डिंडोरी: हरियाली की चादर से ढकी पहाड़ियां, झीलों में बहता ठंडा पानी और हवा में बसी ताजगी... जी हां! हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश में मानसून की। वही मानसून, जिसमें कांची के जंगलों से लेकर पचमढ़ी की हरी-भरी वादियों तक, हर जगह एक नया जीवन फूटता है। छतरपुर के किले और महलों पर बूंदें जब चमकती हैं, तो यह न केवल उनके ऐतिहासिक महत्व को बढ़ा देती हैं बल्कि उन्हें एक मनमोहक रूप भी प्रदान करती हैं। बारिश के मौसम में यहां के जलप्रपात अपनी खूबसूरती से चकाचौंध कर देते हैं।कब आता है मानसून
मध्य प्रदेश में वर्षा ऋतु का आगमन मध्य जून से प्रारम्भ हो जाता है। जून माह में उत्तर-पश्चिमी भारत में न्यून वायुदाब केन्द्र बनने से महासागरों के ऊपर से बहने वाली हवाएं इस ओर चलने लगती हैं। यहां दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण अधिक वर्षा होती है। वर्षा, धूप की कमी तथा अधिक आर्द्रता होने के कारण तापमान गिरने लगता है, परन्तु जुलाई के पश्चात् औसत मासिक तापमान एक समान रहता है। पठारी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, क्योंकि ऐसे स्थलों की ऊंचाई अपेक्षाकृत अधिक होती है।
कब जाता है मानसून
अक्टूबर तक आते-आते वर्षा की मात्रा न्यूनतम हो जाती है, जिसके कारण तापमान पुनः बढ़ जाता है, इसलिए सितम्बर-अक्टूबर की गर्मी को द्वितीय ग्रीष्म ऋतु कहा जाता है। संपूर्ण राज्य की औसत वर्षा लगभग 112 सेमी है, जो इस आंकडे को पार कर गई है। अभी भी मौसम विभाग ने अगले 2 दिन के लिए अलर्ट जारी किया है।
इस बार कहां से ली एंट्री
21 जून 2024 को झमाझम बारिश के साथ प्रदेश में मानसून ने एंट्री ली। इस बार मानसून डिंडौरी के रास्ते मध्य प्रदेश में दाखिल हुआ। इसके बाद पांढुर्णा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडोरी और अनूपपुर जिलों में एंट्री ली। अब यह पूरे प्रदेश में पूरी तरह पैर फैला चुका है लेकिन क्या आप जानते हैं मानसून के सीजन में सबसे ज्यादा बारिश एमपी के किस जिले में होती है? आइए बताते हैं...
सबसे ज्यादा भीगते हैं ये जिले
राज्य के पूर्वी हिस्से में औसत वर्षा 150 सेमी से अधिक होती है। इस क्षेत्र में स्थित पंचमढ़ी, महादेव पर्वत, मण्डला, सीधी तथा बालाघाट में अधिक वर्षा होती है। सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र पचमढ़ी (199 सेमी) सतपुड़ा श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
औसत से अधिक वर्षा वाले जिले
इस क्षेत्र में बैतूल, छिन्दवाड़ा, सिवनी, होशंगाबाद, नरसिंहपुर इत्यादि जिले आते हैं। पूर्वी भाग में स्थित होने के कारण इन जिलों में अधिक आर्द्रता होने से अधिक वर्षा होती है। इन क्षेत्रों में लगभग 125 सेमी से 150 सेमी तक वर्षा होती है।
इन जिलों में होती है औसत बारिश
इस क्षेत्र में औसतन वर्षा 75 सेमी से 100 सेमी के बीच होती है। प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी जिले इस क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। मध्य उच्च पठार, बुन्देलखण्ड का पठार, रीवा-पन्ना पठार में औसत वर्षा होने का कारण वायुमण्डलीय आर्द्रता का कम होना एवं क्षेत्रीय स्थलाकृति का प्रभाव है।
राज्य का पश्चिमी क्षेत्र निम्न वर्षा वाला क्षेत्र है। यहां औसत वर्षा 50 सेमी से 75 सेमी तक होती है। इस क्षेत्र में निम्न वर्षा होने का प्रमुख कारण मानसून का आर्द्रता से न्यून होना है। दक्षिण-पूर्वी मानसून यहां तक पहुंचते-पहुंचते आर्द्रता रहित या न्यून आर्द्रता से युक्त रह जाता है, इसलिए इस क्षेत्र में निम्न वर्षा होती है। राज्य के नीमच, मन्दसौर, रतलाम, धार, झाबुआ इत्यादि जिले इस क्षेत्र में आते हैं। गोहद (भिण्ड) में सबसे कम वर्षा होती है।