भोपाल । मंदसौर व नीमच जिले की प्रमुख फसल अफीम की खेती में अब बदलाव की आहट शुरू हो गई है। इसके तहत अब आस्ट्रेलिया की तर्ज पर खेती शुरू की गई है। फिलहाल लगभग चार हजार किसानों को 6-6 आरी के हरे पट्टे दिए गए हैं। इनके खेतों में फसल से निकलने वाले डोडों से सीधे मशीन से सीपीएस पद्धति से अफीम निकाली जाएगी। मूलत: आस्ट्रेलिया में अफीम की खेती में प्रयोग हो रही इस पद्धति के अच्छे रिजल्ट मिले हैं। अफीम की अच्छी गुणवत्ता के लिए केंद्र सरकार भी काफी समय से इसे लागू करने की कोशिश में थी, लेकिन इसमें डोडाचूरा व पोस्तादाना नहीं मिलने से किसान विरोध कर रहे हैं।
नई अफीम नीति मेें केंद्र सरकार ने मार्फिन का 4.2 किग्रा प्रति हेक्टेयर से अधिक का औसत देने वाले किसानों को ही परंपरागत खेती के लिए पट्टे दिए हैं। वहीं एक नया प्रयोग करने के लिए 3.7 प्रतिशत से 4.2 प्रतिशत तक औसत वाले अपात्र किसानों को 6-6 आरी के हरे पट्टे दिए गए हैं। ये किसान डोडे नारकोटिक्स विभाग को सौंपेंगे। इन डोडों से बिना चिराई के सीपीएस पद्धति से अफीम निकाली जाएगी।
सीपीएस पद्धति से पट्टे का वितरण
भारत में यह पहली बार होगा। सीपीएस पद्धति में खेती के लिए मंदसौर जिले में 2237 किसान शामिल हैं। हरे पट्टे के लिए कागज भी हरे रंग का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। 2237 में से करीब 400 ऐसे किसान शामिल हैं, जिनके पट्टे 2019-20 व 2020-21 में कट गए थे। अब सीपीएस पद्धति के तहत पट्टे वितरण किए जा रहे हैं। निर्देश प्राप्त हुए उसके संबंध में किसानों को जानकारी दी जा रही है। सीपीएस में किसानों को हरे कागज पर पट्टा दिया जा रहा है इसलिए इस पट्टे को हरा पट्टा कहा जा रहा है।
डोडों व पोस्तदाना का फायदा कैसे मिलेगा
मंदसौर-नीमच जिले के किसान नई पद्धति से खुश नहीं हैं, क्योंकि अफीम के सह उत्पाद डोडाचूरा व पोस्तादाना से किसानों को एक सीजन में दो से तीन लाख रुपए तक आय होती है। सीपीएस पट्टे की पात्रता के लिए दो मापदंड तय किए गए हैं। पहला जिन किसानों ने वर्ष 2020-21 में 3.7 से 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की औसत से मार्फिन दी। दूसरा 2019-20 तथा 2020-21 में पट्टे कटने वाले किसानों ने लगातार पट्टा रद्द होने वाले साल सहित पांच साल तक मार्फिन औसत 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के 100 प्रतिशत या उससे अधिक दी हो।
क्या है सीपीएस पद्धति
आस्ट्रेलिया में अफीम की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए डोडे से कांसन्ट्रेट पापीस्ट्रा (सीपीएस) पद्धति से ही अफीम निकाली जाती है। इसी कारण वहां की अफीम की मांग अमेरिका, जापान व अन्य देशों की मेडिकल कंपनियां ज्यादा करती हैं। इसमें डोडे से सीधे अफीम निकालने की प्रक्रिया होती है। अभी कुछ देशों में यही प्रक्रिया चल रही है। भारत में अभी तक डोडे से पुरानी पद्धति लुणी-चिरनी से खेत में अफीम निकालने और उसे एकत्र कर नारकोटिक्स विभाग को देने की प्रक्रिया चल रही है। नारकोटिक्स विभाग नीमच व गाजीपुर में स्थित अल्केलाइड फैक्टरी में इस अफीम को प्रोसेस कर कोडीन फास्फेट, मार्फिन व अन्य उपयोगी उत्पाद अलग-अलग करते हैं।