29 अप्रैल, 2020। ये वही तारीख है, जिस हिन हमने एक्टर इरफान को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया था। उन्होंने 53 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। लेकिन कोई उन्हें भूला नहीं और शायद ही कभी उनकी यादें जहन से जाएंगी। उन्होंने अपने अभिनय, अपनी सादगी और अपने व्यवहार से लोगों के बीच अपनी अमिट छाप छोड़ी है, जो कभी धुंधली नहीं होगी। उन्होंने तो भगवान शिव के दिन यानी सोमवार का व्रत करने का भी फैसला कर लिया था। साथ ही वह पूरी तरह से आध्यात्म से जुड़ने के बारे में भी सोच रहे थे। साथ ही नाम के पीछे से खान भी हटा लिया था।
इरफान खान ने सुतारा सिकंदर से 23 फरवरी, 1995 को शादी की थी। दोनों नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा यानी NSD में एक नाटक के दौरान मिले थे। बाद में इन्हें प्यार हुआ और फिर कोर्ट मैरिज कर ली। हालांकि प्यार और शादी के बीच ये दोनों लिव-इन में रहते थे। फिर वह प्रेग्नेंट भी हो गईं। घर तलाशने के दौरान जब उनसे पूछा जाने लगा कि क्या उनकी शादी हो चुक है, तो एक्टर ने कानूनी तरीके से उन्हें पत्नी बना लिया। एक्टर तो सुतापा के लिए धर्म बदलने के लिए भी तैयार थे। लेकिन पत्नी के धर्म परिवर्तन पर उन्हें ऐतराज था।
इरफान की पत्नी सुतारा रखती हैं रोजा
सुतापा ने एक इंटरव्यू में इरफान के बारे में बताया था कि वह मुसलमान नहीं हैं। लेकिन रोजा रखती हैं। उन्हें एक्टर ने ये बात सिखाई थी कि मुस्लिम बनने के लिए रोजा रखने या अल्लाह की इबादत करने के लिए धर्म परिवर्तन करने की कोई जरूर नहीं है। सुतापा ने बताया था कि एक्टर सोमवार का व्रत रखना चाहते थे। लेकिन आखिरी वक्त तक वह इस इच्छा को पूरी ना कर सके।
इरफान को करना था सोमवार का व्रत
सुतापा ने बताया था, 'इरफान व्रत नहीं रख से। जबकि वह दो सालों से व्रत करना चाह रहे थे। वह कहते थे कि एक दिन हफ्ते में मैं व्रत करूंगा। और उन्होंने अपने रिश्तेदारों को ये कहकर चौंका दिया था कि वह भोलेनाथ का उपवास करेंगे।' इरफान ने अपने रिश्तेदारों से कहा था, 'मैंने सोच लिया है कि मैं सोमवार का व्रत करूंगा, जो शिवजी का दिन होता है।'
अंतिम समय में इरफान ने इन्हें पढ़ा
सुतापा ने बताया था कि इरफान अभी जीवित होते तो वह अपना ही धर्म बना लेते। उनके लिए धर्म का मतलब आध्यात्म था। 'उसकी किसमत में लिखा था कि वह इस शोबिज को छोड़कर अपनी खुद की किसी खोज पर निकल जाएगा। उसने पढ़ना शुरू कर दिया था। उन्होंने उपनिषदों को पढ़ा, रामकृष्ण परमहंस को पढ़ा, विवेकानंद को पढ़ाई। ओशो, महावीर, सब पढ़ा। लेकिन वह कभी एक धार्मिक व्यक्ति नहीं थे। वह खुद की खोज के सफर पर था।'
इरफान ने इसलिए हटाया था 'खान'
इरफान खान का असली नाम साहबजादे इरफान खान अली खान है। सरनेम को भी हटाने के पीछे भी इरफान खान का एक मकसद था। वह चाहते थे कि वह अपने काम की वजह से जाने जाएं ना कि अपने पूर्वजों और वंश के कारण। इंडस्ट्री में आने के पहले उन्होंने ऐसा किया था। उन्होंने बताया था, 'जब मैं इंडस्ट्री में शामिल हुआ था तो मैंने सरनेम हटा दिया था। मैं चाहता था कि मेरा काम मुझे पहचान दिलाए, न कि मेरा सरनेम। मैं सरनेम की पावर के बारे में विश्वास नहीं करता हूं। आपको जो शक्तिशाली बनाते हैं, वो आपके कर्म होते हैं। काम होता है। जब मैं अपने होमटाउन जाता तो लोग ये बात करते कि तुम्हारे दादा-परदादा ने ये काम किया है। ऐसा किया। वैसा किया। तो पुराने समय में जीने का क्या फायदा? मुझे बुरा लगता है। सरनेम हटाने का फैसला सोच समझकर लिया था। मैं अपने पूर्वजों के काम के कारण पहचान नहीं बनाना चाहता हूं।'