकिन जीआई रजिस्ट्रेशन नहीं होने की वजह से देश और विदेश में इनका अच्छा बाजार नहीं बन पा रहा है। एक बार इन आमों को जीआई टैग मिल जाए तो फिर मार्केट बनाने में और सुगमता होगी। यह किसानों को आम का अच्छा मूल्य दिलाने में भी सहायक होगा। जीआई टैग या विशेष भौगोलिक पहचान मिलने से इन आमों के उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलना संभव है और अन्य क्षेत्रों के आम उत्पादकों द्वारा इस नाम का अनिधिकृत उपयोग कर अपने फलों दूसरे नामों से मार्केटिंग करने पर रोक लग सकेगी। इस समय मलिहाबाद, माल एवं काकोरी के दशहरी के अतिरिक्त 9 आम की प्रजातियां को जीआई रजिस्ट्रेशन प्राप्त है| इनमें रत्नागिरी का अल्फांसो, गिर (गुजरात) का केसर, मराठवाड़ा का केसर, आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली, भागलपुर का जरदालु, कर्नाटक के शिमोगा का अप्पीमिडी, मालदा (बंगाल) का हिमसागर, लक्ष्मण भोग और फजली को यह गौरव मिल चुका है। अब कोशिश है कि यूपी के गौरजीत, बनारसी लंगड़ा और चौसा को भी यह मान्यता मिले।