हिंदू युवा हर हाल में बांग्लादेश छोड़ना चाह रहे यहां हिंदू होना सजा, हिंदू लड़की होना उससे बड़ी सजा

Updated on 08-01-2024 01:20 PM

ढाका के काजीपारा में एक ब्राह्मण परिवार रहता है। पीढ़ियों से यहीं है। 14 सदस्य हैं। सिर्फ 700 स्क्वेयर फीट के इस दो मंजिला मकान तक पहुंचने के लिए मेन रोड से 30 मी. लंबी तंग गली है, जिसमें 3 जगह बीफ टंगा रहता है। सुबह काम पर निकलने से पहले सभी लोग घर के अंदर कोने में बने छोटे से मंदिर में तिलक लगाते हैं।

घर के 67 साल के मुखिया संस्कृत में मंत्रोच्चार भी करते हैं, जिसकी लय करीब-करीब बांग्ला जैसी ही है। घर में सबसे बड़ी बेटी सृष्टि 27 साल की है, जो एक कंपनी में जूनियर एचआर एग्जिक्यूटिव है। घर से निकलते ही सबसे पहले तिलक मिटा देती है। बिंदी तो लगाती ही नहीं। मेन रोड पर आते ही रिक्शेवाले को भाईजान कहकर पुकारती है।

पूरा दिन बस इसी कोशिश में लगी रहती है कि अजनबी लोगों को ये पता न चले कि वह हिंदू है। कहती है- ‘यहां हिंदू होना अपने आप में ही एक सजा है। हिंदू लड़की होना, उससे भी ज्यादा बड़ी सजा।

बांग्लादेश में हिंदू आबादी 22% से घटकर 7.9% बची है। इसकी वजह राजनीितक, धार्मिक और आर्थिक हैं। ये तीन कहानियां हिंदुओं के हालात बताने के लिए काफी हैं...

सृष्टि कहती हैं अभी घर से पूजा करके निकली हूं। बीफ की दुर्गंध वाली उस गली में किसी ने नाक सिकोड़ते हुए भी देख लिया तो आफत आ जाएगी।’

तो क्या सारी जिंदगी ऐसे ही डरकर जिओगी...?

इस सवाल पर कहती है- ‘नहीं। मेरे पास डिग्री है। विदेश जाऊंगी। रिसर्चर बनूंगी। इसीलिए रकम जोड़ रही हूं। शाम को दो शिफ्ट में ट्यूशन भी पढ़ाती हूं। एक-डेढ़ साल में निकल जाऊंगी।

’सृष्टि उन 0.5% हिंदू लड़कियों में है, जो पोस्ट ग्रेजुएशन कर पाईं। इसलिए विदेश जाने का सपना बुन सकती है। लेकिन, उनका क्या, जो स्कूल से आगे नहीं बढ़ पाईं? मां-बाप जल्द से जल्द उनकी शादी करा देना चाहते हैं। ताकि वो धर्मांतरण, दुष्कर्म या जबरन बीफ खिलाने जैसी घटनाओं से बच जाएं।

2023 के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देशभर में 66 हिंदू लड़कियों से दुष्कर्म हुआ और 333 महिलाओं को जबरन बीफ खिलाया गया। ये सिर्फ दर्ज हुए मामले हैं। बांग्लादेश माइनॉरिटी कमीशन की स्टडी के अनुसार, अल्पसंख्यकों पर धर्म के नाम पर होने वाले अपराध के 80% से ज्यादा मामले पुलिस तक पहुंच नहीं पाते। पहुंच भी जाएं तो कोर्ट के बाहर ही निपटा दिए जाते हैं।

गांवों का हाल छोड़िए... ढाका यूनिवर्सिटी में भी अल्पसंख्यक अलग ही रखे जाते हैंं
ढाका यूनिवर्सिटी में एक जगह है- जगन्नाथ हॉल। यहां हॉस्टल है, जो सिर्फ गैर-मुस्लिम छात्रों को अलॉट होता है। आंगन में 40 फीट ऊंचा शिव मंदिर है। तालाब है। एक छोटे से कमरे में इस्कॉन मंदिर है। यह जगह बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है। यहां उन सौ महान लोगों की प्रतिमाएं हैं, जो 1971 में पाकिस्तानी फौज के अत्याचार के खिलाफ आजादी के संघर्ष में कूद गए थे।

इनमें हिंदू, ईसाई और बौद्ध थे। लेकिन, आज 52 साल बाद भी ये सिर्फ बुत बनकर रह गए हैं। बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए इन्होंने जो कुर्बानियां दीं, उनका इतना भी असर नहीं कि यहां रहने वाले अल्पसंख्यक छात्र बेखौफ होकर पूजा कर पाएं। 2021 में छात्रों ने मिलकर यहां सरस्वती पूजा का आयोजन किया था।

अच्छी बात ये है कि इसमें मुस्लिम छात्र भी शामिल थे। लेकिन, इसी यूनिवर्सिटी के मुस्लिम छात्रों के एक धड़े ने हमला कर दिया। इन घटनाओं पर यहां के एक छात्र निलॉय कुमार बिस्वास कहते हैं- ‘इनके पीछे राजनीतिक मंशा थी।

अब भी जो घटनाएं हो रही हैं, उनके कारण भी राजनीतिक हैं।’ डिग्री पूरी करने के बाद निलॉय क्या करेंगे? कहते हैं- ‘उच्च शिक्षा के लिए विदेश की कई यूनिवर्सिटीज में स्कॉलरशिप के लिए प्रयास कर रहा हूं।’दरअसल, हिंदुओं पर होने वाले हमलों की वजह सिर्फ धर्म नहीं है। बल्कि, धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति है। दूसरी वजह पूरी तरह से आर्थिक है, जिसमें धर्म को आड़ बनाया जाता है।

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए बरसों से काम कर रहे रिसर्च एंड एम्पावरमेंट ऑर्गनाइजेशन के चेयरमैन प्रोफेसर चंदन सरकार कहते हैं- ‘बांग्लादेश में हिंदुओं की आर्थिक स्थिित अच्छी है, लेकिन सामाजिक स्थिति खराब है। असुरक्षा की भावना चरम पर है। हर कदम पर संघर्ष है।’

हिंदू चाहते हैं कि भारत भी हस्तक्षेप करे...
बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच के प्रेसीडेंट और सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट रबिंद्र घोष कहते हैं- ‘जब हम 1971 से पहले आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, तब भी पाकिस्तानी फौज ने सबसे ज्यादा 20 लाख हिंदुओं का कत्लेआम किया। फिर हम आजाद हो गए, लेकिन हिंदुओं की हत्याएं आज भी जारी हैं। हम तो ये चाहते हैं कि भारत को भी इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।’

जहां हिंसा हुई, वहां के पुलिस चीफ हिंदू थे; ताकि उन्हें नाकाम साबित कर सके
ढाका से 100 किमी दूर एक जिला है कुमिला। यहां 2021 में दुर्गा पूजा के दौरान 10 हजार लोगों की भीड़ ने हिंदुओं के घरों, दुकानों और मंदिरों को निशाना बनाया। 6 लोग मार डाले। सैकड़ों लोग घर छोड़कर भाग गए। हालात ऐसे हुए कि केंद्रीय बल तैनात करना पड़े। यहां के टॉप पुलिस अफसरों को हटा दिया गया। फिर 2022 में नॉरियाल जिले में दुर्गा पूजा के दौरान इसी पैटर्न पर हिंसा हुई।

सैकड़ों लोगों को घर छोड़ना पड़ा। बाद में यहां के पुलिस चीफ को भी हटा दिया गया। बांग्लादेश के मीडिया में हिंसा की खबरें छपीं। लेकिन, ये बात नहीं बताई गई कि इन दोनों जिलों के पुलिस चीफ हिंदू थे। उनके कार्यकाल पर सांप्रदायिक हिंसा के सबसे ज्यादा मामलों का धब्बा लगा।

ढाका में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया- ‘कट्‌टरपंथी यही चाहते हैं कि लोगों में समय-समय पर कोई ऐसा संदेश जाता रहे, जिससे लगे कि हिंदू अफसर प्रशासन चलाने में अच्छे नहीं होते।

कुमिला व नॉरियाल में जो घटनाएं हुईं, उनमें ये बात गौर करने वाली बात है कि हिंसा के लिए उकसाने से पहले हिंदुओं पर ईशनिंदा के आरोप लगाए गए। पुलिस अफसरों पर हिंदुओं का साथ देने के आरोप लगाए। इसलिए इन जिलों में चरमपंथी अपने मंसूबों में सफल रहे।



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