भोपाल । लंबे समय से हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलने की मांग शहरवासियों द्वारा उठाई जा रही थी जो अब पूरी होने जा रही है। आगामी 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस स्टेशन के लोकार्पण के साथ इसे नया नाम भी मिलेगा। अब इस स्टेशन को रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा। राज्य सरकार के परिवहन विभाग की ओर से इस आशय का प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रालय को भेजा गया था।
इस पर अब केंद्र की मंजूरी मिल गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा भेजे गए जवाब में कहा गया है कि इस स्टेशन का नामकरण रानी कमलापति के नाम पर किए जाने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। सूत्रों के मुताबिक लोकार्पण के साथ ही स्टेशन को नया नाम देने की कवायद लंबे समय से चल रही है। सबसे पहले भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर स्टेशन का नाम रखने का प्रस्ताव आया था।
जिस पर सभी की सहमति थी। इसके बाद चूंकि 15 नवंबर देशभर में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है इसलिए भोपाल रियासत की रानी कमलापति के नाम पर भी विचार किया गया। जिस पर बाद में लगभग सभी की सहमति बन चुकी है। इसके बाद ही राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा। प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है कि 16वीं सदी में भोपाल गौंड शासकों के अधीन था।
1868 तक उत्तर भारत में आगरा तक और दक्षिण की तरफ खंडवा तक रेलवे ट्रैक था। बीच में रेलवे ट्रैक नहीं था, सड़क मार्ग से आवागमन होता था। ब्रिटिश अधिकारी हेनरी डेली ने भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम से ट्रेन चलाने को लेकर समझौता किया था तब बेगम ने 34 लाख रुपये दान दिए थे और 1882 में भोपाल से इटारसी के बीच ट्रेन चली थी। भोपाल को स्टेशन बनाया था। इतिहासकार बताते हैं कि इसके काफी वर्षों बाद भोपाल के पास हबीबगंज क्षेत्र में एक छोटा स्टेशन बनाया गया। यहां दो प्लेटफार्म थे।
अधिकृत तौर पर यह स्टेशन 1979 में अस्तित्व में आया। जिसे विकास पर रेलमंत्री रहते केंद्रीय मंत्री रहते माधवराव सिंधिया ने ध्यान दिया था। उन्होंने 7 करोड़ रुपये भी स्वीकृत किए थे। इस राशि से स्टेशन के दोनों तरफ नए भवन व पांच प्लेटफार्म बनाए गए थे। 2016 में केंद्र सरकार ने निजी भागीदारी से हबीबगंज स्टेशन को पुन: विकसित करने का काम तेज किया था। मार्च 2017 में स्टेशन निजी डेवलपर बंसल ग्रुप को हस्तांतरित कर दिया था। 450 करोड़ से स्टेशन को विकसित किया जा रहा है।
इसमें से 100 करोड़ से यात्री सुविधा वाले सभी काम पूर्ण कर लिए गए हैं। 350 करोड़ से स्टेशन परिसर में किए जाने वाले व्यवसायिक कामों की गति अच्छी है। बता दें कि सौ करोड़ की लागत से हबीबगंज स्टेशन को विश्वस्तरीय बना दिया गया लेकिन दशकों बाद आज भी स्टेशन के नाम को लेकर इतिहास से जुड़ा कुछ भी नहीं था। यहां तक कि स्टेशन का नाम हबीबगंज क्यों रखा गया, इस पर कोई स्पष्ट राय नहीं है। अब जाकर इस स्टेशन का नाम बदला ला रहा है।