चीन समर्थक केपी ओली होंगे नेपाल के प्रधानमंत्री:12 की उम्र में राजनीति में उतरे, राम को नेपाल का बताया

Updated on 13-07-2024 01:39 PM

नेपाल में कल यानी (12 जुलाई) को पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की सरकार गिरने के बाद केपी शर्मा ओली ने सरकार बनाने का दावा पेश किया है।

द काठमांडू पोस्ट के मुताबिक ओली ने नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के साथ राष्ट्रपति को सरकार बनाने की अर्जी सौंपी है। उन्हें रविवार तक प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा। उनका शपथ ग्रहण रविवार दोपहर तक हो जाएगा।

ओली और देउबा के बीच हुई डील के मुताबिक दोनों अगले चुनाव तक बारी-बारी पीएम पद पर बने रहेंगे। सरकार चलाने के लिए दोनों के बीच 7 पॉइंट्स का एग्रीमेंट बना है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें एक पॉइंट संविधान में बदलावों को लेकर भी है।

जानिए कल क्या-क्या हुआ?
नेपाल में प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, वह संसद में विश्वासमत हासिल करने में नाकाम रहे। वे सिर्फ 1 साल 6 महीने ही प्रधानमंत्री रह पाए।

फ्लोर टेस्ट में उन्हें 275 में से सिर्फ 63 सांसदों का साथ मिला। नेपाल की नेशनल असेंबली के 194 सांसदों ने उनके खिलाफ वोट किया। उन्हें सरकार बचाने के लिए 138 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी।

दरअसल, इस महीने की शुरुआत में चीन समर्थक केपी शर्मा ओली की पार्टी CPN-UML ने प्रधानमंत्री प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल से गठबंधन तोड़ लिया था। इसके बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई थी। नेपाल के संविधान के आर्टिकल 100 (2) के तहत उन्हें एक महीने में बहुमत साबित करना था। वे ऐसा नहीं कर पाए।

कौन हैं राम को नेपाल का बताने वाले केपी शर्मा ओली
1952 में पूर्वी नेपाल में जन्मे ओली ने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की। चार साल की उम्र में उनकी मां की स्मॉलपॉक्स बीमारी से मौत हो गई। उनकी परवरिश उनकी दादी राम्या ने की।
ओली का राजनीतिक जीवन 12 साल की उम्र में ही शुरू हो गया जब वे कम्युनिस्ट नेता रामनाथ दहल की मदद से नेपाल के झापा चले गए थे। यहां वे झापा विद्रोह में शामिल हुए।

इस विद्रोह की शुरूआत झापा में एक बड़े जमींदार की गला रेंत कर हत्या से शुरू हुई थी। इस विद्रोह को बड़े जमींदारों के खिलाफ चलाया गया था। दरअसल 1964 में नेपाल के राजा महेंद्र ने भूमि अधिकारों में बदलाव किए। इसका मकसद छोटे किसानों को वो जमीन दिलाना था जिस पर वे सालों से काम कर रहे थे। लेकिन उन पर बड़े जमींंदारों का मालिकाना हक था।

महेंद्र ने इसकी शुरुआत नेपाल के झापा जिले से की थी। इस दौरान छोटे किसान को जमीन दी गई। इसके बाद ही वहां जमींदारों और उनके खेतों में काम करने वाले मजदूरों के बीच विद्रोह शुरू हो गया। इसी बीच 22 साल के केपी ओली पर एक किसान धर्म प्रसाद ढकाल की हत्या के आरोप लगे और वे जेल चले गए।

इस समय तक, ओली मार्क्स और लेनिन के विचारों से प्रभावित हो चुके थे। 1966 तक, वे नेपाल की कम्युनिस्ट पॉलिटिक्स में प्रवेश कर चुके थे। 1970 में, ओली 18 साल की उम्र में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

उन्होंने 14 साल जेल में बिताए। हालांकि, वे बहुत कम अपने उस समय की चर्चा करते हैं जब वे जेल में थे। हालांकि उनके करीबी लोगों का कहना है कि जेल ने उन पर गहरी छाप छोड़ी। ओली को शाही क्षमा मिलने के बाद 1980 के दशक में रिहा कर दिया गया था।

1990 के दशक में, ओली ने लोकतांत्रिक आंदोलन में अपने प्रयासों के लिए लोकप्रियता हासिल की, जिसने पंचायत शासन को खत्म कर दिया। अगले कुछ सालों में, वे नेपाली की राजनीति का बड़ा चेहरा और कम्युनिस्ट पार्टी में एक महत्वपूर्ण नेता बन गए।

2015 में, वे 597 में से 338 वोट जीतकर प्रधानमंत्री चुने गए। हालांकि, जुलाई 2016 में, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी-केंद्र) द्वारा अपना समर्थन वापस लेने के बाद ओली को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और वे संसद में अविश्वास प्रस्ताव हार गए।

नेपाल में 2015 में नया संविधान लागू हुआ, इसके खिलाफ वहां के मधेशी सड़कों पर उतर आए। केपी ओली शर्मा ने इस विरोध के पीछे भारत का हाथ बताया। 2018 में वे फिर प्रचंड के साथ सत्ता में आए।

तीन साल पहले 2020 की बात है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने एक बयान देकर पूरे नेपाल और भारत को हैरान कर दिया। ओली ने अपने निवास पर भानु जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, 'भगवान राम भारतीय नहीं, नेपाली थे। असली अयोध्या भारत में नहीं, नेपाल के बीरगंज में है।' उन्होंने भारत पर सांस्कृतिक दमन का आरोप भी लगाया।

ओली के प्रधानमंत्री बनने से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और नेपाल के रिश्तों पर थोड़ा असर पर सकता है। केपी ओली सरकार में ही नेपाल ने अपना एक नक्शा जारी किया था जिसपर विवाद खड़ा हो गया था।

नेपाल ने मई 2020 में अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाके को नेपाल की सीमा में दिखाया गया था। भारत ने इस पर आपत्ति जाहिर की थी और इस नक्शे को मानने से इनकार कर दिया था।

इस बार सरकार में नेपाली कांग्रेस भी है। इस पार्टी का संबंध भारत से अच्छा है। नेपाली कांग्रेस डिप्लोमेसी के जरिए समस्या का समाधान ढूंढने पर जोर देती है। ऐसे में नई सरकार भारत के साथ रिश्ते में अधिक बदलाव कर पाएगी इसकी संभावना कम है।



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