सांप्रदायिक हिंसा में कांग्रेस राज में ज्यादा की गई जान
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2021 के बीच देश भर में सांप्रदायिक हिंसा में 190 हत्याएं दर्ज की गईं। वहीं, 2006 से 2013 के वर्षों में ऐसी हत्याएं 216 हुई थीं। हालांकि, ऐसी हिंसा में ज्यादातर लोग घायल होते हैं और संपत्तियों का नुकसान काफी ज्यादा होता है।
दिल्ली और यूपी सबसे ज्यादा प्रभावित
एनआरसीबी के आंकड़ों के अनुसार, 2014-2021 की अवधि में सांप्रदायिक हिंसा में 53 हत्याओं के साथ दिल्ली में सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। इससे पहले, 2006-2013 की अवधि में 63 हत्याओं के साथ उत्तर प्रदेश इस सूची में शीर्ष पर था। वहीं, 2000 के बाद 2002 में हुए दंगों में 308 लोग मारे गए थे। उस वर्ष 276 मामलों के साथ गुजरात इस सूची में शीर्ष पर था।
दंगों या जातीय हिंसा के पीछे काम करती हैं 4 थ्योरी
अमेरिकी रणनीतिकार और लेखक जोनाथन गॉटशैल ने अपनी किताब ‘एक्सप्लेनिंग वॉरटाइम रेप: द जर्नल ऑफ सेक्स रिसर्च’ और सुजैन ब्राउनमिलर ने अपनी किताब ‘अगेंस्ट अवर विल’ में दंगों और हिंसा के पीछे 4 थ्योरी का जिक्र किया है। ये थ्योरी न्यूयॉर्क में यूनियन कॉलेज में प्रोफेसर सोनिया टाईमैन की स्टडी से ली गई हैं। इनमें कहा गया है कि जातीय संघर्षों, युद्ध या सांप्रदायिक दंगों में पुरुषों की हत्या करने और महिलाओं से रेप करने या उन्हें गुलाम बनाने के पीछे 4 सिद्धांत काम करते हैं। जिन्हें प्रेशर कुकर थ्योरी, कल्चरल पैथोलॉजी थ्योरी, सिस्टमेटिक या स्ट्रैटेजिक रेप थ्योरी और फेमिनिस्ट थ्योरी कहा जाता है।
पूर्वाग्रह, नफरत और डर काम करता है दंगों के पीछे
पूर्व पुलिस अफसर और IPS विभूति नारायण राय ने किताब लिखी है-सांप्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस। इसमें उन्होंने कहा है कि सांप्रदायिक दंगों को प्रशासन की एक बड़ी असफलता के रूप में लिया जाना चाहिए। पुलिस में काम करने वाले लोग उसी समाज से आते हैं जिसमें सांप्रदायिकता के वायरस पनपते हैं। उनमें वे सब पूर्वाग्रह, नफरत, संदेह और भय होते हैं जो उनका समुदाय किसी दूसरे समुदाय के प्रति रखता है। अपनी एक और किताब शहर में कर्फ्यू में उन्होंने लिखा है कि सियासत के जरिए देश के दो बड़े धार्मिक तबकों में अविश्वास पैदा किया जाता रहा है।
दंगों के लिए जरूरी हैं ये तीन चीजें, यही भड़काती हैं
कई एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि दंगे करवाने के लिए तीन चीजें बहुत जरूरी होती हैं। पहला-नफरत पैदा करना। दूसरा-दंगों में इस्तेमाल होने वाले हथियारों को बांटना और ईंट-पत्थर फेंक कर तनाव बनाना। तीसरा-ऐसी हिंसा में कहीं ना कहीं पुलिस भी जिम्मेदार होती है।
बहराइच में भी झंडा हटाने के बाद हुई फायरिंग
बहराइच में भी छत से हरा झंडा हटाने की कथित कोशिश के बाद तनाव फैल गया। घर से फायरिंग हुई और फिर पथराव शुरू हो गया। बताया जा रहा है कि इसी पथराव में मूर्ति टूट गई और फिर क्या था। विवाद चरम पर पहुंच गया। भीड़ भड़की, जमकर तोड़फोड़ की गई। घरों के बाहर खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई। आगजनी होने लगी, चुन-चुनकर दुकानों को निशाना बनाया गया। पुलिस ने फिर किसी तरह भीड़ को काबू किया।