तब पाकिस्तान दौरे से लौटने के बाद सुषमा स्वराज ने अपनी यात्रा को लेकर संसद में बयान दिया था। उन्होंने बताया था कि कैसे उनका दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्माहट का आधार बन सकता है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री सरताज अजीज से सुषमा की मुलाकात के बाद 9 दिसंबर को इस्लामाबाद में जारी हुए जॉइंट स्टेटमेंट में कॉम्प्रिहेंसिव बाइलेटरल डायलॉग का ऐलान किया गया था।
सुषमा स्वराज का पाकिस्तान दौरा बेपटरी रिश्तों को पटरी पर लाने का एक बड़ा मौका हो सकता था। लेकिन जो अपनी हरकतों से बाज आ जाए वो पाकिस्तान कहां। एक महीने भी नहीं बीते कि पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकियों ने हमला कर दिया। रिश्तों के सामान्य होने की रही-सही उम्मीदें तब जमींदोज हो गईं जब सितंबर 2016 में उरी में आतंकी हमला हुआ। जवाब में भारत को सर्जिकल स्ट्राइक करना पड़ा। मोदी सरकार ने साफ कर दिया कि आतंक और बातचीत दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। पाकिस्तान को बातचीत के लिए, द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य होने के लिए आतंकवाद को औजार के रूप में इस्तेमाल करना छोड़ना ही होगा।
भारत का ये रुख अब भी वही है। 9 साल बाद भारत का कोई विदेश मंत्री पाकिस्तान गया लेकिन द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई। एस. जयशंकर ने दौरे से पहले ही साफ कर दिया था कि यात्रा बहुपक्षीय बातचीत के लिए है, द्विपक्षीय बातचीत के लिए नहीं। हालांकि, उनके इस दौरे ने संदेश जरूर दिया है कि भारत पड़ोसी देशों से संबंधों में स्थिरता चाहता है।
पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर रहे अजय बिसारिया ने हॉन्ग कॉन्ग के एक न्यूजपेपर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बातचीत में जयशंकर के पाकिस्तान दौरे को दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने का अहम मौका बताया था। उन्होंने कहा था, 'भारत ने एक मंत्री को भेजने का फैसला कर संदेश दिया है कि वह अपने पड़ोसी से संबंधों में स्थिरता चाहता है। दोनों देश संबंधों की शुरुआत अपने-अपने हाई कमिश्नर भेजकर कर सकते हैं। इसके अलावा ट्रेड भी शुरू हो सकता है।'
अब पाकिस्तान के ऊपर है कि वह भारत के संदेश को कितनी गंभीरता से लेता है। द्विपक्षीय संबंध का सामान्य होना आखिरकार उसी के हित में है। भारत को अगर वह द्विपक्षीय व्यापार के लिए मना लेता है तो उसकी डूबती अर्थव्यवस्था को एक सहारा मिल सकता है। तब सुषमा के दौरे पर पाकिस्तान ने सुनहरा मौका गंवा दिया था, अब 9 साल बाद उसे एक और मौका मिला है।
सुषमा स्वराज का पाकिस्तान दौरा बेपटरी रिश्तों को पटरी पर लाने का एक बड़ा मौका हो सकता था। लेकिन जो अपनी हरकतों से बाज आ जाए वो पाकिस्तान कहां। एक महीने भी नहीं बीते कि पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकियों ने हमला कर दिया। रिश्तों के सामान्य होने की रही-सही उम्मीदें तब जमींदोज हो गईं जब सितंबर 2016 में उरी में आतंकी हमला हुआ। जवाब में भारत को सर्जिकल स्ट्राइक करना पड़ा। मोदी सरकार ने साफ कर दिया कि आतंक और बातचीत दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। पाकिस्तान को बातचीत के लिए, द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य होने के लिए आतंकवाद को औजार के रूप में इस्तेमाल करना छोड़ना ही होगा।
भारत का ये रुख अब भी वही है। 9 साल बाद भारत का कोई विदेश मंत्री पाकिस्तान गया लेकिन द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई। एस. जयशंकर ने दौरे से पहले ही साफ कर दिया था कि यात्रा बहुपक्षीय बातचीत के लिए है, द्विपक्षीय बातचीत के लिए नहीं। हालांकि, उनके इस दौरे ने संदेश जरूर दिया है कि भारत पड़ोसी देशों से संबंधों में स्थिरता चाहता है।
पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर रहे अजय बिसारिया ने हॉन्ग कॉन्ग के एक न्यूजपेपर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बातचीत में जयशंकर के पाकिस्तान दौरे को दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने का अहम मौका बताया था। उन्होंने कहा था, 'भारत ने एक मंत्री को भेजने का फैसला कर संदेश दिया है कि वह अपने पड़ोसी से संबंधों में स्थिरता चाहता है। दोनों देश संबंधों की शुरुआत अपने-अपने हाई कमिश्नर भेजकर कर सकते हैं। इसके अलावा ट्रेड भी शुरू हो सकता है।'
अब पाकिस्तान के ऊपर है कि वह भारत के संदेश को कितनी गंभीरता से लेता है। द्विपक्षीय संबंध का सामान्य होना आखिरकार उसी के हित में है। भारत को अगर वह द्विपक्षीय व्यापार के लिए मना लेता है तो उसकी डूबती अर्थव्यवस्था को एक सहारा मिल सकता है। तब सुषमा के दौरे पर पाकिस्तान ने सुनहरा मौका गंवा दिया था, अब 9 साल बाद उसे एक और मौका मिला है।