भोपाल । प्रदेश की संस्कारधानी जलबपुर में श्वानों के काटने पर भी समय पर रैबीज इंजेक्शन नहीं लगाया तो पांच साल में 87 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा। लोगों यह लापरवाही अपनी जान देकर चुकानी पडी। श्वानों के काटने से होने वाली लाइलाज बीमारी हाइड्रोफोबिया से पांच साल में 87 लोग बेमौत मारे गए। ये आंकड़े अकेले जिला अस्पताल विक्टोरिया के हैं जहां हाइड्रोफोबिया के मरीजों को उपचार के लिए भर्ती कराया गया था। स्वास्थ्य कर्मचारियों का कहना है कि हाइड्रोफोबिया व रैबीज के मरीजों की हालत देखकर वे कांप उठते हैं। हवा, पानी व प्रकाश से डरने वाले उक्त मरीजों हावभाव श्वान की तरह हो गए थे। ज्यादातर मरीजों की दो से पांच दिन के भीतर मौत हो गई थी। भूख व प्यास से तड़पते हुए कई मरीजों को उन्होंने आंखों के सामने जान गंवाते हुए देखा। इधर, शहर में आवारा श्वानों का आंतक बढ़ता जा रहा है।
शहर की मुख्य सड़कों से लेकर गली कूचों तक श्वानों का जमावड़ा रहता है। श्वानों के हमले के कारण लोग आए दिन घायल हो रहे हैं। स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बताया कि श्वानों के काटने से घायल अधिकांश मरीज झाड़फूंक का सहारा लेते हैं। ज्यादातर मरीज ग्रामीण क्षेत्रों के रहते हैं। मरीजों के स्वजन से जब बातचीत की जाती है तो वे जवाब देते हैं कि गांव या क्षेत्र के तमाम लोग श्वानों के काटने के बाद झाड़फूंक से ठीक हो चुके थे, इसलिए उपचार न करवाते हुए उन्होंने झाड़फूंक का सहारा लिया था। विक्टोरिया अस्पताल के भेषज विशेषज्ञ डा. संदीप भगत का कहना है कि हाइड्रोफोबिया का उपचार संभव नहीं है।
इसलिए श्वानों के काटने के बाद बिना देर किए चिकित्सीय परामर्श लेते हुए एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाना चाहिए। चलती गाड़ी में श्वान ने काटा: न्यू कंचनपुर निवासी ब्रजेश सिंह (40) बुधवार को विक्टोरिया अस्पताल में उपचार कराने पहुंचे थे। मंगलवार दोपहर वे मोटरसाइकिल से घर लौट रहे थे तभी रास्ते में श्वान ने उन पर हमला कर दिया था। श्वान से बचने की उनकी तमाम कोशिश नाकाम रही। श्वान के नुकीले दांत उनके पैर में जा घुसे। घर पहुंचकर उन्होंने स्वयं मलहम पट्टी कर रक्तस्त्राव रोका। जिसके बाद बुधवार को विक्टोरिया अस्पताल पहुंचे। चिकित्सकों ने उन्हें एंटी रैबीज इंजेक्शन के पांच डोज लगाने की सलाह दी।
इंजेक्शन का पहला डोज उन्हें लगाया गया। श्वानों के आतंक के कारण लोगों का राह चलना दूभर हो रहा है। रांझी निवासी रतन कुमार ने बताया कि विगत माह वे एक विवाह समारोह में शामिल होने दमोहनाका गए थे। जहां से घर लौटते समय सतपुला के पास आवारा श्वान उन पर झपट पड़े। उन्होंने मोटरसाइकिल की गति बढ़ा दी। कुछ दूर जाकर मोटरसाइकिल अनियंत्रित हो गई और वे सड़क पर गिर पड़े। चलती गाड़ी से गिरने के कारण उनके शरीर में जगह-जगह चोटें आईं और दाएं पैर की हड्डी टूट गई।
पैर में प्लास्टर लगाया गया, जिसके चलते वे कई दिनों तक बिस्तर पर पड़े रहे। जबलपुर के विक्टोरिया अस्पताल के सिविल सर्जन डा. आरके चौधरी ने बताया कि संक्रमित जानवरों की लार ग्रंथि में रैबीज का वायरस रहता है। ये जानवर जब किसी व्यक्ति को काटते हैं तो घाव के रास्ते वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है। जो धीरे-धीरे मस्तिष्क तक जा पहुंचता है। रैबीज होने पर ह्दयघात व रेस्पिरेटरी फेल्योर मौत का कारण बनती है। रैबीज की चपेट में आए मरीज को सिरदर्द, मतली, मांस पेशियों में अकड़न, ज्यादा लार बनना, गले की मांस पेशियों का लकवाग्रस्त होना, पानी से डरना, मानसिक स्थिति का बिगड़ना जैसे लक्षण शामिल हैं।कुछ समय बाद वायरस नसों के माध्यम से लार ग्रंथियों में फैलता है। संक्रमण के चार से छह सप्ताह के बीच बीमारी फैलने की आशंका रहती है। परंतु 10 दिन से आठ माह के भीतर कभी भी रैबीज बीमारी हो सकती है।