रूस के खिलाफ यूक्रेन की कैसे मदद कर रही CIA : जमीनी ठिकाने तबाह हुए तो अंडर ग्राउंड बेस बनाए

Updated on 27-02-2024 01:08 PM

रूस और यूक्रेन की जंग 24 फरवरी 2024 को तीसरे साल में दाखिल हो चुकी है। अगर जंग शुरू होने के पहले के कुछ बयानों पर नजर दौड़ाएं तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के एक बयान पर नजर ठहर जाती है। पुतिन ने कहा था- रूस के सामने यूक्रेन की फौज 15 दिन भी नहीं ठहर पाएगी।

जो ऊपर दिख रहा, वो सच नहीं

यूक्रेन का एक मिलिट्री बेस। यहां कुछ देर पहले ही रूसी मिसाइल गिरी और पूरा स्ट्रक्चर तबाह हो गया। इससे कुछ दूरी पर एक बंकर है। इसमें मौजूद यूक्रेनी सैनिक लैपटॉप पर रूस के एक स्पाय सैटेलाइट को फॉलो कर रहे हैं। चंद मीटर की दूरी पर कुछ सैनिक इयरफोन पर रूसी कमांडर्स की इंटरसेप्ट की गई बातचीत सुन रहे हैं। इसी दौरान एक लैपटॉप की स्क्रीन पर रूस का ड्रोन नजर आता है। ये सेंट्रल यूक्रेन के रोस्तोव शहर की खास लोकेशन पर हमला करने वाला है। चंद मिनट बाद यूक्रेनी फौज टारगेटेड मिसाइल फायर करती है और ड्रोन रूसी इलाके में ही क्रैश हो जाता है।

कहानी यहीं से शुरू होती है। यूक्रेन आर्मी अगर रूस को करारा जवाब दे पा रही है तो इसके पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA है। रूस इस गलतफहमी में रहा कि उसने यूक्रेन आर्मी का मिलिट्री बेस तबाह कर दिया, लेकिन सही मायनों में ऑपरेशन सीक्रेट लोकेशंस से अंजाम दिए जा रहे हैं। इसके लिए फंडिंग और इक्विपमेंट्स CIA मुहैया करा रही है।

यूक्रेन के टॉप इंटेलिजेंस कमांडर जनरल सरही वोरेटतिस्की कहते हैं- CIA ही सब कर रही है और ये बात 110% दुरुस्त है। जंग तीसरे साल में पहुंच चुकी है। ये बात अब दुनिया जानती है कि वॉशिंगटन और कीव के बीच किस लेवल पर कितना कोऑपरेशन है। CIA और दूसरी अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसीज यूक्रेन की हिफाजत के लिए इनपुट देती हैं। रूस के स्पाय नेटवर्क पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। हालांकि ये सहयोग सिर्फ जंग के बाद शुरू हुआ, ऐसा नहीं है। और ये भी सच नहीं है कि ये सिर्फ यूक्रेन में हो रहा है। कई देशों को CIA इसी तरह की मदद देती आई है और दे रही है।

3 अमेरिकी राष्ट्रपति नजर रखते रहे

यूक्रेन को CIA और अमेरिकी मदद का सिलसिला कई साल पुराना है। इस दौरान कम से कम तीन अमेरिकी प्रेसिडेंट्स का टेन्योर पूरा हुआ। इस दौरान यूक्रेन में CIA इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया। वजह ये थी कि यूक्रेन पहले रूस का ही हिस्सा था और जाहिर तौर पर उसकी मिलिट्री और इंटेलिजेंस पर रूस का प्रभाव था। आज CIA का यूक्रेन और वहां की फौज पर जबरदस्त असर है।

यूक्रेन के जंगलों में CIA की कई पोस्ट मौजूद हैं। इनमें ऑपरेशनल रिस्पॉन्सिबिलिटी यूक्रेनी सैनिकों की होती है, लेकिन हर इनपुट CIA देती है। 8 साल में CIA ने रूस बॉर्डर पर 12 बेस तैयार किए हैं। दुनिया तब हैरान रह गई जब यूक्रेन की मिलिट्री ने 2014 में मलेशियाई एयरलाइंस के एयरक्राफ्ट क्रैश में रूस का हाथ होने के सबूत पेश किए। यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसीज ने भी जबरदस्त काबिलियत दिखाई और CIA को वो सबूत दिखाए जो ये साबित करने के लिए काफी थे कि 2016 में हुए अमेरिका के प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में रूस ने दखलंदाजी की थी।

2016 ही वो साल था, जब अमेरिका ने यूक्रेनी फौज के कमांडोज को ट्रेनिंग देना शुरू किया। यूक्रेनी सेना की इस एलीट कमांडो यूनिट को 2245 कहा जाता है। टेक्निकली ये यूनिट इतनी एक्सपर्ट है कि इसने रूस के ड्रोन्स और कम्युनिकेशन सिस्टम तक पहुंच बना ली। कहा जाता है कि ये रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए मुमकिन हुआ। इतना ही नहीं, मॉस्को के इन्क्रिप्शन कोड्स को भी इस यूनिट ने क्रैक कर लिया। आज इस यूनिट का ही कमांडो किरिलो बंदोव यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी का चीफ है।

न्यू जेनरेशन पर भी CIA का असर

यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी के यंग अफसर भी CIA नेटवर्क के जरिए ही ट्रेंड किए जा रहे हैं। ये सिर्फ रूस में ही नहीं, बल्कि यूरोप, क्यूबा और दुनिया के कई दूसरे देशों में भी एक्टिव हैं। CIA के अफसर यूक्रेन के दूर-दराज के इलाकों में मौजूद हैं और इनके बेस अलग होते हैं। फरवरी 2022 में जंग शुरू होने के फौरन बाद अमेरिका ने जब अपने सभी नागरिकों को यूक्रेन से निकाला तो इसके पीछे यही नेटवर्क था।

CIA के इन अफसरों ने बेहद सेंसिटिव इनपुट जुटाए और यूक्रेन को यह भी बताया कि रूस कहां और किस वक्त हमला करने वाला है। ये भी बताया गया कि इन हमलों के खिलाफ किस तरह के हथियार इस्तेमाल किए जाने चाहिए। यूक्रेन की डोमेस्टिक इंटेलिजेंस एजेंसी एसबीयू के चीफ इवान बाकोनोव कहते हैं- CIA की मदद के बिना हम रूस का सामना कर ही नहीं सकते थे। कई साल तक दुनिया इस इंटेलिजेंस कोऑपरेशन को समझ नहीं पाई थी।

यूक्रेन के करीब 200 पूर्व या वर्तमान अफसर इस बारे में बता चुके हैं। उनके मुताबिक यूरोप में CIA का नेटवर्क जबरदस्त है और कीव में उसका बहुत बड़ा इंटेलिजेंस स्टेशन मौजूद है। डिप्लोमेसी के लिए भी इसके इनपुट का इस्तेमाल किया जाता रहा है।

CIA का रोल अब पहले से ज्यादा अहम

रूस और यूक्रेन की जंग अब तीसरे साल में पहुंच चुकी है। यूक्रेनी सेना ने रूस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है, लेकिन अब CIA का रोल पहले से ज्यादा अहम हो गया है। इसके साथ ही खतरा भी बढ़ रहा है। हालांकि परेशानी ये है कि अमेरिकी संसद में यूक्रेन को फंडिंग बंद करने की मांग उठने लगी है। मान लीजिए, अगर ऐसा हुआ तो CIA को कदम खींचने होंगे।

यही वजह है कि पिछले दिनों CIA के चीफ विलियम बर्न्स यूक्रेन पहुंचे और वहां की लीडरशिप को भरोसा दिलाया कि कीव की मदद जारी रखी जाएगी। जंग शुरू होने के बाद बर्न्स 10वीं बार यूक्रेन गए थे।

पुतिन अमेरिका और यूक्रेन के इस गठजोड़ से परेशान हैं। अब तक वो यूक्रेन के पॉलिटिकल सिस्टम में दखलंदाजी करते आए हैं। वहां कौन सत्ता में रहेगा? ये भी दो साल पहले तक करीब-करीब पुतिन ही तय करते थे। हालांकि कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि यही दखलंदाजी पुतिन को भारी पड़ गई और अमेरिका ने मौके का पूरा फायदा उठाया। अब वो आरोप लगा रहे हैं कि जंग शुरू होने की वजह वेस्टर्न वर्ल्ड है।

यूरोप के एक सीनियर डिप्लोमैट मानते हैं कि 2021 तक पुतिन यूक्रेन के खिलाफ पूरी जंग शुरू करने के मूड में नहीं थे। इसी साल उन्होंने रूस के स्पाय चीफ से कई घंटे तक बातचीत की। इस दौरान साफ हुआ कि यूक्रेन की सरकार को हकीकत में CIA चला रही है। इसके अलावा ब्रिटेन की MI6 भी इसमें मदद कर रही है। इसके बाद ही उन्होंने इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए फुल स्केल वॉर यानी पूरी जंग शुरू करने का फैसला किया।

एक रिपोर्ट कहती है कि पुतिन का कैलकुलेशन सही साबित नहीं हुआ। अमेरिकी मदद यूक्रेन को बहुत ज्यादा मिली। खास बात ये है कि शुरुआत में CIA यूक्रेन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर रही थी। इसके बाद CIA के डिप्टी स्टेशन चीफ की यूक्रेन के इंटेलिजेंस चीफ से कई मीटिंग हुईं और आखिरकार यह भरोसा बढ़ता चला गया।\

रूस के सबमरीन प्रोजेक्ट पर नजर

यूक्रेनी इंटेलिजेंस और रूस के बीच शुरुआती सहयोग रूसी नेवी की नॉर्दर्न फ्लीट पर नजर रखने को लेकर था। इसके साथ ही रूस के न्यूक्लियर सबमरीन डिजाइंस भी CIA के रडार पर थे। यूक्रेन से CIA के अफसर जब भी अमेरिका वापस जाते तो उनके पास भारी बैग होते थे और इनमें यही डॉक्युमेंट्स होते थे। यूक्रेन के एक जनरल कहते हैं- हम जानते थे कि सबसे जरूरी काम अमेरिका और CIA का भरोसा जीतना है। ये दोनों पक्षों की जीत है।

2016 से यूक्रेन और अमेरिका के रिश्ते मजबूत होना शुरू हुए और CIA की सीधी पहुंच यूक्रेन के हर मामले में हो गई। इस दौरान यूक्रेन में कुछ पॉलिटिकल किलिंग्स हुईं तो अमेरिका में इनका विरोध शुरू हो गया। अमेरिका ने यूक्रेन को मदद में कटौती की धमकी दी। हालांकि हुआ इसका उल्टा। मदद कम तो नहीं की गई, बल्कि दिन-ब-दिन बढ़ती गई। CIA की यूक्रेन में मौजूद ऑपरेशन यूनिट मजबूत होती गई और इसका फायदा अमेरिका ने पूरे यूरोप में उठाना शुरू कर दिया। हालांकि शुरुआत में उसका मकसद सिर्फ रूस पर नजर रखना था।

वोल्दोमिर जेलेंस्की से पहले विक्टर यानुकोविच प्रेसिडेंट थे। वे पुतिन और रूस समर्थक थे। अचानक वो रूस भाग गए। इसका फायदा CIA ने उठाया और यूक्रेन में पहली बार पूरी तरह से वो सरकार आई जो अमेरिका के इशारे पर चलने वाली थी। ये हम आज देख रहे हैं। यूक्रेन के नए इंटेलिजेंस चीफ ने चार्ज लेने के बाद जब पहली बार हेडक्वॉर्टर का दौरा किया तो वहां सेंसिटिव डॉक्युमेंट्स बिखरे पड़े थे। कम्प्यूटर्स से जरूरी डेटा कॉपी करके डिलीट किया जा चुका था। इतना ही नहीं, हर कम्प्यूटर में रूसी वायरस डाल दिया गया था।

बाद में यूक्रेन के इंटेलिजेंस चीफ वेलेंटिन नेल्वाशेंको ने कहा था- वहां कुछ नहीं था। बाकी सब तो छोड़िए, स्टाफ भी गायब हो चुका था। इसके बाद उन्होंने CIA के स्टेशन चीफ से मुलाकात की और एक नया नेटवर्क तैयार किया गया। इसमें तीन सहयोगी थे। यूक्रेनी इंटेलिजेंस एजेंसी, CIA और ब्रिटेन की MI6 एजेंसी। इसके बाद जो शुरुआत हुई, वो कामयाबी का सफर तय कर रही है।

हालात तब खराब हुए जब पुतिन ने क्रीमिया पर हमला किया और उसे कब्जे में ले लिया। वेलेंटिन ने CIA से मदद मांगी। उस वक्त जॉन ब्रेनिन CIA चीफ थे। उन्होंने यूक्रेन के इंटेलिजेंस चीफ से कहा- हम आपकी मदद करेंगे, लेकिन ये किस हद तक होगी, ये हम तय करेंगे। दरअसल, CIA आगे बढ़ने से पहले ये तय कर लेना चाहती थी कि कहीं यूक्रेन की सरकार और इंटेलिजेंस चीफ बदल तो नहीं जाएंगे। सरकार गिर तो नहीं जाएगी और इससे भी बड़ा सवाल ये था कि जो नया निजाम आएगा, वो अमेरिका से दोस्ती निभाएगा या रूस के पाले में चला जाएगा।

उस वक्त बराक ओबामा प्रेसिडेंट थे। उनके एडवाइजर्स जब ब्रेनिन से मिले तो सवाल ये उठा कि यूक्रेन की खुली मदद से रूस भड़क जाएगा तो इसके क्या नतीजे होंगे। बहरहाल, व्हाइट हाउस में ये तय हुआ कि इस मामले पर हाथ बांधकर खड़े रहने से कुछ नहीं होगा। इसके बाद प्लान तैयार हुआ और CIA ने धीरे-धीरे यूक्रेन में पुतिन के खिलाफ सियासी माहौल तैयार करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही यूक्रेन ने हर वो कदम उठाना शुरू कर दिया, जिससे रूस भड़क सकता था।

इतना आसान भी नहीं रहा सफर

2015 में यूक्रेनी राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको ने इंटेलिजेंस चीफ वेलेंटिन को हटाकर वहां अपने एक खास सहयोगी को बिठा दिया। इसी वक्त जनरल कोंद्रातुक को मिलिट्री इंटेलिजेंस की कमान सौंपी गई। हालांकि इससे ज्यादा असर नहीं हुआ।

मिलिट्री इंटेलिजेंस ने देश से ज्यादा रूस पर फोकस किया और वहां से सूचनाएं जुटाईं। हालांकि अमेरिका और CIA चाहते थे कि उन्हें रूस के बारे में ज्यादा से ज्यादा सॉलिड इन्फॉर्मेशन मिले। जनरल कोंद्रातुक ने इसी दौरान CIA चीफ से सीक्रेट मीटिंग की और रूस के काफी सेंसिटिव डॉक्युमेंट्स उन्हें सौंप दिए। इतना ही नहीं वो खुद CIA हेडक्वॉर्टर गए।\इस दौरान एक रोचक वाकया हुआ। जनरल कोंद्रातुक वॉशिंगटन में एक हॉकी मैच देखने गए और यहां वीवीआईपी बॉक्स में बैठे। इस दौरान उनके बाजू में जो अमेरिकी मौजूद था, वो दरअसल यूक्रेन में CIA का नया स्टेशन चीफ था। क्रोंद्रातुक ने उसे रूस के बेहद सीक्रेट डॉक्युमेंट सौंपे। उन्होंने उस अफसर को ये भी भरोसा दिलाया कि इससे भी ज्यादा इनपुट अमेरिका को दिए जाएंगे।

CIA किसी पर आसानी से भरोसा नहीं करती। लिहाजा, उसने इन डॉक्युमेंट्स की बहुत बारीकी से जांच की और तब जाकर संतुष्ट हुई। इसके बाद जनरल कोंद्रातुक CIA के सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन गए। वो जानते थे कि यूक्रेन और खुद उनके लिए CIA का भरोसा जीतना कितना जरूरी है। बाद में जनरल ने खुद कहा था- रूस में अपना एजेंट बनाना बहुत मुश्किल काम है।

बहरहाल, इसके बाद CIA के स्टेशन चीफ लगातार इस जनरल से मिलने लगे। यहां एक एक्वेरियम मौजूद था। इसमें नीले और पीले रंग की मछलियां मौजूद थीं। ये यूक्रेन के नेशनल फ्लैग के रंग भी हैं। कहा जाता है कि जनरल कोंद्रातुक को CIA ने कोड नेम ‘सांता क्लॉज’ दिया था। 2016 में ये जनरल वॉशिंगटन गया और वहां कई लोगों से सीक्रेट मीटिंग्स कीं। इसके बाद अमेरिका को रूस के बारे में ज्यादा खुफिया जानकारी मिलने लगी।

एक बड़ा ऑपरेशन

रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया तो उसकी फौज ने यूक्रेन के बॉर्डर एरिया में मौजूद यूक्रेन के एक सीक्रेट बेस को उड़ा दिया। इसके बाद यूक्रेन की फौज ने वापसी की। फंडिंग और इक्विपमेंट CIA ने दिए। जनरल वोरेत्सकी ने इसकी कमान संभाली। सब कुछ अंडरग्राउंड किया गया। कहा जाता कि इस बेस पर सिर्फ रात में काम होता था। कर्मचारी अपनी गाड़ियां काफी दूर जंगल में पार्क करते थे। यहां एक सर्वर भी इंस्टॉल किया गया। इसी बेस से रूसी फौज का कम्युनिकेशन हैक किया जाने लगा। इन्क्रिप्शन कोड्स यहीं डीकोड किए जाते। इतना ही नहीं, रूस के करीबी सहयोगियों जैसे चीन और बेलारूस के सैटेलाइट मूवमेंट पर भी पैनी नजर रखी जाती। एक अफसर खास तौर पर दुनिया में रूस की तरफ से की जा रही मिलिट्री एक्टिविटीज पर नजर रखता था। इनमें रूस न्यूक्लियर बेस भी शामिल थे। इसके अलावा यूरोप के शहरों में नाटो देशों के सैनिकों को अमेरिकी मिलिट्री ट्रेनिंग भी देने लगी। इस ट्रेनिंग की खास बात यह थी कि इसमें इंटेलिजेंस अफसरों को खास तौर पर शामिल किया जाता था। इसे ‘ऑपरेशन गोल्ड फिश’ नाम दिया गया।

बहरहाल, इस ऑपरेशन में शामिल अफसरों को जल्द ही 12 नई फॉरवर्ड लोकेशंस पर तैनात किया गया। हर लोकेशन पर मौजूद अफसरों को रूस में मौजूद उनके जासूस नई खुफिया जानकारी भेजते थे। हर बेस पर हाईटेक इक्विपमेंट इंस्टॉल किए गए। ज्यादातर यंग यूक्रेनियन्स को यहां अपॉइंट किया गया और ये रूस में नए एजेंट तैयार करते। इस काम में कई साल लगे, लेकिन CIA पूरी तरह यूक्रेन पर भरोसा करने लगी। दोनों ने जॉइंट ऑपरेशन्स शुरू कर दिए।



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