हापुड़। बेटे को अफसर बनाने की चाहत में एक परिवार कर्ज में ऐसा फंसा कि मौत के बाद ही निकल पाया। कच्चे मकान के एक कमरे के मकान में पति-पत्नी और बेटी ने आत्महत्या कर ली। इसी के साथ ही बेटे को अफसर बनते देखने की चाहत का दर्दनाक अंत हो गया।
बेटे रिंकू ने बताया कि पिता संजीव राणा के तीन भाई है। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है। एक ही मकान पूरा परिवार साथ रहता है। कमरा एक ही है। उसमें ही पिता संजीव राणा, माता प्रेमवती, बहन पायल व भाई पिंटू के साथ हम सब लोग रहते थे।
माता-पिता मजदूरी कर हम भाई-बहनों को पढ़ाना लिखाना चाहते थे। तीन बच्चों को आज के दौर में पढ़ाना बहुत ही कठिन हो रहा था, लेकिन फिर वह यह सब कर रहे थे। पिंटू पढ़ाई में कुछ खास नहीं था। उसका मन भी नहीं लग रहा था, तो उसने पढ़ाई बीच में ही छोड़कर पिता के साथ काम करना शुरू कर दिया।
पापा की आस मुझसे थी। वह चाहते थे कि मैं आगे पढ़ूं, जिससे परिवार के लिए चुनौतियां कम हो सकें। मैं भी उनका बोझ कम करना चाहता था, इसलिए पढ़ाई के साथ ट्यूशन भी दे रहा था।
पापा ने कहा कि तू एमबीए कर ले, जिससे अच्छी नौकरी लग जाएगी। फीस इतनी ज्यादा थी कि हिम्मत ही नहीं हो पा रही थी, लेकिन उन्होंने कैपिटल फाइनेंस कंपनी से 3.50 लाख का कर्ज ले लिया। उसके बाद मैंने गाजियाबाद के एक कॉलेज में एडमीशन ले लिया।
पापा ने एक दूसरी फाइनेंस कंपनी से 1.50 लाख का कर्ज और लिया था। मम्मी ने भी स्वयं सहायता समूह से पैसा उठाया था। यह कर्ज उन्होंने मकान को गिरवी लेकर लिया था। किस्त देने में अगर एक दिन भी लेट हो गए, तो सूदखोर 1180 रुपये की पेनल्टी लगा देते थे। कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा था। सब बहुत ज्यादा परेशान थे। पापा और मम्मी ने बहुत अपमान झेला था।
पापा बहुत ज्यादा परेशान थे। एक दिन चाचा रामकुमार को अपना दर्द सुनाते-सुनाते वह बच्चों की तरह रो पड़े। यह देखकर उनसे रहा नहीं गया, तो उन्होंने अपनी भैंस बेचकर पापा को 50 हजार रुपये दे दिए।
ज्ञानंजय सिंह, एसपी ने कहा कि पेनल्टी लगाए जाने की जानकारी सामने नहीं आई है। संजीव राणा के बेटों से पूछताछ की जा रही है। मामले की शिकायत करने के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी।