फिल्म इंडस्ट्री में शत्रुघ्न सिन्हा ने शुरुआत विलेन के रूप में की थी। लेकिन फिर वो बतौर हीरो के रूप में पहचाने जाने लगे। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान दिग्गज एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी जिंदगी के पुराने संघर्षों के बारे में बात की।
एक्टर्स को शत्रुघ्न सिन्हा से इनसिक्योरिटी हो गई थी
शत्रुघ्न सिन्हा 80-90 के दशक के बेहतरीन एक्टर्स में से एक थे। फिल्मों में उनके बोले गए डायलॉग तकियाकलाम बन चुके हैं। अपनी जिंदगी के पुराने किस्सों को शेयर करते हुए उन्होंने कहा- एक समय पर कई एक्टर्स को मुझसे दिक्कत होने लगी थी। उन एक्टर्स को ऐसा लगने लगा था कि मेरा किरदार और डायलॉग, दोनों हीरो से ज्यादा अच्छे हैं। इसलिए वे मेरे साथ काम करने से इनकार कर दिया करते थे।
यहां तक कि एक्टर्स को मुझसे इसलिए भी दिक्कत होने लगी क्योंकि उन्हें लगता था कि मुझे ज्यादा फुटेज दी जाती है। उन्हें लगता था फिल्म में विलेन होकर भी मैं ज्यादा पॉपुलर हूं।
लोगों ने मेरे बारे में अफवाहें उड़ाईं
मेरे बारे में अफवाहें उड़ाई गई थीं कि मैं सेट पर लेट आता हूं। इस वजह से मुझे काम मिलना ही बंद हो गया था। मेरे हाथ से विलेन के रोल्स निकल गए थे। फिर मुझे हीरो के रोल मिलने लगा। तब जाकर मेरे करियर की बतौर हीरो शुरुआत हुई
शत्रुघ्न सिन्हा ने धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन के स्ट्रगल के बारे में भी बात की
शत्रुघ्न सिन्हा ने इंटरव्यू के दौरान अपने स्ट्रगल के दिनों को भी याद किया। उन्होंने कहा- मेरा संघर्ष धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन से काफी अलग रहा। जितना मैंने स्ट्रगल किया, उतना शायद ही धर्मेंद्र साहब या अमिताभ बच्चन ने किया होगा। धर्मेंद्र तो अपनी रील के डिब्बे उठाकर अपने साथ ले जाया करते थे। अमिताभ बच्चन के बारे में सुना है कि वे बेंच पर भी सोए हैं। इस तरह का स्ट्रगल मैंने कभी नहीं किया। मैं दो-तीन दिन भूखा जरूर रहा हूं। मैंने अपने करियर को सामने से खोता हुआ देखा है। मैंने ठोकरें खाई हैं और फिर करियर को री-स्टार्ट भी किया है।
शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर मौजूद हैं
शत्रुघ्न सिन्हा ने साल 1970 में देव आनंद की फिल्म 'प्रेम पुजारी' से बतौर एक्टर बॉलीवुड में कदम रखा था। हालांकि यह फिल्म डिले हो गई, जिसके कारण 1969 में आई 'साजन' शत्रुघ्न सिन्हा की डेब्यू फिल्म मानी जाती है। इसके बाद उन्होंने 'मेरे अपने' (1971), 'सबक' (1973), 'दोस्त' (1974), 'कालीचरण' (1975), 'विश्वनाथ' (1978), 'दोस्ताना' (1980), 'क्रान्ति' (1981), 'नरम गरम' (1981), 'कैदी' (1984), 'ज्वाला' (19869), 'खून भरी मांग' (1988), 'आन' (2004) और 'रक्त चरित्र' (2010) जैसी कई फिल्मों में काम किया है।
एक ओर जहां शत्रुघ्न सिन्हा को उनकी अदाकारी के लिए जाना जाता है, वहीं बुलंद आवाज के कारण उनके कई डायलॉग्स भी खूब पॉपुलर हुए। 'खामोश', 'जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं...जिस राख से बारूद बने, उसे विश्वनाथ कहते हैं' जैसे डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर मौजूद हैं।