फिल्म नगरी में फिल्मों की ताकत को आंकने और इनके असर को पैना करने पर देश दुनिया के सिने बुद्धिजीवी यहां राजभवन में जुटे। सिनेमा की ताकत कैसे समाज की सोच बदल देती है, इसका उदाहरण देने के लिए शाहरुख खान की फिल्म ‘चकदे इंडिया’ और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘छपाक’ के उदाहरण भी दिए गए। इस मौके पर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने हिंदी सिनेमा की इस बात के लिए खूब बड़ाई की कि इसने हिंदी को दुनिया भर में प्रचारित और प्रसारित करने का भगीरथ प्रयास किया है।
राजवन में आयोजित ‘इंडियन सिनेमा एंड सॉफ्ट पावर’ नामक कार्यक्रम में इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि हमारा देश शुरू से ही सॉफ्ट पावर रहा है लेकिन पिछले तीन दशकों से इसकी ज्यादा चर्चा हो रही है। फिल्म जगत के कारण हमारी पहचान विश्व स्तर पर हुई है। उन्होंने कहा कि 1976 में बनी फिल्म 'मंथन' ने भारत में सहकारिता का अच्छा प्रयोग दिखाया।
घर की चारदीवारी के अंदर परस्पर संबंधों का निर्माण फिल्म 'अर्थ' में दिखा। इसी तरह 'इंग्लिश विंग्लिश’, 'चक दे इंडिया', और 'छपाक' जैसी फिल्मों में महिला सशक्तिकरण देखने को मिला। 'न्यूटन' जैसी फिल्म ने भारत की चुनाव प्रणाली को दिखाया। इन सारी फिल्मों से समाज में कहीं न कहीं एक अच्छा संदेश गया ही है।