रतन टाटा एक साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वो मुंबई के कोलाबा इलाके में एक साधारण घर 'हालेकाई' में रहते थे, जिसका मतलब है 'समुद्र के किनारे घर'। उनके घर का नाम उनके व्यक्तित्व को दर्शाता है - सरल और प्रकृति के करीब। वह अक्सर अपने पालतू जानवरों के साथ कोलाबा के यूनाइटेड सर्विसेज क्लब में घूमते हुए या अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट, द थाई पवेलियन में खाना खाते हुए दिख जाते थे। वह आम लोगों की तरह कतार में लगकर एयरपोर्ट पर अपना सामान खुद उठाते थे। रतन टाटा की सादगी ही उन्हें दूसरे उद्योगपतियों से अलग बनाती थी।26/11 हमले के बाद संभाला था नेतृत्व
26/11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद रतन टाटा ने जिस तरह नेतृत्व संभाला, उससे उनकी क्षमता और करुणा का पता चलता है। उन्होंने सबसे ज्यादा प्रभावित हुए ताज महल पैलेस होटल में शांति और व्यवस्था बहाल करने के लिए खुद आगे आकर काम किया। इस मुश्किल घड़ी में उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और हर कर्मचारी को सांत्वना दी। हमले में जान गंवाने वालों के परिवारों की मदद करने का उनका संकल्प उनके आखिरी सांस तक बना रहा।
रतन टाटा ने सादगी और दान का असली अर्थ समझाया
एक ऐसे समय में जब अरबपतियों की असाधारण जीवनशैली पर लोग सवाल उठा रहे हैं, रतन टाटा ने सादगी और दान का असली अर्थ समझाया। उन्होंने दिखाया कि दौलत का असली मतलब क्या है। रतन टाटा ने कॉर्पोरेट वर्ग के असली मायने को परिभाषित किया।
एक नेक दिल इंसान
रतन टाटा सिर्फ एक उद्योगपति ही नहीं थे बल्कि एक नेक दिल इंसान भी थे। इसकी मिसाल है उनकी शांतनु नायडू के साथ दोस्ती। 22 साल के शांतनु पुणे के एक साधारण छात्र थे। उनके पास एक ऐसा आइडिया आया जो सड़कों पर गाड़ियों से टकराने वाले आवारा कुत्तों की जान बचा सकता था। उन्हें क्या पता था कि उनकी यह छोटी सी पहल उनकी जिंदगी बदल देगी। रतन टाटा ने शांतनु के सपने को पूरा करने में उनका साथ दिया।
शांतनु के साथ गहरा दोस्ती का रिश्ता
रतन टाटा का शांतनु के साथ गहरा दोस्ती का रिश्ता था। रतन टाटा के अंतिम संस्कार में सबसे ज्यादा चर्चा शांतनु नायडू की थी, जो हमेशा रतन टाटा के साथ साये की तरह रहे। रतन टाटा जानवरों से बेहद प्यार करते थे। मुंबई में छोटे जानवरों के लिए एक अत्याधुनिक अस्पताल उनकी आखिरी पहल थी। रतन टाटा का जाना भारत के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है। उन्होंने दो पीढ़ियों को बड़े सपने देखने और सही काम करने के लिए प्रेरित किया। अपनापन ही रतन टाटा को परिभाषित करता है।
मुंबई के सच्चे मायने में बेटे
रतन टाटा सच्चे मायने में मुंबई के बेटे थे। 'आमची मुंबई' ने रतन टाटा के व्यक्तित्व को निखारा। रतन टाटा को दुनिया एक महान उद्योगपति के रूप में याद रखेगी। जब भारत दुनिया के सामने अपनी पहचान बना रहा था, तब टाटा-बिड़ला जैसे नाम ही बड़े बिजनेस घराने से जुड़े होते थे।
बॉलीवुड फिल्मों में अक्सर यह डायलॉग सुनने को मिलता था, 'आप खुद को टाटा-बिड़ला समझते हो?' यह टाटा परिवार की विरासत को दर्शाता है जिसे रतन टाटा ने बखूबी निभाया। रतन टाटा ने कहा था, 'जिंदगी में उतार-चढ़ाव बहुत जरूरी होते हैं, क्योंकि ईसीजी में भी एक सीधी रेखा का मतलब है कि हम जिंदा नहीं हैं।' रतन टाटा एक सफल उद्योगपति होने के साथ-साथ एक नेक दिल इंसान भी थे। वो हमेशा शांतनु के 'प्रकाश स्तंभ' बने रहेंगे, और हमारे भी।