ईरानी सुप्रीम लीडर खुद को बताते हैं पैगंबर का दूत

Updated on 01-03-2024 12:59 PM

2020 के दिल्ली दंगों के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने यह बयान दिया था। इससे पहले कश्मीर के मुद्दे पर भी खामेनेई कई बार विवादित बयान देते आए हैं। साल 2017 में खामेनेई ने कश्मीर की तुलना गाजा, यमन और बहरीन से की थी।

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के कुछ दिन बाद खामेनेई ने सोशल मीडिया पर लिखा था- "हम कश्मीर में मुस्लिमों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। हमारे भारत से अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि भारत कश्मीर में मुस्लिमों के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएगा।" खामेनेई ने काफी समय तक अपने इस ट्वीट को अकाउंट में सबसे ऊपर बनाए रखा था।

1989 में खामेनेई ने कहा- "मैं सुप्रीम लीडर बनने लायक नहीं", अब 35 साल से पद पर कायम
ईरान में 1979 में आयतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति हुई थी। खुमैनी देश के पहले सुप्रीम लीडर थे। 1989 में उनकी मौत के बाद ईरान के सामने सबसे बड़ी चुनौती पद को दोबारा भरने की थी। ऐसे में असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स ने खामेनेई का नाम सुझाया।

तब सदन की कार्यवाही में उन्होंने कहा था- "हमें ऐसे इस्लामिक समाज के लिए खून के आंसू बहाने चाहिए, जहां मुझ जैसे शख्स को ईरान का सुप्रीम लीडर बनाने की बात हो रही है। मैं इसके लायक नहीं हूं। संविधान और मजहब के हिसाब से भी मेरे आदेशों का पालन नहीं किया जाएगा। मैं इस पद को स्वीकार नहीं कर सकता।"

उनके इनकार करने के बावजूद असेंबली ने खामेनेई को सुप्रीम लीडर बनाया। उन्हें यह पद अस्थायी तौर पर ही मिला था, लेकिन आज 35 साल के बाद भी खामेनेई ही ईरान के सर्वोच्च नेता हैं।

खामेनेई बोले- "मेरे जरिए खुद परमात्मा ने बात की"
साल 2020 में ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी को अमेरिका और इजराइल ने बगदाद में एक मिसाइल अटैक में मार गिराया था। इसके बाद सुप्रीम लीडर खामेनेई ने सुलेमानी के परिवार से बात करते वक्त एक किस्सा सुनाया था।

ईरान इंटरनेशनल के मुताबिक, उन्होंने कहा था- "करीब 20 साल पहले मैं सेना के अधिकारियों से बात कर रहा था। तब ही मैं अचानक उपदेश देने लगा। उस दिन मेरे जरिए परमात्मा खुद बात कर रहे थे। वो जुबान मेरी थी, लेकिन शब्द उन्हीं के थे। यह बेहद खास लम्हा था और उसका असर भी उतना ही ज्यादा हुआ।"

इससे पहले भी साल 2010 में खामेनेई ने एक फतवा जारी कर खुद को आध्यात्मिक गुरु कहा था। वॉइस ऑफ अमेरिका के मुताबिक खामेनेई ने दावा किया था कि वो पैगंबर मोहम्मद के दूत और धरती पर शियाओं के 12वें इमाम हैं। शिष्यों को उनके आदेशों का उसी तरह पालन करना चाहिए।

खामेनेई ने सलमान रुश्दी के खिलाफ जारी हुआ फतवा दोहराया
मशहूर लेखक सलमान रुश्दी ने 34 साल पहले यानी 1988 में अपनी विवादित किताब 'सैटेनिक वर्सेज' लिखी थी। कहा जाता है कि यह किताब पैगंबर मोहम्मद के जीवन से प्रेरित थी। 'सैटेनिक वर्सेज' का हिंदी में अर्थ ‘शैतानी आयतें’ हैं। इस किताब के नाम पर ही मुस्लिम धर्म के लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी।

भारत पहला देश था जिसने इस उपन्यास को बैन किया था। इसके बाद ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खुमैनी ने इस किताब को इस्लाम धर्म का अपमान बताया था। उन्होंने 1989 में रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया था।

रुश्दी अगले 10 साल तक ब्रिटेन में छिपकर रहे। 1998 में ब्रिटेन के साथ एक समझौते के तहत ईरानी सरकार ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि अब वो सलमान की मौत का समर्थन नहीं करते। हालांकि, सालों बाद 2019 में सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामेनेई ने एक ट्वीट किया।

इसमें कहा गया- "रुश्दी के खिलाफ जारी हुआ फतवा ठोस है। इसे बदला नहीं जा सकता।" इस पोस्ट के जरिए खामेनेई ने एक बार फिर रुश्दी को मारे जाने की मांग की। यही वो पोस्ट था, जिसके बाद सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म X पर खामेनेई का अकाउंट बंद कर दिया गया।

ईरान में टाई पहनने, संगीत सुनने-सीखने, AI के खिलाफ फतवे
1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के कुछ ही समय बाद महिलाओं का हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। इसे लागू करने के लिए ईरान में मॉरैलिटी पुलिस भी बनी। ड्रेस कोड के मुताबिक, ईरान में महिलाओं को अपने बालों को ढककर रखना होता है। साथ ही उन्हें ढीले कपड़े पहनने होते हैं।

सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के मुताबिक, "हिजाब न पहनना मजहब और राजनीतिक स्तर पर हराम है। महिलाओं को अपने हिजाब पर खास ध्यान देना चाहिए। यह उनका कर्तव्य और पहचान है। हिजाब महिलाओं को आजादी देता है। यह उन्हें और ज्यादा कीमती बनाता है। महिलाओं को हिजाब लागू करने के लिए इस्लाम का आभारी होना चाहिए।"

दूसरी तरफ, ईरान में टाई पहनना भी शरिया कानून के खिलाफ माना जाता है। सुप्रीम लीडर ने इसे लेकर फतवा भी जारी कर रखा है। इसके मुताबिक, टाई गैर-मुस्लिम परिधान है, और इसे पहनना पश्चिमी कल्चर को बढ़ावा देना है। साथ ही अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर-नर्सों के ज्यादा मेकअप करने के खिलाफ भी फतवा लागू है।

इसके अलावा ईरान में संगीत पर भी पाबंदी है। खामेनेई के मुताबिक, "संगीत इस्लामिक रिपब्लिक देश के मूल्यों के साथ मेल नहीं खाता। देश में इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। ऐसे तो संगीत हलाल है, लेकिन इसे सिखाना या बढ़ावा देना इस्लामिक देश के मूल्यों के खिलाफ है।"

पिछले साल ईरान में सुप्रीम लीडर ने AI के खिलाफ भी फतवा जारी किया था। इसमें AI को सैटेनिक यानी शैतानी कहा गया था। फतवे के मुताबिक, "जो भी व्यक्ति देश में AI का इस्तेमाल करेगा, उसे सजा-ए-मौत दी जाएगी।"

खामेनेई ने अमेरिका को बताया शैतानी देश
अफगानिस्तान, लेबनान, यमन और रूस जैसे अमेरिका विरोधी देशों में कई बार 'मार्ग बार अमरीका' यानी 'डेथ टु अमेरिका' के नारे लगाए जा चुके हैं। इस राजनीतिक स्लोगन की शुरुआत कोरियाई जंग के दौरान नॉर्थ कोरिया में हुई थी। हालांकि, दुनिया में इसे मशहूर करने का क्रेडिट पूर्व ईरानी सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खुमैनी को जाता है।

2018 में ईरान के साथ अमेरिका ने न्यूक्लियर डील खत्म करने के साथ ही देश पर कई पाबंदियां लगा दी थीं। इसके बाद ईरान के प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर 'डेथ टु अमेरिका' के नारे लगे थे। सुप्रीम लीडर खामेनेई ने एक संबोधन में कहा था- "दुनियाभर की सभी बड़ी ताकतों और खासकर सबसे बड़े शैतान (अमेरिका) को यह समझ लेना चाहिए कि ईरान किसी के सामने झुकेगा नहीं।"

2019 में एक बयान के दौरान खामेनेई ने कहा था- "डेथ टु अमेरिका' वहां के नागरिकों नहीं बल्कि नेताओं के लिए है। 'डेथ टु अमेरिका' का मतलब है डेथ टु ट्रम्प, जॉन बोल्टन (NSA) और माइक पॉम्पियो (विदेश मंत्री)।"

ईरान के साथ न्यूक्लियर डील खत्म करने के अमेरिका के फैसले के बाद खामेनेई ने कहा था- "ट्रम्प की जल्द ही मौत हो जाएगी। उनके शव को कीड़े खाएंगे और वो राख में बदल जाएगा। इस दौरान ईरान मजबूती से खड़ा रहेगा।"



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