आखिर किसे नहीं पता कि इस देश में सड़क से लेकर अदालत तक, हर जगह कानून की धज्जियां उड़ती हैं और न्याय की देवी यूं ही स्टैच्यू बनी रहती हैं। कोई हरकत नहीं, बिल्कुल संवेदनहीन। सड़कों पर कानून तमाशबीन बनकर खड़ा है, थाने में वह उगाही और उत्पीड़न का अस्त्र बना है तो अदालतों में दलीलों और तारीखों की बेइंतहा ऊबाऊ प्रक्रिया का ऐसा ऑक्टोपस है ये, जिसकी जकड़न में गए तो खैर नहीं।
करीब 80 हजार मुकदमों की ढेर सुप्रीम कोर्ट में ही लगी है। फिर भी अब अंधा कानून कहने की हिमाकत नहीं कीजिएगा महोदय, न्याय की देवी अब सबकुछ देख जो सकती हैं। अब तक अंधे कानून की त्रासदी न्याय की देवी देख नहीं पाती थीं, अब वो खुली आंखों से सब देखेंगी। कम-से-कम उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि देख पाने के कारण न्याय की देवी की मूर्ति में भी संवेदना जग जाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने वाकई अच्छी पहल की है।
करीब 80 हजार मुकदमों की ढेर सुप्रीम कोर्ट में ही लगी है। फिर भी अब अंधा कानून कहने की हिमाकत नहीं कीजिएगा महोदय, न्याय की देवी अब सबकुछ देख जो सकती हैं। अब तक अंधे कानून की त्रासदी न्याय की देवी देख नहीं पाती थीं, अब वो खुली आंखों से सब देखेंगी। कम-से-कम उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि देख पाने के कारण न्याय की देवी की मूर्ति में भी संवेदना जग जाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने वाकई अच्छी पहल की है।