कोरबा इस मानसून में हुई पर्याप्त बारिश के बाद धान के खेतों में अब भी मौजूद नमी का उपयोग करते हुए उतेरा फसलों की खेती को कोरबा जिले में भी बढ़ावा दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा कलेक्टर्स कॉन्फ्रेंस में भी इस संबंध में जरूरी कार्य योजना बनाकर किसानों को उतेरा फसलों के लिए प्रोत्साहित करने के लिए निर्देश सभी कलेक्टरों को दिए गए हैं। उतेरा फसलों की सुरक्षा के लिए मवेशियों को खुले में छोड़ देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए भी पूरे प्रदेश में संचालित रोका-छेका अभियान आगामी फागुन महीने (मार्च 2022) तक बढ़ा दिया गया है। कोरबा जिले में उतेरा फसलों के लिए कलेक्टर श्रीमती रानू साहू ने भी विस्तृत कार्य योजना तैयार करने के निर्देश कृषि विभाग के अधिकारियों को दिए हैं।
कृषि विभाग के उपसंचालक अनिल शुक्ला ने बताया कि कोरबा जिले में मुख्यमंत्री श्री बघेल की मंशानुसार 5 हजार 160 हेक्टेयर रकबे में उतेरा की फसलें ली जाएंगी। जिले में धान के खेतों में मौजूद नमी का उपयोग करते हुए किसानों को उतेरा के रूप में सरसों और अलसी जैसी तिलहन फसलों की खेती के लिए तैयार किया जा रहा है। उतेरा फसलों के लिए चयनित किसानों को सरसों और अलसी के बीज मिनीकिट भी निःशुल्क दिए जाएंगे। श्री शुक्ला ने बताया कि उतेरा फसलें लेने में बहुत कम खर्च आता है। अक्टूबर-नवंबर महीने में धान कटाई के समय जिन खेतों में पर्याप्त नमी होती है, उनमें दलहन-तिलहन के बीज छिड़का पद्धति से बो कर उतेरा की फसलें ली जा सकती हैं। उप संचालक ने बताया कि सभी गांवो में कृषि चौपाल लगाकर कृषि विभाग का मैदानी अमला उतेरा फसलों के लिए किसानों के चयन में लग गया है। उन्होंने बताया कि इस बार उतेरा फसलों को खुले-छुटे मवेशियों से बचाने के लिए रोका-छेका कार्यक्रम भी फागुन माह तक बढ़ा दिया गया है। इस दौरान पशुओं को गौठानों में रखने और सभी जरूरी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने संबंधी निर्देश भी जिला पंचायत द्वारा सभी जनपद पंचायतों तथा गौठान समितियों को जारी किए गए हैं। श्री शुक्ला ने बताया कि कोरबा विकास खण्ड में 602 हेक्टेयर में, करतला विकास खण्ड में एक हजार 302 हेक्टेयर में, कटघोरा विकास खण्ड में 371 हेक्टेयर में, पाली विकास खण्ड में एक हजार 422 हेक्टेयर में और पोड़ी-उपरोड़ा विकास खण्ड में एक हजार 463 हेक्टेयर में उतेरा फसले लिए जाने की कार्य योजना बनाई गई है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में धान के खेतों में मौजूद नमी का उपयोग करते हुए उतेरा फसलों के रूप में सरसों, अलसी की फसलों से किसान अपनी आय में अतिरिक्त वृद्धि कर सकेंगे।