नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ पिछले महीने हुए समझौते के बाद डिसइंगेजमेंट का काम पूरा हो चुका है और अब ध्यान डि-एस्कलेशन पर होगा। जयशंकर ने साफ किया कि वह डिसइंगेजमेंट को केवल सेनाओं के पीछे हटने के रूप में ही देखते हैं, न तो इससे ज्यादा और न ही कम। यह भी देखा जा रहा है कि जयशंकर बहुत सोच-समझकर बयान दे रहे हैं, क्योंकि डिप्लोमेसी में हर शब्द का अपना विशेष महत्व होता है। आइए, इसे और गहराई से समझने की कोशिश करते हैं।फिलहाल क्या है स्थिति?
बता दें कि भारतीय और चीनी सेनाओं ने हाल ही में लद्दाख के डेमचोक और डेपसांग क्षेत्रों में LAC पर पीछे हटने का काम पूरा किया, और दोनों पक्षों ने करीब साढ़े चार साल के अंतराल के बाद अपनी-अपनी गश्ती गतिविधियां फिर से शुरू कीं। शनिवार को दिए अपने बयान से दो हफ्ते पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में यह कहा था कि चीन के साथ डिसइंगेजमेंट का चैप्टर अब समाप्त हो चुका है। इसका मतलब है कि डिसइंगेजमेंट के बाद अगला कदम डि-एस्कलेशन होगा, और फिर डि-इंडक्शन की प्रक्रिया होगी।
रक्षा मामलों के जानकार कमर आगा का कहना है कि ये तीनों चरण-डिसइंगेजमेंट, डि-एस्कलेशन और डि-इंडक्शन-तनाव कम करने की दिशा में अहम कदम हैं, और यह कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन के लिहाज से बेहद अहम हैं। डिसइंगेजमेंट का मतलब है सेनाओं का पीछे हटना, जबकि डि-एस्कलेशन का मतलब है कॉन्फ्लिक्ट को निचले स्तर पर लाना। डि-एस्कलेशन के तहत दोनों पक्ष इस पर सहमत होते हैं कि विवादित क्षेत्र में निश्चित संख्या में सैनिक और हथियार तैनात किए जाएं, ताकि स्थिति और बिगड़े नहीं।
आगे का क्या कदम उठाए जाएंगे ?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर दो बार यह कह चुके हैं कि अब दोनों देशों का फोकस डि-एस्केलेशन पर होगा। कैनबरा में ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री के साथ एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयशंकर ने कहा था कि डि-एस्केलेशन को लेकर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक होगी। इसके अलावा, कजान में शी जिनपिंग और नरेन्द्र मोदी के बीच बैठक के बाद यह भी कहा गया था कि सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक जल्द ही शेड्यूल की जाएगी। हालांकि, अब तक इस बैठक के बारे में कोई आधिकारिक खबर सामने नहीं आई है। कजान में दोनों देशों के बीच सहमति के पीछे जयशंकर और वांग यी की जून और जुलाई में हुई बैठकें भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस प्रकार, डिसइंगेजमेंट के बाद आगे का रास्ता काफी हद तक इन बैठकों के परिणामों पर निर्भर करेगा।
4 साल की डिप्लोमेसी से सुधरे हालात
10 सितंबर 2020 को मॉस्को में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक हुई थी। जयशंकर और वांग यी के बीच हुई उस बैठक की प्रेस रिलीज़ में कहा गया था कि दोनों मंत्री इस बात पर सहमत हुए थे कि सीमा पर मौजूदा तनावपूर्ण हालात किसी के भी हित में नहीं हैं। ऐसे में दोनों पक्षों के सैनिकों को डायलॉग को आगे बढ़ाना चाहिए, डिसइंगेज करना चाहिए, उचित दूरी बनानी चाहिए और तनाव को कम करना चाहिए। हाल ही में, जयशंकर ने खुद यह माना था कि भारत और चीन के बीच हालिया पट्रोलिंग समझौते की शुरुआत उसी बैठक से हुई थी और लगातार डायलॉग की वजह से ही यह समझौता संभव हो सका है।
चीन पर विश्वास अब भी मुश्किल
मॉस्को में 2020 में हुए जिस संयुक्त बयान का जिक्र विदेश मंत्री ने किया था, उसमें दोनों देशों ने डिसएंगेजमेंट पर सहमति तो जताई थी, लेकिन डि-एस्केलेशन का कोई उल्लेख नहीं था। जानकारों का कहना है कि भारत और चीन के बीच अतीत में अविश्वास की गहरी खाई रही है। विदेश मंत्री ने कई बार इशारों में, और कई बार सीधे तौर पर यह कहा कि चीन समझौतों का सम्मान नहीं करता। दोनों देशों के बीच पट्रोलिंग अरेंजमेंट की घोषणा के बाद, चीनी विदेश मंत्रालय की पहली झिझक भरी प्रतिक्रिया में इस अविश्वास की झलक भी देखने को मिली थी।