संसद की मंशा थी कि रेप के दायरे से पति को बाहर रखा जाए
चीफ जस्टिस ने याची के वकील से सवाल किया कि अगर पति महिला के साथ जबरन संबंध बनाता है तो वह अपवाद में आएगा यही आपका केस है। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप कह रहे हैं कि यह समानता के अधिकार और जेंडर फ्रीडम का उल्लंघन करता है। लेकिन संसद चाहता है कि पति अगर पत्नी से संबंध बनाता है तो वह रेप नहीं होगा। अगर हम इस अपवाद को खत्म कर देते हैं हैं तो हमें नया अपराध की तरह इसे श्रेणी में डालना होगा। नंदी ने कहा कि तीन तरह के केस होते हैं। एक रेपिस्ट जो विक्टिम से संबंधित न हो, दूसरा जो बिना सहमति के पति संबंध बनाता है और तीसरी श्रेणी वह है जिसमें पति सेपेरेशन में हो तब उसने ऐसा एक्ट किया है। नंदी ने दलील दी कि लिव इन में जबरन संबंध रेप है।
पति अगर कुछ और ऑब्जेक्ट भी डालता है तो अपराध नहीं
चीफ जस्टिस कहा कि आपकी दलील के तहत अगर पति कोई भी ऑब्जेक्ट डालता है तो वह रेप नहीं है जबकि कोई और महिला के प्राइवेट पार्ट में कोई ऑब्जेक्ट डालता है तो रेप है। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अगर पति डिमांड करता है और पत्नी मना करती है और पति धमकाता है और आगे जबर्दस्ती करता है तो फिर आईपीसी की धारा-323, 324 और 325 आदि बनता है। लेकिन रेप नहीं बनता है।
इस पर याची की वकील करुणा नंदी ने कहा, 'यह महिला ( मेरा) का अधिकार है कि ना कहूं यह मेरा अधिकार है कि मैं हां कहूं।' इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि ना कहने की स्थिति में पति नहीं को मानकर तलाक ले? इस पर करुणा नंदी ने कहा कि महिला के पति को अगले दिन का इंतजार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी।