ईरान के हमलों का इसराइल कैसे देगा जवाब, अब आगे क्या करेंगे नेतन्याहू?

Updated on 15-04-2024 12:50 PM

ईरान ने कहा है कि दो सप्ताह पहले सीरिया में उसके वाणिज्य दूतावास पर हुए जानलेवा हमलों के जवाब में उसने इसराइल पर हमला किया है. ईरान ने सीरिया में हुए हमले के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया था.

लेकिन ये संघर्ष अब यहां से कौन-सा मोड़ लेगा, ये इस बात पर निर्भर करता है कि ईरान के हमले का इसराइल किस तरह जवाब देगा.

इस इलाक़े के दूसरे देशों के साथ-साथ दुनिया के और मुल्कों ने संयम बरतने की अपील की है. इनमें वो देश भी शामिल हैं जो ईरानी सत्ता को पंसद नहीं करते.

ईरान फिलहाल उम्मीद के अनुरूप ही आगे बढ़ रहा है. उसका रुख़ है, "हिसाब-क़िताब पूरा हुआ, ये इस मामले का अंत था. हम पर फिर हमला मत करना नहीं तो हम इससे भी मज़बूत हमला करने को बाध्य होंगे, ऐसा हमला जिसका आप मुक़ाबला नहीं कर पाएंगे."

लेकिन इसराइल पहले ही साफ़ कर चुका है कि उसने इस हमले की "कड़ी प्रतिक्रिया देने" की कसम खाई है. इसराइली इतिहास में ईरान की सरकार को सबसे कट्टरपंथी सरकार कहा जाता है.

बीते साल सात अक्तूबर को दक्षिणी इसराइल पर हुए हमास के हमले का इसराइल ने कड़ा जवाब दिया था. उसने ग़ज़ा पट्टी पर हमला किया और बीते छह महीनों में वहां भीषण तबाही मचाई है.

ईरान की तरफ से हुए सीधे-सीधे हमले को इसराइल की वॉर कैबिनेट ऐसे ही छोड़ देगी ऐसा नहीं लगता, भले ही बेहद सुनियोजित तरीके से चलाए गए इस हमले का ज़मीनी स्तर पर कम ही असर देखा गया.

तो अब इसराइल के पास क्या विकल्प हैं?

हो सकता है कि इसराइल इलाक़े के अपने पड़ोसियों की बात सुने और "रणनीतिक संयम" बरतते हुए आगे बढ़े. वो ईरान के हमले का जवाब देने की बजाय इलाक़े में ईरान के प्रॉक्सी सहयोगियों (ईरान समर्थित हथियारबंद गुटों) जैसे लेबनान में हिज़बुल्लाह या सीरिया में उसके सप्लाई के ठिकानों पर हमले करना जारी रख सकता है, जो वह सालों से कर रहा था.

ये भी हो सकता है कि इसराइल लंबी-दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुए इसी तरह के कई सुनियोजित हमले करे जिसमें वो ईरान के उन ठिकानों को निशाना बनाए जहां से ईरान ने शनिवार रात उस पर मिसाइल दाग़े थे.

लेकिन ईरान इसे संघर्ष को आगे बढ़ाने की तरह देखेगा, क्योंकि ये पहली बार होगा जब इसराइल सीधे-सीधे ईरान में उसके ठिकानों को निशाना बनाएगा, न कि इलाक़े के दूसरे देशों में मौजूद उसके प्रॉक्सी पर हमले करेगा.

या इसराइल ईरान के शक्तिशाली रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) से संबंधित ठिकानों, ट्रेनिंग कैंपों और कमांड-कंट्रोल सेंटर्स को निशाना बनाते हुए एक-एक कर अपने कदम आगे बढ़ा सकता है.

हालांकि, बाद वाले दोनों विकल्पों में ही ये जोखिम है कि ये ईरान को बदला लेने के लिए उकसा सकते हैं.

यहां सबसे अहम सवाल ये भी है कि क्या इन सब में अमेरिका को भी घसीटा जाएगा. इससे क्षेत्र में ईरान और अमेरिकी सेना के बीच व्यापक पैमाने पर जंग शुरू होने का ख़तरा हो सकता है.

अमेरिका के पास खाड़ी के सभी छह अरब देशों के साथ-साथ सीरिया, इराक़ और जॉर्डन में सैन्य ठिकाने हैं. ये सभी ठिकाने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद ईरान के बैलिस्टिक और अन्य मिसाइलों के जखीरे का निशाना बन सकते हैं, जिन्हें ईरान सालों से बना रहा है.

अगर आने वाले वक्त में उस पर हमला होता है तो ईरान भी ऐसा कुछ कर सकता है, जिसकी धमकी वह लंबे समय से देता आ रहा है.

वह माइन्स, ड्रोन्स और तेज़ी से हमला करने वाले क्राफ्ट के इस्तेमाल से रणनीतिक रूप से अहम होर्मुज़ स्ट्रेट को बंद करने की कोशिश कर सकता है. इससे दुनिया भर में कुल तेल आपूर्ति के क़रीब एक चौथाई हिस्से के अटकने की आशंका है.

ये एक बुरे सपने की तरह होगा, जो अमेरिका और खाड़ी देशों को एक व्यापक युद्ध में घसीट सकता है. फिलहाल इस स्थिति से बचने के लिए कई देशों की सरकारें चौबीसों घंटे सक्रिय हैं.

क्या है पूरा मामला

बीती एक अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले में उसके सात अधिकारियों की मौत हो गई थी.

मरने वालों में ईरान की एलीट कुद्स फ़ोर्स के कमांडर ब्रिगेडियर-जनरल मोहम्मद रज़ा ज़ाहेदी और उनके डिप्टी ब्रिगेडियर-जनरल मोहम्मद हादी हाजी-रहीमी का नाम शामिल था. रेज़ा ज़ाहेदी ईरान के शीर्ष कमांडरों में से एक थे.

ईरान ने इस हमले के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि वह इसे अंजाम देने वालों को जवाब देने का हक़ रखता है.

इसके बाद से ही ये आशंका थी कि ईरान किसी भी दिन इसराइल पर जवाबी हमला कर सकता है. अमेरिका ने भी इसकी चेतावनी दी थी.


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