नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्री लीगल ऐड ( मुफ्त कानूनी मदद) की फंक्शनिंग को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत मैकेनिज्म स्थापित होना चाहिए, ताकि लीगल सर्विस अथॉरिटी की ओर से चलाई जा रही लाभकारी योजनाओं को तमाम लोगों तक पहुंचाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने जरूरतमंदों (कैदियों आदि) को जरूरी कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के मुद्दे पर कई निर्देश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि थानों, बस स्टॉप जैसे पब्लिक प्लेस पर निकटतम कानूनी सहायता ऑफिस का पता और फोन नंबर प्रमुखता से लिखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नैशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (नालसा) राज्यों और जिला के लीगल सर्विस अथॉरिटी के सहयोग से इस बात को सुनिश्चित करेगा कि जेल में जो बंद कैदी हैं, उन्हें कानूनी सहायता सेवा तक पहुंच हो सके और इसके लिए एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) कुशलतापूर्वक संचालित की जाए।
अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) राज्यों और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के सहयोग से यह सुनिश्चित करेगा कि जेल में कैदियों को कानूनी सहायता सेवा तक पहुंच के लिए मानक संचालन प्रक्रिया का सही तरीके से पालन हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानूनी सहायता सिस्टम की सफलता के लिए इसको लेकर जागरूकता बेहद अहम है। एक मजबूत सिस्टम बनाया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लीगल सर्विस अथॉरिटी की ओर से चलाए जा रहे तमाम लाभकारी योजनाओं के बारे में देश में कोने-कोने तक लोगों को जानकारी मिले।
सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई के दौरान नालसा ने बताया था कि 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जेलों में बंद करीब 870 कैदी मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में जानकारी मिलने पर अपनी सजा के खिलाफ इसके जरिए अपील करना चाहते हैं। जेल में कैदियों की संख्या में इजाफा होने से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है इसी मामले में उक्त निर्देश जारी किया गया है।