रायपुर। छत्तीसगढ़ कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ की प्रमुख मांग को स्वीकारते हुए राज्य सरकार ने तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों के लिए न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम लागू कर दिया है। इस फैसले के तहत अब इन राजस्व अधिकारियों के खिलाफ बिना विभागीय अनुमति के कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकेगी। इस मांग को लंबे समय से उठाया जा रहा था, जिसके बाद राजस्व सचिव अविनाश चंपावत ने आदेश जारी कर सभी कमिश्नरों और कलेक्टरों को इसे लागू करने के निर्देश दिए हैं।
न्यायालयीन प्रकरणों में सामने आ रही थी समस्याएं
राजस्व अधिकारियों के खिलाफ न्यायालयीन प्रकरणों में असंतुष्ट पक्षकार सीधे एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास कर रहे थे, जिससे तहसीलदार और नायब तहसीलदारों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। कई बार देखा गया कि असंतुष्ट पक्षकार न्यायालय में अपील करने के बजाय पुलिस में सीधे शिकायत दर्ज करा रहे थे, जिससे राजस्व अधिकारियों को नोटिस भेजा जाता था।
न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम का विस्तार
न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के तहत न्यायिक कार्यवाही के दौरान किए गए कार्यों के लिए न्यायाधीशों को संरक्षण प्रदान किया गया है। यह अधिनियम न्यायालयीन अधिकारियों को बिना किसी भय के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की स्वतंत्रता देता है। इसी सिद्धांत के आधार पर राजस्व न्यायालयों के तहसीलदार और नायब तहसीलदारों को भी इस अधिनियम का संरक्षण प्रदान किया गया है।
1985 के अधिनियम की धारा 2 (9) के अनुसार, उन सभी व्यक्तियों को संरक्षण प्राप्त है जिन्हें न्यायिक कार्यवाही में निर्णायक आदेश पारित करने का अधिकार है। धारा तीन (एक) के तहत, किसी न्यायिक अधिकारी के कार्यों के लिए सिविल या दांडिक वाद नहीं चलाया जा सकता। इसी को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया कि तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों पर कोई भी एफआईआर बिना विभागीय अनुमति के दर्ज न हो सके।
राजस्व अधिकारियों को मिलेगा न्यायिक सुरक्षा का लाभ
राजस्व विभाग के इस आदेश के बाद अब तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को न्यायिक सुरक्षा का लाभ मिलेगा और वे बिना किसी दबाव के अपने न्यायिक कार्यों का निष्पादन कर सकेंगे।