नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि भाजपा से अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करना मूर्खता करने जैसा होगा, क्योंकि भाजपा ने ही 370 हटाया था। हालांकि, हम इस मुद्दे को जिंदा रखेंगे।
उमर अब्दुल्ला ने कहा- हमारा पॉलिटिकल स्टैंड कभी नहीं बदलेगा। हम इस मुद्दे को लेकर चुप नहीं बैठेंगे। हम इस पर बात करना जारी रखेंगे और उम्मीद करते हैं कि कल जब केंद्र में सरकार बदलेगी, जब देश में एक नया तंत्र होगा, तब हम इस पर चर्चा करेंगे और जम्मू-कश्मीर के लिए कुछ हासिल कर सकेंगे।
इधर, गुरुवार सुबह नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक दल की मीटिंग होगी। पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 42 सीटें जीतीं। कांग्रेस-CPI(M) की 7 सीटों के साथ NC गठबंधन सरकार बनाने जा रही है। उमर के पिता और पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ऐलान कर चुके हैं कि उमर ही CM बनेंगे। हालांकि, अभी शपथ ग्रहण की तारीख तय नहीं हुई है।
उमर अब्दुल्ला ने 370 समेत 3 मुद्दों पर चर्चा की
1. आर्टिकल 370 हटाने पर
370 हटाने का फैसला जनादेश के पक्ष में नहीं था। अगर ऐसा होता, तो भाजपा विधानसभा चुनाव में जीत गई होती। 5 अगस्त, 2019 को जो किया गया था, जम्मू-कश्मीर के लोगों ने उसका समर्थन नहीं किया है। हमसे सलाह नहीं ली गई थी। हम उस निर्णय का हिस्सा नहीं थे।
NC का राजनीतिक एजेंडा या विचारधारा चुनाव दर चुनाव नहीं बदलता है। हम अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम मानते हैं कि विलय के समय जम्मू-कश्मीर से जो वादा किया गया था, वह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
2. CM और डिप्टी CM पर
अगला CM कौन बनेगा, इसका फैसला विधायक लेंगे। राज्य के अगले CM ही फैसला लेंगे की डिप्टी CM बनाने की जरूरत है या नहीं। NC के विधायक दल की मीटिंग के बाद गठबंधन की बैठक होगी। इसके बाद विधायकों के समर्थन पत्र के साथ उपराज्यपाल के पास जाएंगे। इसके बाद ही शपथ ग्रहण का समय तय किया जाएगा।
सीएम की कुर्सी कांटों का ताज होता है। यह आसान काम नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। मुझे लगता है कि मेरे दादा ने मेरे पिता से कांटों का ताज वाली बात कही थी। मैं तो ताज शब्द का इस्तेमाल नहीं करूंगा, क्योंकि इस शब्द में राजसी अर्थ छिपा है।
3. विधायकों को मनोनीत करने पर
उपराज्यपाल जिन्हें मनोनीत कर रहे हैं, वे अब विपक्ष में हो जाएंगे। वे विपक्ष में रहते हुए प्रतिनिधित्व कैसे करेंगे। उन्हें सरकार में होना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि प्रवासियों, शरणार्थियों का प्रतिनिधित्व करने वालों को विपक्ष में बैठकर उतना लाभ होगा, जितना उन्हें सरकार का हिस्सा बनने से मिलेगा।
जम्मू रीजन: 43 सीटों में 29 भाजपा जीती, कश्मीर में खाता नहीं खुला
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की 90 सीटों में से 43 जम्मू और 47 कश्मीर में हैं। भाजपा ने जम्मू रीजन की सभी 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और 29 सीटें जीती। वहीं कश्मीर रीजन की 47 सीटों पर भाजपा ने 20 कैंडिडेट उतारे थे। यहां भाजपा का खाता नहीं खुल पाया। गुरेज सीट से एक उम्मीद थी। यहां से फकीर मोहम्मद खान बीजेपी के कैंडिडेट थे। फकीर मोहम्मद 28 साल पहले 1996 में गुरेज से निर्दलीय विधायक चुने गए थे। फिर कांग्रेस में गए, हार गए। इस बार बीजेपी से भी उन्हें हार मिली।
कश्मीर रीजन: NC-कांग्रेस अलायंस: कश्मीर में मजबूत
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन कश्मीर में पहले से मजबूत था। नेशनल कांफ्रेंस की 42 सीटों में से करीब 35 से ज्यादा सीटें कश्मीर रीजन से मिली हैं। वहीं कांग्रेस ने भी कश्मीर संभाग से 6 सीटें जीतीं। 2014 में दोनों पार्टियों ने 27 सीटें जीती थीं। इस बार गठबंधन का आंकड़ा बहुमत के पार हो गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस चुनाव में 51 और कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
7 सीटों पर फ्रैंडली फाइट, जहां NC-कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार
नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर जम्मू-कश्मीर चुनाव लड़ा था। हालांकि 7 सीटें ऐसी थीं, जहां दोनों पार्टियों के बीच फ्रेंडली फाइट थी। दोनों पार्टियों ने अपने-अपने कैंडिडेट उतारे। ये सात सीटें- बनिहाल, डोडा, भद्रवाह, नगरोटा, सोपोर, बारामूला और देवसर थीं। इन सात सीटों में से एक NC को 4, भाजपा को 2, AAP को 1 सीट मिली। कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।