इस बार की स्ट्रगल स्टोरी कहानी है टीवी एक्ट्रेस रतन राजपूत की। रतन को संतोषी मां और अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो जैसे टीवी शोज के लिए जाना जाता है। 2018 में कैंसर की वजह से रतन के पिता का निधन हुआ था जिसके बाद वो डिप्रेशन में चली गई थीं। इसके बाद वो ऑटोइम्यून डिसऑर्डर से भी जूझीं, जिसका असर उनकी आंखों की रोशनी पर हुआ।
मुंबई के गोरेगांव वेस्ट स्थित घर में बैठकर रतन अपनी यह कहानी हमें सुना रही हैं। रतन ने बताया कि उन्होंने कभी एक्ट्रेस बनने का ख्वाब नहीं देखा था। सब होता चल गया, लेकिन इस इंडस्ट्री से जुड़ने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ने के बारे में नहीं सोचा। जो भी संघर्ष इस सफर में आए, उसका उन्होंने डट कर सामना किया।
पढ़िए रतन राजपूत के संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी….
एक्ट्रेस बनने का ख्वाब कब देखा?
पटना में जन्मीं रतन ने कभी एक्ट्रेस बनने का ख्वाब नहीं देखा था। इस सफर के बारे में उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी एक्टर बनने का ख्वाब नहीं देखा था। हां, शीशे के सामने एक्ट करना और खुद को निहारना बहुत पसंद था। जब मैं पटना से दिल्ली गई, तब नहीं पता था कि मुझे करना क्या है? यहां मैं खुद को ढूंढ़ने आई थी।
मैंने दिल्ली में डांस के लिए श्रीराम भारतीय कला सेंटर में एडमिशन लिया था। NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) में एडमिशन लेने के लिए मेरी औकात ही नहीं थी। पता नहीं था कि एडमिशन के लिए ड्रामा का बैकग्राउंड और 10 अलग-अलग सर्टिफिकेट का होना जरूरी है।
फिर मैंने थिएटर देखना शुरू किया। पहला ड्रामा मैंने कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा का देखा, जो उस वक्त एक्टिंग किया करते थे। उसके बाद ड्रामा देखने का सिलसिला बढ़ता गया। मुझे अपना रास्ता मिल गया। मैंने तय कर लिया कि मैं एक्टिंग में ही अपना करियर बनाऊंगी और वहीं से एक्टिंग का दौर शुरू हुआ।’
पहला ब्रेक कब मिला?
रतन ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘मुझे पहली बार दूरदर्शन के शो 'How's That' में काम मिला था। मैंने इस शो में लीड रोल की बहन का किरदार निभाया था। हालांकि, इस शो को करते हुए मैं बहुत डरी हुई थी। मेरे ज्यादा शॉट्स भी नहीं थे, लेकिन उस वक्त इंडस्ट्री का कुछ भी नहीं पता था।
इस शो में काम करने की खबर घर तक चली गई थी। पहले एपिसोड को पूरे परिवार ने देखा, लेकिन मैं कहीं दिखी ही नहीं। अब मैं लीड तो हूं नहीं कि पहले एपिसोड में नजर आ जाऊंगी। घर से फोन आया कि हमने तो सबको बता दिया था, लेकिन तुम कहीं दिखी ही नहीं। तब उन्हें समझाया कि मैं तीसरे एपिसोड में नजर आऊंगी।
फिर उन लोगों ने तीसरे एपिसोड तक इंतजार किया जिसमें मैं केवल एक पासिंग शॉट में दिखी। कुछ सेकेंड के लिए ही सही, लेकिन पापा ने मुझे स्क्रीन पर देखा तो बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा- रसो, तुम बहुत अच्छी लग रही थी। उस शो के बाद 'राधा की बेटियां' में लीड रोल मिल गया। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।’
आपने कुछ समय के लिए करियर पर ब्रेक क्यों लगाया था?
जवाब में रतन ने कहा, ‘कई प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स को लगता है कि मैंने यह इंडस्ट्री छोड़ दी है। वहीं, कुछ सोचते हैं कि मैंने जानबूझकर यह ब्रेक लिया है। हालांकि, इसमें कोई सच्चाई नहीं है। किस्मत का खेल था कि ना चाहते हुए ब्रेक लग गया। मैं तो काम के जरिए आगे बढ़ते ही रहना चाहती थी। 5 जनवरी 2018 को पापा का निधन हुआ था।
दरअसल, पापा को कैंसर था। डॉक्टर ने हमें सिर्फ एक महीने का टाइम दिया था। मेरे लिए वो बहुत शॉकिंग था। बीमारी का पता चलते ही मैं उन्हें पटना से मुंबई ले आई। नेचुरोपैथी ट्रीटमेंट की मदद से 3 महीने तक उनकी देखभाल की। फिर वो चल बसे। मैं समझ ही नहीं पाई कि इतनी जल्दी यह सब कैसे हो गया। मैंने पूरी जिंदगी करियर बनाने में लगा दी थी। पापा के साथ ज्यादा वक्त ही नहीं बिता पाई। बस आखिरी के वो तीन महीने मैंने उनके साथ सेलिब्रेट किया था।
पापा के निधन के बाद मेरी पूरी जिंदगी बदल गई। उनके जाने से मेरी तबीयत बहुत खराब हो गई। मैं डिप्रेशन का शिकार हो गई। मन की बीमारी कब तन को लग गई, पता ही नहीं चला। डिप्रेशन के साथ-साथ मैं आटो इम्यून डिसऑर्डर का भी शिकार हो गई। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके तले पूरी जिंदगी तो बिता नहीं सकती थी। ऐसे में मैंने खुद पर काम करना शुरू किया, काम से ब्रेक लिया और खूब घूमा। इसकी बदौलत मुझे बहुत फायदा मिला।’
कब पता चला कि आपको ऑटोइम्यून डिसऑर्डर बीमारी है?
रतन कहती हैं, ‘मुझे पहली ठोकर तो तभी लगी थी जब पता चला कि पापा को कैंसर है। इस बात का बहुत ज्यादा स्ट्रेस ले लिया और बीमार रहने लगी। धीरे-धीरे मेरी आंखें लाल होना शुरू हो गईं। रोशनी भी कम होने लगी।
जब डॉक्टर्स को दिखाया तो शुरुआत में वो भी इसकी वजह नहीं पकड़ पाए। काफी समय बाद पता चला कि मुझे ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, जिसका केवल स्टेरॉयड्स से इलाज होता है। मेरी कई महीनों तक काउंसिलिंग चली। मैंने तय कर लिया था कि मैं स्टेरॉयड्स पर नहीं जाऊंगी इसीलिए मैंने आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक ट्रीटमेंट शुरू किया। नतीजतन आज उस बीमारी से मुक्त हूं।
इसी दौरान मैं एक इंडियन साइकोलॉजी के टीचर से मिली। उन्होंने मेरा डिप्रेशन ट्रीट किया। पहले मैं उनकी पेशेंट थी, फिर स्टूडेंट बन गई। अब मैं उन्हें 5 साल से असिस्ट कर रही हूं। एक्टिंग के अलावा अब ज्यादातर इंट्रेस्ट साइकोलॉजी में है।’
क्या कभी शो के किरदार ने आपके रियल लाइफ किरदार को ओवरशैडो किया है?
इस बारे में रतन ने कहा, 'मैंने एक्टिंग की पढ़ाई नहीं की थी। इस कारण मुझे नहीं पता था कि शूटिंग के बाद रील से रियल किरदार में कैसे स्विच करते हैं। जब भी किसी किरदार में ढली तो उसी के जैसे होकर रह गई। उससे खुद को बाहर नहीं कर पाई।
हम जब टीवी शो करते थे तब 12 घंटे की शिफ्ट नहीं होती थी। बल्कि मैंने 18 से लेकर 42 घंटों तक की शिफ्ट की है। 18 घंटे तक एक ही किरदार निभाने के बाद वो किरदार मेरे अंदर रह जाता था।
एक वक्त ऐसा आया जब मैं 'अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो' की शूटिंग खत्म होने के बाद रोती थी। नींद में अपने डायरेक्टर से वक्त मांगती थी। मेरी बहन ने जब ये देखा तो वो भी घबरा गई। वो मुझे डॉक्टर के पास ले गई। तब डॉक्टर ने बताया कि सोते वक्त भी मेरे दिमाग में शो का किरदार एक्टिव रहता है। डॉक्टर की सलाह पर मैंने नींद की गोलियां लेनी शुरू कर दी थीं। नींद की गोली लेकर सोती थी, ताकि मेरे दिमाग को आराम मिल सके।
'संतोषी मां' की शूटिंग के दौरान मैंने अपनी यही गलती फिर से दोहराई थी। बैक-टु-बैक शूट कर रही थी। जिसकी वजह से मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ गया। ऐसा बिल्कुल नहीं कि मुझे टीवी नहीं करना। टीवी हमेशा मेरा पहला प्यार रहेगा, लेकिन इस बार जब लौटूंगी तो अपनी पुरानी गलती नहीं दोहराऊंगी। किरदार को कैसे स्विच ऑन या स्विच ऑफ करना है, यह सीख चुकी हूं।'
बुरे वक्त में किस दोस्त ने सबसे ज्यादा सपोर्ट किया?
रतन कहती हैं, 'हमारी इंडस्ट्री बहुत प्रैक्टिकल है। यही वजह है कि मैंने अपनी बीमारी के बारे में ज्यादा बात नहीं की। गलतफहमी के कारण कई रिश्तों में दूरी आ जाती है। वैसे सच्चाई यह भी है कि किसी वक्त मेरे कई दोस्त हुआ करते थे, लेकिन जब बुरा वक्त आया तो कइयों ने अपने कदम पीछे ले लिए।
इस दौरान मुझे सिर्फ सुप्रिया पिलगांवकर ने बहुत सपोर्ट किया। मैंने उनके साथ अपना पहला शो 'राधा की बेटियां' किया था। जिस तरह उन्होंने मुझे समझा, मैं हमेशा उनकी आभारी रहूंगी। आज भी हम मिलकर खाना खाते हैं, एक दूसरे की बातें साझा करते हैं। उनके पति सचिन पिलगांवकर सर, बेटी श्रिया भी बहुत करीब हैं। मुंबई में यही मेरी फैमिली जैसे हैं।'
आपने स्वयंवर किया है, उसके बारे में बताइए?
रतन ने बताया, 'मेरे स्वयंवर की यादें बहुत अच्छी हैं। हालांकि उस वक्त मैं थोड़ी नासमझ थी। कुछ साल बाद यदि वो शो करती तो शायद कुछ अच्छा होता। सच कहूं तो उस वक्त मेरी जिंदगी किसी फेयरी टेल से कम नहीं थी। हालांकि, मेरी सगाई बहुत अच्छे लड़के से टूटी थी। अभिनव अच्छा लड़का था। मैं थोड़ी नासमझ थी।
लोग कमेंट करते हैं कि आप बॉयफ्रेंड होने के बावजूद छुपा रही हैं। कइयों को लगता है कि मैं अपनी शादी छुपा रही हूं। उनका शक इस बात पर होता है कि मैं किसके साथ घूमती हूं? कौन मेरे वीडियो शूट करता है? मैं भला क्यों ऐसा करूंगी? मैंने इन लोगों को हर तरह से समझाने की कोशिश कि शूटिंग के लिए मेरी एक टीम है, लेकिन कोई समझने को तैयार ही नहीं। मेरी शादी नहीं हुई है। मैं सिंगल हूं और काफी खुश भी।
पापा के जाने के बाद बहुत कुछ बदल गया है। परिवार में सभी चाहते हैं कि मैं शादी करके अपना घर बसा लूं। उन्हें लगता है कि शादी के बाद ही मेरी जिंदगी पूरी होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। मैं बिना पार्टनर के भी खुश हूं।'