बिलासपुर । शासन के आदेश को हवा में उड़ाना अगर किसी को सीखना है तो बिलासपुर के शासकीय कार्यालयों से बेहतर उसके लिए और कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती।छुट्टी की बात आती है तो ऐसे कर्मचारी अधिकारी उछल जाते हैं लेकिन जब तय समय में कार्यालय पहुंचकर काम करने की बात आती है तो ‘यह हम से नहीं होगा’ वाली स्थिति पैदा हो जाती है.. 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के मैदानी कार्यालयों में पदस्थ राज्य के शासकीय कर्मचारियों को माह के दूसरे और तीसरे शनिवार के साथ पहले चौथे और पांचवे के छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बीते दिनों अधिसूचना जारी कर माह के प्रत्येक शनिवार को शासकीय कार्यालयों में अवकाश की घोषणा की गई थी इसके साथ ही आदेश में कार्यालयीन समय में संशोधन करते हुए शासकीय कार्यलयों में कार्य का समय 10:00 बजे से लेकर 5:30 बजे तक रखा गया है।
माह के दूसरे और तीसरे शनिवार के साथ माह के सभी शनिवारों को छुट्टी देने के पीछे शासन की मंशा है कि इससे कार्यक्षमता और उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी। लेकिन बिलासपुर के शासकीय विभागों में जो तस्वीरें देखने को मिल रही है उससे तो साफ जाहिर होता है कि शासन द्वारा जारी आदेश के एक को लेकर शासकीय कर्मचारियों में जितनी खुशी है वहीं दूसरे को लेकर वे सजग नजर नहीं आ रहे हैं.. बिलासपुर जिले के अधिकतर शासकीय कार्यालयों की स्थिति इतनी चिंतनीय है कि दूर-दराज से आने जाने वाले लोगों को अपने काम के लिए दर-दर भटकने को मजबूर होना पड़ता है.. ऊपर से शासकीय अधिकारी और कर्मचारियों की लेटलतीफी आमजन की तकलीफों में सोने का सुहागा का काम करती है.. ऊपर से अधिकारियों और कर्मचारियों के डर से चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जो समय पर ऑफिस पहुंच जा रहे हैं उन्हें भी झूठ कहना पड़ रहा है।
बिलासपुर जिले के शासकीय कार्यालयों में अधिकारियों और कर्मचारियों की भर्राशाही इस कदर हावी है कि काम के लिए दूरदराज से आने वाले लोग सुबह से कार्यालयों में पहुंच जाते हैं।लेकिन मालिक की तरह आने वाले कर्मचारी और अधिकारियों की कुर्सी खाली ही नजर आती है इतना ही नहीं जब विभागीय अधिकारी समय पर नहीं पहुंचते तो वह अपने कर्मचारियों को कितना पाबंद कर सकते हैं यह सोचने वाली बात है। शासन के आदेश की मॉनिटरिंग करने के लिए भी बड़े अधिकारियों को खुद नियमित होना पड़ेगा यहां तो अधिकारी ही लेट लतीफ नजर आते हैं तो फिर कर्मचारियों से उम्मीद करना बेमानी सा प्रतीत होता है।
बिलासपुर का आदिम जाति विकास विभाग हो या आबकारी विभाग लोक निर्माण विभाग हो या समाज कल्याण विभाग, तय समय पर कोई भी अधिकारी या कर्मचारी नजर नहीं आये।वहीं कलेक्टर ऑफिस में भी इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर सारे कर्मचारी अधिकारी नदारद रहे बात करें जिले के खाद्य विभाग की तो प्रभारी खाद्य अधिकारी राजेश शर्मा समेत खाद्य निरीक्षकों को छोड़कर बाकी सभी स्टाफ समय पर ऑफिस में नजर आए।जल संसाधन विभाग भी अपवाद के रूप में नजर आया जहां कार्यपालन अभियंता तय समय पर अपने टेबल पर बैठ गए थे।ऐसे में सवाल उठता है कि शासन के जारी आदेश का पालन किस तरह करते हैं और अगर आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो आखिर सक्षम अधिकारी किस तरह का एक्शन बाकी कर्मचारियों या अधिकारियों पर लेंगे।