खुद ही ससम्मान रिटायर हो जाना ज्यादा अच्छा

Updated on 31-07-2024 05:45 PM

राजनीति मेें पद व प्रतिष्ठा का अपना नशा होता है. जब तक आदमी पद पर रहता है, उसकी समाज,परिवार व देश प्रदेश में प्रतिष्ठा बनी रहती है। उसे पद व प्रतिष्ठा का नशा रहता है, उसके पास रहने वाली भी़ड़ उसे एहसास दिलाती है कि आप हमारे लिए खास हो। जिस आदमी के पास जितनी भीड़ होती है, उसे पद व प्रतिष्ठा का उतना ही गहरा नशा होता है। यह ऐसा नशा होता है कि आदमी को अच्छा लगता है, इसलिए वह चाहता है कि यह नशा हमेशा रहना चाहिए। बुरी बात यह है कि यह नशा तब तक ही रहता है जब तक पद व प्रतिष्ठा रहती है। जैसे ही पद गया और प्रतिष्ठा गई वैसे ही यह नशा उतर जाता है क्योंकि भीड़ तो पद के कारण होती है, जैसे ही पद चला जाता है, भीड़ भी चली जाती है किसी नए पद पाने वाले आदमी के पास।

बिना पद के राजनीति में रहने वाले को लगता है कि उसकी पूछपरख कम हो गई है, उसके पास अब कोई नहीं आता है। परिवार,समाज,देश व प्रदेश में उसका कोई महत्व नहीं रह गया है। इसलिए वह चाहता है कि वह जब तक जिंदा रहे किसी न किसी पद पर रहे। पद तो तब मिलता है जब राज्य, जिले की राजनीति में हैसियत चुनाव जिताने की हो।पद तो तब मिलता है जब अपनी पार्टी सत्त्ता मेें रहे।पद भी तो तब मिलता है जब पार्टी के शीर्ष नेताओं में नेता का महत्व बना रहे। पार्टी को लगे कि यह नेता अभी पार्टी के लिए उपयोगी है। पार्टी यह भी तो देखती है कि नेता को पार्टी से क्या कुछ मिल चुका है, यदि पार्टी से नेता को बहुत कुछ मिल गया होता है और उसकी उम्र रिटायर होनेे की हो गई है तो पा्टी उससे यही अपेक्षा करती है कि वह खुद ही सक्रिय राजनीति ने रिटायर हो जाए और नए लोगों को सामने आने का मौका दे।

किसी नेता को यदि राज्यपाल बना दिया जाए तो माना जाता है कि अब वह राज्य की सक्रिय राजनीति के लायक नहीं रहा गया है.राज्यपाल रमेश बैस को राज्यपाल पद से हटा दिया गया है, वह अपने गृहराज्य छत्तीसगढ़ पहुंच गए हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में रमेश बैस का कद कभी ऊंचा हुआ करता था, उनका अपना एक गुट थाबहुत सारे समर्थक थे। वह लगातार चुनाव जितनेे वाले नेता थे इसलिए लोक्रप्रिय भी थे।वह सात बार सांसद रहे। माना जाता था कि रमन सिंह से उनकी बनती नहीं थी। इसलिए उनको छत्तीसगढ़ की सक्रिय राजनीति से बाहर करना जरूरी समझा गया। रमेश बैस को रा्ज्यपाल को बनाकर छत्तीसगढ़ की राजनीति से बाहर कर दिया गया।वह इसके बाद त्रिपुरा, झारखंड व महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे।

छत्तीसगढ़ पहुंचने पर रमेश बैस ने सक्रिय राजनीति में वापसी के सवाल पर कहा है कि छत्तीसगढ़ पहुंचने के बाद वह अब भाजपा का कार्यकर्ता हैं।उनके लिए पार्टी का जो भी आदेश होगा वह उसका पालन करेंगे। आज वह जो कुछ हैं, पार्टी की वजह से ही हैं।उनको आज तक जो भी जिम्मेदारी मिली है उनकी कोशिश रही है कि वह सबको साथ लेेकर चलें। रमेश बैस के बयान से तो यही लगता है कि वह इस बात का इंतजार करेंगे कि पार्टी उनके विषय में क्या सोच रही है। यह सच है कि उनको पार्टी के जितना मिलना था, मिल चुका है। 

ज्यादातर नेताओं की उच्च सीमा राज्यपाल का पद होता है, बहुत कम ऐसे नेता होते है जिनको उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति के लायक समझा जाता है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में अब रमेश बैस के दौर के नेता भी कम ही रह गए हें। छत्तीसगढ़ की पूरी राजनीति ही बदल गई है,रमन सिंह दौर के नेता भी अब पुराने नेता माने जा रहे हैं। युवा नेताओं को मौका दिया जा रहा है। राज्य में एक मजबूत सरकार है, रमन सिंह के बाद यह सीएम साय का दौर है। यह दौर भी लंबा चले यह भाजपा के शीर्ष नेतृ्त्व भी यही चाहेगा। इसके लिए जरूरी है कि पुराने नेताओं की जगह नए नेताओं का मौका दिया जाए। ऐसे में रमेश बैस को अब राज्य की राजनीति में तो शायद ही कोई मौका मिले। यह जरूर हो सकता है कि उनके परिवार के लोगों में से किसी को मौका दिया जाए बशर्ते वह चुनाव जीतने योग्य हो।लगातार चुनाव जीतने योग्य हो, रमेश बैस की तरह।



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